
-देवेंद्र यादव-

दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा केवल कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर नहीं हो रही है बल्कि चर्चा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी हो रही है कि यह दोनों प्रमुख नेता विधानसभा चुनाव प्रचार से गायब क्यों है।
राहुल गांधी के लिए तो कांग्रेस की तरफ से कहा जा रहा है कि उनका स्वास्थ्य खराब है इसलिए डॉक्टरों ने सलाह दी है कि कुछ समय विश्राम करो मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए अभी तक क्यों नहीं उतरे इस पर कांग्रेस की तरह भाजपा के किसी नेता ने अभी तक नहीं बताया है। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रचार के संदर्भ में बात करें तो विगत दिनों देश के अनेक राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे। उन चुनाव में भी प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार को लेकर चर्चा हुई थी कि अचानक मोदी चुनाव से गायब क्यों हो गए, और जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो महाराष्ट्र और हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त जीत दर्ज कर अपनी सरकार बनाई। जबकि इन दोनों ही राज्यों में चुनाव के दरमियान ऐसा लग नहीं रहा था कि भाजपा की सरकार बनेगी। अनुमान लगाया जा रहा था कि इन दोनों ही राज्यों में इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी और कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के इसी भंवर जाल में फंस गई। कांग्रेस हरियाणा में जीती बाजी को हार गई। क्या दिल्ली में भी भारतीय जनता पार्टी हरियाणा की तर्ज पर चुनावी रणनीति बना रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार में नहीं आकर एक बार फिर से हरियाणा की तरह कांग्रेस को अपने भंवर जाल में फंसाने का प्रयास कर रही है। क्या राहुल गांधी इस चाल को समझ गए और वह भी दिल्ली में चुनाव प्रचार से गायब होकर भारतीय जनता पार्टी को भ्रम में रखने लगे।
सवाल यह भी है कि लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी पहली चुनावी सभा को संबोधित कर चुनाव का आगाज किया और फिर अचानक से चुनाव से गायब हो गए। इसका राजनीतिक अर्थ क्या है। क्या जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार से गायब हुए थे और उन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाई थी क्या वैसा ही दिल्ली चुनाव में राहुल गांधी भी समझ रहे हैं और रणनीति के तहत वह चुनाव प्रचार से गायब हो गए। दिल्ली में कांग्रेस के नेता और राजनीतिक पंडित भले ही चुनाव परिणामों को लेकर जो भी आकलन जो भी करें, मगर दिल्ली की जनता के मूड का आकलन करना बहुत कठिन है। यदि दिल्ली की जनता के मूड का आकलन करना है तो दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालनी होगी। दिल्ली की जनता ने मजबूत सरकारों को हटाकर अन्य दलों की सरकार बनाई है।
दिल्ली में मतदाता एक बार फिर से कांग्रेस की तरफ देख रहा है। लेकिन यह तभी संभव है जब कांग्रेस के नेता मतदाताओं को ठीक से समझें। केवल के नेताओं का चुनावी गानों पर नाचने और सीटी बजाने से काम नहीं चलेगा। काम चलेगा पप्पू यादव की तरह जनता के बीच जाने उनसे संवाद करने और उन्हें गारंटी देने से। बिहार से आकर दिल्ली चुनाव में पूर्वांचलवासियों के बीच पप्पू यादव ने कांग्रेस के पक्ष में जो माहौल बनाया है उस माहौल को दिल्ली कांग्रेस के नेता अंत तक बरकरार रखें इसके लिए दिल्ली में पूर्वांचल के मतदाताओं के सामने बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की जरूरत नहीं है। जरूरत है पप्पू यादव को अंत तक कांग्रेस दिल्ली विधानसभा के चुनाव में ही रखें और इसके लिए राहुल गांधी को स्वयं पहल करनी चाहिए। यदि राहुल गांधी खराब स्वास्थ्य के कारण प्रचार में नहीं आ रहे हैं तो कांग्रेस के पास दो ऐसे बड़े नेता हैं जो दिल्ली विधानसभा चुनाव मैं कांग्रेस की तस्वीर और तकदीर बदल सकते हैं। एक कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री सचिन पायलट और दूसरे बिहार के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव। इन दोनों ही नेताओं को अधिक से अधिक रोड शो और जनसभाएं करने की जरूरत है जो यह करते हुए भी नजर आ रहे हैं। दोनों ही नेता चुनावी रणनीति बनाने में भी माहिर हैं। दोनों ही नेता मंजे हुए चुनावी रणनीतिकार भी हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)