
-राजेन्द्र गुप्ता
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भाद्रपद मास (भादों) की कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन बछ बारस का पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ अपने पुत्र के स्वास्थ्य और लम्बी उम्र के लिये गौमाता से प्रार्थना करती हैं और बछड़े वाली गाय का पूजन करती हैं। इस दिन चाकू से काटी गई वस्तुयें, गेहूँ, जौ, और गाय के दूध से बनी चीजों का सेवन निषेध हैं। एक दिन पहले ही रात्रि को बछबारस (Bachbaras) के लिये मूंग, मोठ, चने एवं बाजरा भिगो कर रख दिया जाता है। उसे भिजोना कहते हैं।
बछवारस / वत्स द्वादशी कब है?
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इस वर्ष बछवारस की पूजा एवं व्रत 20 अगस्त, 2025 बुधवार के दिन किया जायेगा।
बछवारस (वत्स द्वादशी) क्यों मनाते हैं?
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हमारे आराध्य श्री कृष्ण को गायों से बहुत प्रेम था। उन्होने गौ-सेवा के महत्व को लोगों को बताया और गाय को माता कहकर उसकी पूजा को प्रतिपादित किया भगवान श्री कृष्ण स्वयं गायों की सेवा किया करते थें। उनके गायों के प्रति इस प्रेम को देखकर स्वयं कामधेनू ने बहुला गाय का रूप लेकर नंदबाबा की गौशाला में स्थान लिया था। भगवान श्री कृष्ण का एक नाम गोपाल भी है। इस दिन पहली बार भगवान श्री कृष्ण गायों और बछड़ों को चराने के लिये गये थे। माता यशोदा ने श्री कृष्ण को खूब सजा-धजा कर और पूजा पाठ कराकर इस दिन गाय चराने के लिये भेजा था। उनके साथ उनके बड़े भाई बलराम भी थें। श्री कृष्ण उनके साथ गायों और उनके बछड़ों को लेकर चराने के लिये गये थे। इसलिये इस दिन सब लोग गौ-पूजा करके भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिये गये गौ-सेवा के संदेश को सम्मान देकर इसे एक पर्व के रूप में मनाते हैं।
बछ बारस की पूजा कैसे करें? बछ बारस की पूजा विधि
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बछ बारस के दिन पुत्रवती स्त्रियाँ व्रत रखती है और गाय – बछड़ें की पूजा करती हैं। बछ बारस से एक दिन पहले रात्रि को बछबारस के लिये मूंग, मोठ, चने एवं बाजरा भिगो कर रख दिया जाता है। फिर प्रात: काल स्नानादि के बाद पूजा से पहले उसे कढ़ाई में छोंक कर पका लिया जाता हैं।
1. व्रत करने वाली स्त्री को बछ बारस के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ कपड़े पहननें चाहिये।
2. यदि आपके घर पर बछड़े वाली दूध देने वाली गाय हो तो उसे बछडे़ के साथ स्नान करायें।
3. फिर गाय और उसके बछड़े को नया कपड़ा ओढा़कर, हल्दी-चंदन से तिलक करें और फूलों की माला पहनायें। अगर सम्भव तो उनेक सींगों को भी सजायें।
4. तत्पश्चात तांबे का बर्तन लेकर उसमें पानी भरें। उसमें तिल, अक्षत, इत्र और फूल ड़ालकर गाय पर छिड़के और उसके पैरों (खुर) पर जल ड़ाले। यह करते समय निम्नलिखित मंत्र का पाठ करें –
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
5. गाय माता के खुर पर लगी मिट्टी से अपने मस्तक पर टीका लगायें।
6. दीपक जलाकर गौमाता की आरती उतारें। भीगे चने, मूंग, मोठ एवं बाजरा गाय को अर्पित करें।
7. गौ पूजन के पश्चात बछ बारस की कहानी कहे या सुनें।
8. व्रत करने वाली स्त्री भिजोना (भीगा हुआ मूंग,मोठ, बाजरा और चने) पर पैसे रखकर अपनी सास या जेठानी को पैर छू करे दें।
9. बछ बारस के पूरे दिन व्रत रखकर रात को अपने ईष्ट देवता का ध्यान और पूजन करके भोजन करें।
10. इस दिन भोजन में गेहूँ और जौ नही खाना चाहिये और ना ही गाय के दूध से बनी किसी वस्तु का सेवन करना चाहियें। साथ ही चाकू से कुछ भी नही काटना चाहिये और न ही चाकू से कटी किसी वस्तु का सेवन करना चाहियें। इस दिन सब्जी भी काटना वर्जित हैं।
11. अगर आपके घर पर बछड़े वाली गाय न हो तो, आपके घर के आस-पास जहाँ भी बछड़े वाली गाय हो वहाँ इसी विधि से पूजा करें। पूजा के बाद उसके लिये दक्षिणा भी रखें।
12. यदि आपको बछड़े वाली गाय न मिले तो भी आप यह पूजा कर सकती है। उस परिस्थिति में आप गीली मिट्टी से गाय एवं बछडे़ की प्रतिमा बनाकर उपरोक्त विधि से उनकी पूजा करे।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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