खूब देखा है मेरे दिल का तड़पना लेकिन। उस सितमगर पे असर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।

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फोटो अखिलेश कुमार
ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

तंग-दस्ती* में गुज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं।
रोते-रोते ही बसर* हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
वही सेहरा* वही सन्नाटा वही ख़ौफ़ो- हिरास*।
ज़हनो-दिल में वही डर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
खूब देखा है मेरे दिल का तड़पना लेकिन।
उस सितमगर पे असर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
हम तो बस क़ाफ़िला-ए-दिल* के मुसाफ़िर ठहरे।
फिर हमें इज़्ने-सफ़र* हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
जानता हूँ कि मुहब्बत ने किया है बरबाद।
इसकी दुनिया को ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
राह में कोई शजर* हो ये ज़रूरी है मगर।
वो तेरी राहगुज़र* हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
जिसमें रहते हों मुहब्बत के तलबगार” “अनवर”।
सब की क़िस्मत में वो घर हो ये ज़रूरी तो नहीं।।
*
शब्दार्थ:-
तंग-दस्ती*हाथ तंग होना परेशानी
बसर*निर्वहन
सेहरा*रेगिस्तान
ख़ौफ़ो-हिरास*डर मायूसी
क़ाफ़िला-ए-दिल*प्रेम का कारवाॉं
इज़्ने-सफ़र*यात्रा का आमंत्रण
शजर*पेड़
राह गुज़र*रास्ता
तलबगार*इच्छुक
शकूर अनवर
9460851271

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