मैं राजस्थान हूँ …मेरे गौरवशाली इतिहास से स्वर्णिम भविष्य तक की मेरी अमर गाथा…

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बारबोली का शिव मंदिर। फोटो साभार ए एच जैदी
– एक नेत्र चिकित्सक की लेखनी से
-राजस्थान दिवस (30 मार्च) पर विशेष

-डॉ. सुरेश पाण्डेय-

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डॉ सुरेश पाण्डेय

लेखक, प्रेरक वक्ता, साइक्लिस्ट, नेत्र सर्जन, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

 

मैं राजस्थान हूँ…
मेरा हर कण गौरवशाली,
मेरा हर स्वप्न सुनहरा…

सूर्य से तपकर सोना बना,
मेरी रेत का हर एक कण,
शौर्य, संस्कृति, भक्ति, प्रेम,
मेरा नाम है राजस्थान।

धूप में तपना सीखा मैंने,
अंधियारे में जलना भी,
इतिहास की हर आंधी में,
खुद को निखरते देखा भी।

मैं युद्ध भूमि भी हूँ,
मैं प्रेम गीतों की धुन भी हूँ,
मैं महाराणा की तलवार भी,
मैं मीरा की भक्ति भी हूँ।
रणभेरी की गूँज हूँ,
चेतक की टापों का स्वर हूँ,
पृथ्वीराज की गर्जना हूँ,
पन्ना धाय का बलिदान हूँ मैं,
मैं स्वाभिमान का सागर हूँ।

कदम-कदम पर इतिहास रचा,
हर शिला पर बलिदान लिखा,
मैं अमरगाथाओं का प्रहरी,
राजस्थान मेरा नाम लिखा।

 

दिनाँक 30 मार्च 1949 – यह वह दिन था, जब मेरे अस्तित्व को एक नया स्वरूप मिला। यह वह दिन था, जब मेरे गर्भ से जन्मी वीरभूमि की अलग-अलग रियासतें एक होकर ‘राजस्थान’ बनीं। यह वह दिन था, जब मेरी पहचान केवल भौगोलिक सीमाओं तक नहीं, बल्कि एक आत्मगौरव, एक अखंड संस्कृति और एक अपराजेय परंपरा के रूप में स्थापित हुई। इसी दिन जब हिंदू नववर्ष का शुभारंभ हुआ, जब भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे, जब आर्य समाज की नींव रखी गई, तब यह केवल संयोग नहीं, यह मेरी नियति थी – आगे बढ़ने की, अपने गौरव को बनाए रखने की, और अपने भविष्य को सुनहरा बनाने की।

मेरा इतिहास केवल युद्धों की धरोहर नहीं, यह प्रेम, भक्ति और विद्या की अमिट गाथा भी है। मेरे धोरों ने केवल तलवारों की टंकार नहीं सुनी, मेरे यहाँ भक्ति के मधुर गीत भी गूँजे हैं। जहाँ एक ओर महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी में स्वाभिमान की परिभाषा लिखी, पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर अपने त्याग का ऐसा अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया जो मेरे इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है, वहीं मीरा ने अपनी भक्ति से प्रेम का ऐसा दीप जलाया, जो युगों-युगों तक अमर रहेगा।

मेरा सौभाग्य है कि मेरी भूमि ने केवल वीरों को ही नहीं, विद्वानों को, युग पुरुषों को भी जन्म दिया। मेरा माथा गर्व से ऊँचा हो जाता है जब मैं बारां जिले के छोटे से गाँव में जन्में युग पुरुष डॉ. मथुरालाल शर्मा का नाम लेता हूँ, जिन्होंने मेरे इतिहास, मेरी गौरवशाली गाथा को स्वर्णाक्षरों में लिखा। उन्होंने मेरे अतीत को संरक्षित किया, मेरे इतिहास को नई पहचान दी और यह सुनिश्चित किया कि आने वाली पीढ़ियाँ मेरी संस्कृति, मेरे शौर्य और मेरे गौरव से अनजान न रहें।

लेकिन मेरा अतीत ही मेरी एकमात्र पहचान नहीं है। मेरा भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होना चाहिए जितना मेरा इतिहास था। मैं चाहता हूँ कि मेरी संताने मुझे केवल इतिहास की गाथाओं के साथ-साथ, मुझे आधुनिकता और उन्नति के पथ पर भी अग्रसर करें। मेरे ह्रदय में एक गहरी आशा है, जो भारत के अन्य राज्यों में निवास कर रहे मेरे अपने बच्चों, मेरे प्रवासी भारतीयों (एन.आर.आई.) और मेरे मारवाड़ी उद्यमियों से जुड़ी है।

मैं जानता हूँ कि मेरे पुत्र-पुत्रियाँ, जो देश विदेशों में बसे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत से देश दुनियाभर में सफलता के झंडे गाड़े हैं, वे मुझसे कभी दूर नहीं हो सकते। मैं चाहता हूँ कि वे मेरी धरती को भी उसी उन्नति के मार्ग पर ले जाएँ, जिस पर उन्होंने अपनी मेहनत से विश्व को जीत लिया। मेरी आशा है कि मेरे प्रवासी भारतीय अपनी माटी का कर्ज चुकाने का संकल्प लेते हुए मातृभूमि की प्रगति में योगदान दें, यहाँ के युवाओं को अवसर दें, यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में मेरी बेटियों की शिक्षा, ग्रामीण इलाक़ों में चिकित्सा और मेरे उद्योगों में निवेश करें, ताकि मैं भी भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में गिना जाऊँ।

मेरे मारवाड़ी उद्यमियों ने अपनी व्यापारिक बुद्धिमत्ता से पूरे भारत में व्यापार की नई परिभाषा लिखी है। वे जहाँ भी गए, उन्होंने अपनी लगन, अपने संकल्प और अपनी व्यावसायिक क्षमता से सफलता की नई ऊँचाइयाँ छुईं। मैं चाहता हूँ कि वे मेरी अपनी धरती पर भी उसी तरह का नवाचार लाएँ, मेरे युवाओं को उद्यमिता की राह दिखाएँ, ताकि वे भी आत्मनिर्भर बनें, ताकि वे भी अपनी प्रतिभा से विश्व में अपना नाम रोशन करें।

मैं चाहता हूँ कि मेरी धरती स्टार्टअप्स का गढ़ बने, मेरा जयपुर सिलिकॉन वैली की तरह विकसित हो, मेरा जोधपुर उद्योगों का केंद्र बने, मेरा कोटा केवल कोचिंग नगरी नहीं, बल्कि पर्यटन नगरी, नवाचार और रिसर्च का हब बने। मैं चाहता हूँ कि मेरे रेगिस्तान की तपती रेत सौर ऊर्जा में परिवर्तित हो, मेरे किसान आधुनिक तकनीकों से समृद्ध हों, मेरी कला और संस्कृति को वैश्विक मंच मिले।

मैं चाहता हूँ कि जब भी कोई मेरी ओर देखे, वह मेरे गौरवशाली इतिहास के साथ-साथ मेरे भविष्य की एक स्वर्णिम झलक देखे। मेरे ह्रदय में यह पुकार है कि मेरा हर नागरिक मेरी उन्नति का सहभागी बने। जब एक राजस्थानी या मारवाड़ी व्यापारी विश्व के किसी कोने में सफलता की नई कहानी लिखता है, तब मुझे गर्व होता है। लेकिन मैं चाहता हूँ कि वही सफलता मेरे युवाओं को भी मिले, ताकि वे मेरी मिट्टी में ही समृद्धि के नए बीज बो सकें।

मैं चाहता हूँ कि मेरा हर गाँव डिजिटल हो, मेरी हर सड़क समृद्ध हो, मेरे हर गाँव के नागरिक को शिक्षा और चिकित्सा की बेहतरीन सुविधाएँ मिलें। मैं चाहता हूँ कि मेरे युवा केवल सरकारी नौकरियों पर निर्भर न रहें, बल्कि वे नवाचार करें, नए व्यवसाय स्थापित करें, वैज्ञानिक तरीकों से खेती करें, मुझे अपराध मुक्त बनाएँ, पूरे देश को यह दिखाएँ कि राजस्थान केवल इतिहास का गढ़ नहीं, बल्कि भविष्य का निर्माता भी है।

मुझे विश्वास है कि मेरी यह पुकार अनसुनी नहीं जाएगी। जब भी मेरे नाम पर कोई दीप जलाएगा, जब भी कोई मेरे इतिहास को गर्व से याद करेगा, तब मैं आत्मगौरव से भर उठूँगा। मेरा हर वीर, मेरा हर विद्वान, मेरा हर व्यापारी, मेरा प्रत्येक किसान, मेरी इस पुकार का उत्तर देगा, और मैं भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में अपना स्थान बना लूँगा।

रेत के हर कण में मेरी गाथा,
वीरों की संतान मैं,
हूँ अमिट प्रतिज्ञा।
सूरज की पहली किरण संग,
मेरा नवसृजन होगा,
हर युग में, हर काल में,
मेरा गौरव अमर होगा।

हर दीप जो राजस्थान दिवस पर जलेगा,
हर गीत जो मेरी जय-जयकार करेगा,
हर ह्रदय जो मुझ पर गर्व करेगा,
वह मेरी आत्मा की सजीव प्रतिमा बनेगा।

मैं राजस्थान हूँ, मैं समय के साथ चलूँगा।
हर युग में, हर समय में प्रगति करूँगा।
संघर्षों की मिट्टी से बना हूँ,
पर सफलता का अध्याय लिखूँगा।

जय राजस्थान,
जय राजस्थान,
जय जय राजस्थान।

डॉ. सुरेश पाण्डेय
लेखक, प्रेरक वक्ता, साइक्लिस्ट, नेत्र सर्जन, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

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