parwan nadi

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान के बारां जिले में अकावद गांव के पास निर्माणाधीन परवन वृहद सिंचाई व पेयजल परियोजना के डूब में आए गांवों के सैंकडों परिवार उनके पैतृक आवास-बाड़ों के मुआवजे से वंचित कर दिए गए हैं जबकि उनकी कई पीढ़ियां इन गांवों में निवास करती रही है लेकिन सर्वे के समय यह परिवार विभिन्न कारणों के चलते गांव में निवास करते नहीं पाए गए। इन सैंकड़ों परिवारों के साथ यह भेदभाव सरकार की एकतरफा नीति के कारण हुआ जिसमें यह तय किया हुआ है कि परवन वृहद सिंचाई व पेयजल परियोजना के डूब क्षेत्र में आए गांव के उन्हीं लोगों को उनके कच्चे-पक्के आवासों-बाड़ों,पेड़ों-पौधों आदि का मुआवजा दिया जाएगा जो मुआवजा निर्धारण एवं भुगतान के लिए किए गए सर्वे के दौरान अपने गांव में निवास कर रहे होंगे, उनके राशन कार्ड, मतदाता, पहचान, पत्र आदि दस्तावेज भी होंगे। लेकिन यह नीति उन सैकड़ों परिवारों को उनके वाजिब हक से वंचित कर गई जो वर्तमान में तो गांव में नहीं रहते, लेकिन उनकी कृषि योग्य भूमि सहित कच्चे-पक्के मकान, बाड़े, फलदार-छायादार पेड़ आदि वहां पर आज भी मौजूद है जिनका मुआवजा उन्हें मिलना चाहिए था लेकिन राजस्व नियमों संबंधी तकनीकी वजह से उन्हें दावारहित कर दिया गया।

आवास-बाड़े रिश्तेदारों-पड़ोसियों को सौंप दिए

दरअसल इस परियोजना के डूब क्षेत्र में आए छीपाबड़ोद तहसील के सात गांवों मालूनी,सुखनेरी, बोरदा,फतेहपुरा, टाकुड़ा,
अमलावदा खरण, पीपल्याघाटा के ऐसे सैकड़ों परिवार हैं जिनकी पीढियां इन गांव में रहती आई थी और उनकी पैतृक कृषि योग्य भूमि, आवास-बाड़े आज भी वहां मौजूद हैं लेकिन देश के आजाद होने के बाद बदली हुई परिस्थियों में इन गांव के सैकड़ों परिवार बेहतर जिंदगी की तलाश में रोजगार-बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए गांव छोड़कर नजदीकी बारां, झालावाड़, कोटा जैसे शहरों में जाकर बस गए। बाद के सालों में इन परिवारों का सामाजिक स्तर पर अन्य ग्रामवासियों से जुड़ाव रहा व पैतृक भूमि तो उनकी निजी मालिकाना हक में ही बनी रही लेकिन सार-संभालने के लिए उन्होंने अपने आवास-बाड़े आदि अपने नजदीकी रिश्तेदारों-पड़ोसियों को सौंप दिए जो वे वहां रहकर करते भी रहे।

अब ईमानदारी पड़ रही भारी 

अब मुआवजा देने की सरकारी नीति का हास्यास्पद पहलू यह है कि ऐसे परिवारों को खातेदारी हक के तहत उनकी कृषि भूमि का मुआवजा तो दिया गया है लेकिन उन्हें अपने मकान-बाड़ों आदि के मुआवजे से इसलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि वह अब वहां नहीं रहते पाये गये और उनका वहां का मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड नहीं है। जबकि खुद सरकार का नियम यह कहता है कि है कि एक व्यक्ति वही का मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज बनवाएं, जहां वह वर्तमान में निवास करता है तो इन परिवारों ने ईमानदारी से अपने मौजूदा आवास स्थल के ही यह दस्तावेज तैयार करवाए, लेकिन उनकी ईमानदारी अब उन्हीं पर भारी पड़ रही है और उन्हें अपने पैतृक गांव में मकान-बाड़ों के मुआवजे के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।

राज्य सरकार कोई कदम नहीं उठा रही

ऐसे वंचित परिवारों का कहना है कि एक तरफ राज्य सरकार ने उन्हें उनकी कृषि भूमि का मुआवजा दे दिया है जबकि दूसरी ओर राशन कार्ड नहीं होने के कारण वह आवास-बाड़ों,पेड़-पौधों के मुआवजे से वंचित कर दिए गए हैं। जबकि सरकारी नियमों का पालन करते हुए उन्होंने तो वर्तमान निवास क्षेत्र में ही अपने राशन कार्ड-मतदात पहचान पत्र आदि बनवाये थे तो इसमें उनकी गलती क्या है? स्थानीय स्तर पर जल संसाधन और राजस्व विभाग के सामने यह मुद्दा उठाया जा चुका है लेकिन वह राज्य सरकार के स्तर पर ही निर्णय होने का हवाला देते हैं और राज्य सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है।

राजस्थान की बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजना

उल्लेखनीय है कि परवन वृहद सिंचाई व पेयजल परियोजना बारां जिले की ही नही बल्कि राजस्थान की बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजना है जो बारां जिले के छीपाबड़ोद तहसील के अकावद गांव के पास परवन नदी पर निर्माणाधीन है। करीब 7000 करोड रुपए की लागत से निर्माणाधीन इस सिंचाई परियोजना से निकट भविष्य में बारां, झालावाड़ और कोटा जिलों में दो लाख हेक्टेयर से भी अधिक कृषि भूमि में सिंचाई होगी व सैकड़ों गांव के लोगों की कंठों की न केवल प्यास बुझेगी बल्कि जिन गांवों से होकर इस परियोजना से जुड़ी नहरे गुजरेगी,वहां का भूमिगत जल स्तर भी बढ़ेगा जबकि मौजूदा हालात यह है कि बारां जिले की अटरु तहसील के सैकड़ों गांव सहित इन तीनों जिलों के हजारों गांव ऐसे हैं, जिन्हें राज्य सरकार बरसों पहले ही भूमिगत जलस्तर खतरे के निशान से भी नीचे चले जाने के कारण डार्क जोन में घोषित कर चुकी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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Neelam
Neelam
2 years ago

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