वाकई एक गांव ऐसा भी…

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कुंजेड गांव के बगीचे में खेलते बच्चे।

-शैलेश पाण्डेय-

ऐसे समय जब लोगों के पलायन की वजह से गांव में घरों पर मोटे-मोटे ताले पड़ने लगे हों तब यदि कोई कहे कि हमारे हाडोती में एक ऐसा गांव भी है जहां की हरियाली और मनोरम दृश्य तथा साफ सुथरी सडकें और गलियां तथा वहां का विकास आपको मोह लेगा तो आप पहली बार में विश्वास नहीं करेंगे लेकिन वरिष्ठ पत्रकार घनश्याम दाधीच ने चंबल संदेश समाचार पत्र के रविवार 29 जून के अंक में पूरे एक पृष्ठ पर बारां जिले के कुंजेड गांव का वर्णन अपनी लेखनी से उकेरा है। राजस्थान पत्रिका में मेरे सहयोगी रहे घनश्याम दाधीच के एक-एक शब्द पर विश्वास किया जा सकता है। वाकई हमारे हाडोती में कोई ऐसा गांव तो है जो प्रकृति के नजदीक होने के साथ आदर्श भी है।

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सीएम भजनलाल को ज्ञापन देते हुए।
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पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को ज्ञापन देते हुए।

कुछ माह पूर्व बारां में शाहबाद जंगल को बचाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार और हमारे आदर्श धीरेन्द्र राहुल ने एक व्यक्ति से परिचय कराते हुए कहा था ‘सरपंच हो तो प्रशांत पाटनी जैसा’। तब उन्होंने यह भी कहा था कि यदि प्रशांत पाटनी जैसे सरपंच हों तो भारत के गावों की तकदीर बदल जाए। आम तौर पर राहुल जी तारीफ कम करने में ही विश्वास करते हैं। इसलिए उनके कहे पर कुछ आश्चर्य हुआ।

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मनरेगा के तहत कार्य में योगदान करते प्रशांत पाटनी।

हालांकि मैंने कभी कुंजेड का दौरा नहीं किया है इसलिए एक अच्छे गांव की केवल कल्पना ही कर सका। लेकिन आज घनश्याम दाधीच की रिपोर्ट ने राहुल जी के कहे की पुष्टि भी कर दी। वैसे भी एक पत्रकार के तौर पर मैं घनश्याम दाधीच और धीरेन्द्र राहुल के कहे पर कभी अविश्वास नहीं कर सकता क्योंकि इनके काम से वाकिफ हूँ।

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प्रशांत पाटनी धुन के पक्के हैं। इसका अंदाजा शाहबाद जंगल को बचाने के लिए उनके प्रयासों से देखा जा सकता है। उन्होंने जिस तरह आंदोलन के लिए टीम तैयार की और स्कूल, गांवों और मोहल्लों से लेकर कहां कहां तक आवाज को नहीं पहुंचाया यह उनकी काम के प्रति निष्ठा को दर्शाता है। हालांकि करीब पांच वर्ष पूर्व जब एक स्थानीय समाचार पत्र में कार्यरत था तब वहां एक उदीयमान रिपोर्टर हेमराज गुर्जर ने कई बार कुंजेड गांव और तत्कालीन सरपंच प्रशांत पाटनी का जिक्र किया था। यही हेमराज आज भास्कर में अपनी रिपोर्टिंग के लिए चर्चित हैं। लेकिन तब हेमराज की बात पर इतना ध्यान नहीं गया क्योंकि यह माना कि हर कोई अपनी जन्मभूमि की तारीफ करता है जैसे मुझे सारे जहां से कोटा अच्छा लगता है। लेकिन बारां में मुलाकात के बाद प्रशांत पाटनी को फॉलो किया तब उनका काम नजर आया। जो आदमी भरी गर्मी में मनरेगा मजदूरों के साथ काम कर सकता है या जो शाहबाद जंगल के लिए सीएम भजनलाल से मिलने के लिए धक्के खा सकता है उसकी प्रतिबद्धता की आप कल्पना कर सकते हैं। वाकई यदि गावों को आदर्श और रहने लायक बनाना है तो प्रशांत जी जैसी प्रतिबद्धता और अपने गांव के प्रति प्यार प्रदर्शित करना ही होगा।

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