-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व की भेदभाव पूर्ण तरीके से अनदेखी से आहत हाडोती के तमाम वन एवं पर्यावरण प्रेमी दरा के एेतिहासिक अबली मीणी महल के पास में स्वतंत्रता दिवस पर बाघ चौपाल लगाकर इस मसले पर गंभीर से विचार करेंगे और राज्य सरकार व वन विभाग के सम्मुख अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे। पर्यावरण संरक्षण में रुचि रखने वाले वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि कोटा, झालावाड़, बूंदी जिले और रावतभाटा क्षेत्र के करीब 759 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित इस टाइगर रिजर्व की 9 अप्रैल 2013 को स्थापना के बाद से ही लगातार उपेक्षा की जा रही है। वन विभाग के अधिकारियों ने स्थापना के बाद से ही इस टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण के प्रति कभी भी सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया और यही वजह है कि कुछ अरसे पहले तक तो इस टाइगर रिजर्व में चार बाघ-बाघिन और उनके शावक आबाद थे लेकिन अब एकाकी जीवन जीने के लिए एक इकलौती बाकी बची है जिसे भी एक सीमित स्थान पर रखा हुआ है। वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि वन विभाग के इस नकारात्मक रवैया के कारण ही थोड़े से ही अंतराल में इस टाइगर रिजर्व से तीन बाघ-बाघिन लुप्त हो गए और दरा अभयारण्य, जवाहर सागर और चंबल नदी के राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य को मिलाकर बनाए गए इस मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के आज एक बार फिर से बाघवहिन होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
मुकुंदरा हिल्स की उपेक्षा
वन्यजीव प्रेमियों ने बूंदी जिले के रामगढ़ में प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाने और वहां रणथम्भोर नेशनल पार्क से लाकर बाघिन आबद करने का तो स्वागत किया लेकिन साथ ही इस बात पर खेद प्रकट किया कि किसी नवसृजित टाइगर को तरजीह देकर करीब एक दशक पुराने टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित मुकुंदरा हिल्स की उपेक्षा करना वन विभाग के इसी भेदभावपूर्ण रवैये को स्वत् स्फ़ूर्त ही बयान करने के लिये काफ़ी है। हालांकि जिस समय मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई थी तो वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमियों में यह उम्मीद जागी थी कि इस अभयारण्य के विकास के बाद न केवल हाडोती अंचल में देसी-विदेशी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि पर्यटन विकास के कारण स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नये अवसर उत्पन्न होंगे लेकिन यह उम्मीदें पूरी नहीं हो सकी। इन सब मसलों पर गंभीरता से विचार करने के लिए यह गांव चौपाल आयोजित की जा रही है।
तमाम मुद्दे पर चर्चा होगी
कार्यक्रम के संयोजक पगमार्क फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष देवव्रत सिंह हाडा ने बताया कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अबली मीणी महल के पास दरा में बाघ चौपाल यह लगाएंगे जिसमे मुकुंदरा मे बसे गांवों के प्रतिनिधि, पर्यटन क्षेत्र के प्रतिनिधि एवंम बड़ी संख्या में वन-पर्यावरण प्रेमी एकत्र होंगे। चौपाल में ग्रामीणों विस्थापन, मुकुंदरा मे बाघों की शिफ्टिंग, सुरक्षा एवम पर्यटन के लिए जल्द खोला जाने जैसे तमाम मुद्दे पर चर्चा होगी और एक माह के भीतर मुकुंदरा में बसे सभी गांवो में बाघ सभा का भी आयोजन किया जाएगा। हम लोग संस्था के अध्यक्ष डा. सुधीर गुप्ता ने बताया कि मुकुंदरा के भविष्य की क्या शक्ल होनी चाहिए, इसको चौपाल में तय किया जायेगा। मुकुंदरा में बाघिन एमटी-4 की सुरक्षा-संरक्षण की भी समीक्षा की जायेगी। मुकुंदरा हिल्स टाईगर रिजर्व संघर्ष सीमित के अध्यक्ष कुंदन चीता बताया कि वन विभाग को इस टाइगर रिजर्व से जुड़े मसलों पर पर्यावरण-वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी संस्थाआें के प्रतिनिधियों के साथ बात करनी चाहिए और सारे मसले पर पारदर्शिता रखनी चाहिए।
नामकरण मुकुंद सिंह के नाम से
उल्लेखनीय है कि कोटा जिले में सबसे पहले मुकुंदरा की पहाड़ियों में नवम्बर,1955 में दरा वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया था और इसका नामकरण कोटा रियासत के प्रकृति प्रेमी हाडा शासक मुकुंद सिंह के नाम से किया गया था। वर्ष 2003 में तत्कालीन अशोक गहलोत की सरकार ने दरा वन्य जीव अभयारण्य को राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया लेकिन उसके बाद श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को यह नाम रास नहीं आया और राजनीतिक कारणों से वर्ष 2006 में मुकुंदरा हिल्स पार्क के नाम से राष्ट्रीय उद्यान नोटिफ़िकेशन किया गया लेकिन नेशनल पार्क के रूप में इसकी स्थापना 9 अप्रैल 2013 को मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के रूप में ही हो सकी जो उस समय बना प्रदेश का तीसरा टाइगर रिजर्व था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)