द ओपिनियन डेस्क
वैज्ञानिक अनुसंधान एक सतत प्रक्रिया है और हर नाकामी एक नई सफलता की राह खोलती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो इस बात का साक्षी है। पहले भी उसने कई नाकामयाबियों से सीख लेते हुए इतिहास रचा है। इसलिए लगता है इसरो के नव विकसित लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान यानी एसएसएलवी की यह विफलता भी एक दिन उसके लिए नई कामयाबी लेकर आएगी। एसएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो की एक छोटी उड़ान परन्तु बडे सपने का हिस्सा है। इसरो ने उपग्रहों के प्रक्षेपण में अपनी सफलता का परचम फहरा चुका है। पीएसएलवी, जीएसएलवी जैसे उसके प्रक्षेपण यानों ने अपनी क्षमता का लोहा मनवा चुके हैं। लेकिन एसएसएलवी की यह पहली उड़ान कुछ विसंगतियों के नाकाम हो गई। बाद में इसरो की ओर से बताया गया कि एसएसएलवी टर्मिनल चरण में डेटा लॉस -सूचनाओं की हानि- का शिकार हो गया। हालांकि बाकी के तीन चरणों ने आशा के अनुरूप प्रदर्शन किया। एसएसएलवी को उपग्रहों को अंडाकार कक्षा के बजाय चक्रीय कक्षा में स्थापित कर दिया। जिसके बाद ये उपयोग के योग्य नहीं रह गए।
साफ है इसरो के इस मिशन को नाकाम तो कतई नहीं कहा जा सकता। जो कुछ कमी रही है, उसे इसरो के वैैज्ञानिक निश्चित रूप से दूर लेंगे क्योंकि यह इसरो को बहुत ही अहम मिशन है और इसे एक गेमचंेंजर के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि आगे चलकर एसएसएलवी पीएसएलवी की जगह ले सकता है। एसएसएलवी का उद्देश्य छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की नमिन कक्षा में लॉन्च करना है। हाल के वर्षों में विकासशील देशों, विश्वविद्यालयों के छोटे उपग्रहों कीजरूरतों को पूरा करने के लिए एसएसएलवी की आवश्यकता होगी।
यह माना जा रहा है कि आने वाला समय छोटे उपग्रहों का है। अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, निगरानी और वाणिज्य की लगातार बढ़ती जरूरतों के कारण, पिछले आठ से दस वर्षों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग में बढी है। साफ है आने वाले दशक में छोटे उपग्रहों की जरूरतें और बढनी वाली है। ऐसे में एसएसएलवी की उपयोगिता भी बढने वाली है। निजी कंपनियां अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं। ऐसा भारत में भी हो रहा है और दुनिया के अन्य देशों में भी। ऐसे मे छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए एसएसएसवी जैसे उपग्रह यानों को जरूरत पडेगी। इसलिए इसरो का यह सपना बहुत ही अहम है।

















