
-सावन कुमार टांक-

कोटा। प्रदेश सहित पूरे भारत वर्ष के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र विश्व धरोहर बाड़ौली मंदिर धीरे—धीरे दुर्दशा का शिकार होता नजर आ रहा है। इस प्राचीन मंदिर की देखरेख का जिम्मा पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास है। विभाग ने भले ही यहां कर्मचारियों की तैनाती की हो लेकिन कोई कर्मचारी नजर नहीं आता। हाँ मवेशी परिसर में घूमते देखें जा सकते हैं। यहां लगे शिलापट्ट के अनुसार यह राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक होने से वाहनों, मवेशियों का प्रवेश बंद है लेकिन यहां स्थिति उल्ट है। मंदिर की देखरेख के लिए यहां चार कर्मचारियों का स्टॉफ लगाया हुआ है जो अधिकतर नदारद ही रहते हैं।
प्राचीन इमारत को संरक्षण की दरकार
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सही मायनों में करीब चौदह सौ साल पुरानी धरोहर को सार संभाल की दरकार है। विभाग ने करीब 12 साल पहले मंदिर की इमारतों की केमिकल धुलाई कार्रवाई थी। फिर सुध नहीं ली, जिस कारण मंदिर की खूबसूरती धूल मिट्टी और बरसात में जमी काई के पीछे छिपती जा रही है। वहीं, मंदिर परिसर की एक दीवार भी गिर चुकी है। जिसके निर्माण की विभाग ने आज तक सुध नहीं ली है। रोजाना दर्जनों आवारा मवेशी मंदिर परिसर में प्रवेश कर जाते हैं और गंदगी फैलाते हैं। वहीं वर्तमान में मंदिर में आगंतुकों के लिए पीने के पानी सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
नटराज की जोह रहे बाट
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मूर्ति तस्करों ने करीब 25 वर्ष पहले बाड़ौली मंदिर से भगवान नटराज की मूर्ति चोरी चुरा ली थी जिसे लंदन में 85 लाख में बेचा था। वहीं, चोरों ने असली की जगह मंदिर के पास ही खेतों में नकली मूर्ति छोड़ दी थी। जिसे विभाग ने असली मानते हुए गौदाम में रखवा दिया था। लेकिन वर्ष 2003 में जयपुर पुलिस अधीक्षक आनंद श्रीवास्तव ने ऑपरेशन ब्लेक होल के दौरान मूर्ति चोर गिरोह का पर्दाफाश किया, जिसमें बाड़ौली मंदिर की नटराज मूर्ति के लंदन में बेचने तथा वहीँ म्यूजियम में रखे होने की जानकारी मिली। विभाग के अथक प्रयासों के चलते वर्ष 2020 में मूर्ति को वापस भारत लाया गया जो फिलहाल आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के नई दिल्ली स्थित हेड क्वार्टर में रखी है। बाड़ौली मंदिर को अभी भी नटराज की मूर्ति का इन्तज़ार है।