
-राजेन्द्र गुप्ता
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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो साधक व्रत रखता है तो वह हर एक दुख-दर्द, रोग-दोष से निजात पा लेता है और इस लोक में सुख भोग कर मृत्यु के बाद स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है।
कब है पापांकुशा एकादशी?
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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ: 2 अक्टूबर 2025 को शाम 07:11 बजे
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त- 3 अक्टूबर 2025 को शाम 06:33 बजे
पापांकुशा एकादशी 2025 तिथि- 3 अक्टूबर 2025
पापांकुशा एकादशी व्रत का पारण का समय
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पापांकुशा एकादशी व्रत का पारण 4 अक्टूबर 2025 को सुबह 06:23 बजे से 08:44 बजे तक है।
हरि वासर आंरभ- 4 अक्टूबर को सुबह 12 बजकर 12 मिनट तक
हरि वासर समाप्त- 4 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 09 मिनट तक
पापांकुशा एकादशी पूजा विधि
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पापांकुशा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद श्री हरि विष्णु की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले भगवान विष्णु का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और मिश्री) से अभिषेक करें। फिर उन्हें फूल, माला, पीला चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें और तुलसी दल के साथ नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। इसके पश्चात घी का दीपक और धूप जलाकर श्री विष्णु मंत्रों, चालीसा, और पापांकुशा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। अंत में आरती करें। दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें। संध्या समय पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें। व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को उचित समय पर करें।
पापाकुंशा एकादशी महत्व
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पौराणिक ग्रंथों में पापांकुशा एकादशी का विस्तार से उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि इस एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है। पापांकुशा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने तथा दीन-दु:खी, निर्धन लोगों को दान देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। पापाकुंशा एकादशी हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली होती है। पदम् पुराण के अनुसार, “जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा पूर्वक सोना,तिल,भूमि,गौ,अन्न,जल,जूते और छाते का दान करता है, उसके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा होती है और उसे यमराज के भय से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही जो व्यक्ति इस दिन रात्रि में जागरण करके प्रभु का भजन करता है और पूजा अर्चना करता है, वह स्वर्ग का भागी बनता है।”
दान का महत्व
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सनातन परंपरा में दान बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में दान के महत्व का उल्लेख मिलता है जहां दान को सभी कष्टों और व्याधियों से निजात पाने का अचूक साधन माना गया है। सनातन धर्म में सदियों से ही दान की परंपरा रही है। लोगों को मन की शांति, मनोकामना पूर्ति, पुण्य की प्राप्ति, ग्रह-दोषों के प्रभाव से मुक्ति और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दान करना चाहिए।
दान का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आपके द्वारा किए दान का लाभ केवल इस जीवन में ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद भी मिलता है। मृत्यु के बाद जब धर्मराज के समक्ष आपके कर्मों का आंकलन किया जाता है तो यही पुण्य कर्म काम आते हैं। दान के द्वारा अर्जित किया गया पुण्य इस पृथ्वी पर रहने के साथ और यहाँ से जाने के बाद भी आपके साथ ही रहता है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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