भौम प्रदोष व्रत आज

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-राजेन्द्र गुप्ता-

हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करने का विधान है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। बता दें कि प्रदोष व्रत सप्ताह के जिस दिन पड़ता है उसका नामकरण भी उसी के हिसाब से किया जाता है। इस बार का प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ रहा है इसलिए इसे भौम प्रदोष कहा जाएगा। दरअसल, मंगल का नाम भौम भी इसलिए इस दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष कहते हैं। भौम प्रदोष के दिन भोलेनाथ के साथ हनुमान जी की पूजा करने से जीवन पर मंडरा रहा हर संकट दूर हो जाता है।

 शुभ मुहूर्त
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भौम शुक्ल प्रदोष व्रत मंगलवार- 15 अक्टूबर 2024
त्रयोदशी तिथि आरंभ- 15 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 42 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्त – 16 अक्टूबर को रात 12 बजकर 19 मिनट पर
प्रदोष पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 51 मिनट से रात 8 बजकर 21 मिनट तक
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ – दोपहर 3 बजकर 42 मिनट से

भौम प्रदोष व्रत का महत्व
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भौम प्रदोष व्रत का दिन कर्ज से मुक्ति पाने के लिए बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन मंगल से संबंधित चीज़ें गुड़, मसूर की दाल, लाल वस्त्र, तांबा आदि का दान करने से सौ गौ दान के समान फल मिलता
है। वहीं त्रयोदशी तिथि की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है- उसपर भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।

भौम प्रदोष व्रत क्यों किया जाता है ?
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भौम प्रदोष व्रत अच्छी और निरोगी स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए भी किया जाता है।
भौम प्रदोष मंगलवार को आता है। मंगलवार हनुमान जी का दिन बताया गया है। साथ ही यह मंगल ग्रह से भी संबंधित होता है। ये व्रत करने वालों को कुंडली में मांगलिक दोष से छुटकारा मिलता है।
आर्थिक परेशानियां दूर करने या कर्ज से मुक्ति पाने के लिए भौम प्रदोष व्रत अचूक माना गया है।

भौम प्रदोष व्रत विधि
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इस दिन व्रती को नित्यकर्मों से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूरे दिन उपवास के बाद शाम के समय फिर से स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए और ईशान कोण में प्रदोष व्रत की पूजा के लिए स्थान का चुनाव करना चाहिए। पूजा स्थल को गंगाजल या साफ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर मंडप तैयार करना चाहिए। इस मंडप में पांच रंगों से कमल के फूल की आकृति बनाइए। चाहें तो बाजार में कागज पर अलग-अलग रंगों से बनी कमल के फूल की आकृति भी ले सकते हैं। साथ में भगवान शिव की एक मूर्ति या तस्वीर भी रखिए। इस तरह मंडप तैयार करने के बाद पूजा की सारी सामग्री अपने पास रखकर कुश के आसन पर बैठकर, उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके शिव जी की पूजा करें । पूजा के एक-एक उपचार के बाद- ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करें । जैसे पुष्प अर्पित करें और ‘ऊँ नमः शिवाय’ कहें, फल अर्पित करें और ‘ऊँ नमः शिवाय’ जपें। शिवजी की पूजा के बाद हनुमान जी की पूजा भी करनी चाहिए और उन्हें सिन्दूर चढ़ाना चाहिए। क्योंकि यह भौम प्रदोष व्रत है और भौम प्रदोष में हनुमान जी की भी पूजा की जाती है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175

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