
-अखिलेश कुमार-

फोटो जर्नलिस्ट
मांडना हाडोती की प्राचीन और पारंपरिक कला है। दिवाली के मौके पर शुभता का प्रतीक मांडने बनाए जाते हैं। लक्ष्मीजी के स्वागत में गेरू और सफेद खड़िया और परंपरागत रंगों से बनाए गए मांडने समृद्धि के आगमन के घोतक हैं। कहा जाता है कि मांडना बनाने से जीवन में खुशियां आती हैं और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। दिवाली के अवसर पर कोटा समेत हाडोती में महिलाओं ने आकर्षक रंग रूप और आकार के मांडने बनाए। फोटो जर्नलिस्ट अखिलेश कुमार ने नांता गांव में ऐसे ही कुछ मांडने अपने कैमरे में कैद किए हैं।

प्राचीन समय में गांवों में कच्चे घर हुआ करते थे। किसी भी त्योहार या फिर अन्य मांगलिक अवसरों पर शुद्धिकरण करने के लिए फर्श और दीवारों पर गोबर से लिपाई करने के बाद सजावट के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के मांडणे बनाए जाते थे। महिलाएं अलग-अलग आकृतियां से मांडणा बनाती हैं। मांडना के चित्र को एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक बनाया जाता है। इनका आकार ज्यामितीय होता है जैसे- गोल, चौकोर, आयताकार एवं त्रिकोणीय। इसे सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
भारत हमेशा ही अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। इन्हीं में से एक है मांडना। बदलते वक्त के साथ यह लोक कला लुप्त होने लगी है। हाथ से आकृतियां उकेरने के बजाय लोग बाजार से रंग बिरंगे कागजों पर बने मांडने लाकर लगाने लगे हैं।

मांडणा मुख्य रूप से राजस्थान की एक प्राचीन लोक कलाओं में से एक है। यह ग्रामीण इलाकों में बहुत प्रचलित थी। विभिन्न मांगलिक अवसरों और त्योहारों पर घर को सजाने के लिए बनाई गई कलात्मक आकृतियों को ‘मांडणा’ कहते है। इसे शुभ अवसरों पर ज़मीन अथवा दीवारों पर चित्रित किया जाता है। दिवाली से पहले महिलाएं घर की साफ-सफाई करके मांडणे बनाती है।