
-द ओपिनियन-
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम तय लाइन पर सामने आए हैं। कांग्रेस नीत महाविकास अघाड़ी गठबंधन जहां लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के मद में चूर नजर आया वहीं भाजपा नीत महायुती गठबंधन ने हार से सबक लेकर ग्राउण्ड लेवल पर इतनी मेहनत की कि विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया। चुनाव विशेषज्ञ योगेन्द्र यादव के अनुसार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीत गठबंधन को महाराष्ट्र में अच्छी खासी सीटें मिलीं लेकिन भाजपा नीत गठबंधन पर उसकी बढ़त केवल एक प्रतिशत के लगभग की थी। भाजपा ने लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही आरएसएस के कार्यकर्ताओं के सहयोग से बूथ लेवल पर जबर्दस्त तैयारी की और चुनाव चुनाव जीतने के लिए जो कुछ भी हो सकता था किया। इसमें चाहे सीटों का बंटवारा हो या लोकलुभावन योजनाएं हो हर उस चीज का सहारा लिया जिससे उसे वोट मिल सकते थे। महिलाओं के लिए घोषित योजना भी इसमें शामिल थी और उनके वोट निर्णायक साबित हुए। हालांकि अभी मुख्यमंत्री को लेकर पेंच फंसा हुआ है लेकिन भाजपा आज इस पोजीशन में पहुंच गई कि कुछ निर्दलीयों के सहयोग से अपने दम पर सरकार बना सकती है। दूसरी ओर कांग्रेस नीत गठबंधन इस मुगालते में रहा कि लोकसभा चुनाव में मिली सफलता उसे विधानसभा चुनाव में भी मिलेगी। इस वजह से सभी सहयोगी दल अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की जुगत भिडाने में लगे रहे। ताकि ज्यादा सीट जीतने के आधार पर मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जता सकें। इससे हाल यह हुआ कि सभी सहयोगी दल अपनी क्षमता से ज्यादा पर चुनाव लड़ने की की जोड़ तोड़ में लग गए। उन्होंने ज्यादा सीटें भी हथिया लीं और जब परिणाम सामने आया तो हाथ मलते रह गए। उन्होंने न तो जमीनी स्तर पर तैयारी की और न ही उनके बीच कोई तालमेल नजर आया। अपनी ढपली अपना राग अलापने का परिणाम अब सामने है।
महाराष्ट्र में भाजपा 132 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जिसने 2014 में 122 और 2019 में 105 सीटों के अपने पिछले दो सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया। यह महाराष्ट्र में भाजपा का सर्वाेच्च प्रदर्शन है, जिसमें 85 प्रतिशत से अधिक की स्ट्राइक रेट है। यह स्ट्राइक रेट गठबंधन के सभी सहयोगियों के साथ-साथ विपक्ष में भी सबसे अधिक है।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 79 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12.38 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 57 सीटें जीतीं। शिंदे ने सुनिश्चित किया कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ उनके साथ विद्रोह करने वाले विधायक चुने जाएं। इसके विपरीत, उद्धव के नेतृत्व वाली शिव सेना केवल 20 सीटें ही हासिल कर सकी। उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने कुल 59 सीटों पर चुनाव लडा और 41 सीटें जीतीं, जिसमें 9.01 प्रतिशत का वोट शेयर था, जबकि शरद पवार की एनसीपी-एसपी को 11.28 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन उन्हें केवल 10 सीटें मिलीं।
कांग्रेस की बात करें तो उसने लोकसभा चुनाव में 13 सीटें जीती थीं, लेकिन छह महीने के भीतर ही उसने यह बढ़त गंवा दी। विधानसभा चुनाव में 101 सीटों से चुनाव लड़ने के बावजूद उसे सिर्फ 16 सीटें ही मिल पाईं। उसका वोट शेयर 12.24 प्रतिशत रहा। इस हार का मतलब है कि राज्य विधानसभा के इतिहास में पहली बार विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा। क्योंकि, किसी भी विपक्षी दल को सदन की 288 सीटों में से 10 प्रतिशत सीटें भी नहीं मिलीं।
जहां तक भाजपा की बात है, हरियाणा चुनाव में आश्चर्यजनक जीत के बाद पार्टी ने गति पकड़ी है। लाडली बहना जैसी उसकी कल्याणकारी योजनाओं ने लोगों का दिल जीत लिया, जिसका सबूत महिलाओं का उच्च मतदान है। मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए राष्ट्रीय नेताओं को बड़े पैमाने पर उतारने के बजाय स्थानीय नेताओं और आरएसएस ने कड़ी मेहनत की। इसके विपरीत, राहुल गांधी जैसे प्रमुख कांग्रेस नेता महाराष्ट्र और झारखंड दोनों में ही जमीन पर मुश्किल से दिखाई दिए।