ये सागर की लहरें वो बादल के रथ। कहीं तो बनाऍं ठिकाना, चलो।।

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Photo courtesy Ajatshatru

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

*
नई मंज़िलों को है पाना, चलो।
ख़फ़ा हो तो हो ये ज़माना,चलो।।
*
वहाँ काले साॅंपों से डरना नहीं।
वहीं पर मिलेगा ख़ज़ाना, चलो।।
*
ये सागर की लहरें वो बादल के रथ।
कहीं तो बनाऍं ठिकाना, चलो।।
*
अभी रुकना, थकना मुनासिब नहीं।
चलेगा न कोई बहाना, चलो।।
*
हिमालय से आकाश भी पास है।
वहीं से पतंगें उड़ाना, चलो।।
*
जो “अनवर” सुनाई ग़ज़ल आपने।
यही चल के सूली पे गाना,चलो।।
*
शकूर अनवर
9460851271

 

 

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