
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
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नई मंज़िलों को है पाना, चलो।
ख़फ़ा हो तो हो ये ज़माना,चलो।।
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वहाँ काले साॅंपों से डरना नहीं।
वहीं पर मिलेगा ख़ज़ाना, चलो।।
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ये सागर की लहरें वो बादल के रथ।
कहीं तो बनाऍं ठिकाना, चलो।।
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अभी रुकना, थकना मुनासिब नहीं।
चलेगा न कोई बहाना, चलो।।
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हिमालय से आकाश भी पास है।
वहीं से पतंगें उड़ाना, चलो।।
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जो “अनवर” सुनाई ग़ज़ल आपने।
यही चल के सूली पे गाना,चलो।।
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शकूर अनवर
9460851271
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