विचार की दुनिया में एक अदद चाय का कप

-विवेक कुमार मिश्र के चाय पर तीनों महत्वपूर्ण कविता संग्रह चाय की दुनिया और चाय की उपस्थिति को अपने ही अंदाज में रेखांकित करते रहे हैं....

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-अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस पर विशेष…

– विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

चाय अपने रंग और स्वाद से , अपनी उपस्थिति से और अपनी उर्जा से अलग ही ध्यान खींचती है। चाय के साथ कोई तामझाम नहीं करना पड़ता, कुछ हो न हो, कोई जगह हो या न हो कहीं भी चाय पी जा सकती है और हर जगह साहब चाय के साथ बातें और हजार बातें और हजारों तरह की दुनिया होती हैं। आदमी चाय के साथ कदम मिलाकर चल देता है । यह चलना कुछ इस तरह होता है कि सुबह -सुबह आदमी चाय के साथ ही जीने की शुरुआत करता है । यह शुरुआत मूल्यवान तब हो जाती जब आपके साथ कौन बैठा है किस तरह के लोग उठते बैठते हैं – यदि चाय पर विचार यात्रा के लिए बैठते हैं तो आपकी रूचि विचार विमर्श और दुनिया की समझ में होनी चाहिए । दुनियादारी का ज्ञान , अपने आसपास का ज्ञान और अपने होने का ज्ञान , अपने अस्तित्व की गहरी पहचान आपको अपनी जगह अपनी स्थानीयता से जोड़ती है । यहीं से आप वैश्विक चिंताओं के मनुष्य बनना शुरू करते हैं। यानि की यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि आप विचारों की दुनिया से जुड़ते हुए अपनी मनुष्यता का विस्तार करते हुए अन्य मनस् के सुख दुःख उनकी चिंता और उनकी जिंदगी को अपनी जिंदगी और अपने विचार के साथ जोड़ कर देखना शुरू कर देते हैं। यहां से आप केवल स्वयं को नहीं जीते अपने स्व के साथ पर … अपने आसपास का संसार और वह जीवन संसार जो मनुष्य के रूप में मनुष्य को जीना चाहिए । उसे जीने का वोध प्रारंभिक तौर पर चाय की बैठकी के साथ होता है । चाय पर विचार बहसों के साथ इतना खुलापन की सारी बहसें , सारी विचार सरणिया यहां मित्रों को खुलकर अपने को अभिव्यक्त करने का अवसर देती हैं । मित्रता इन असहमतियों के बीच खिलती फूटती और फलती है …

” चाय सिगड़ी पर चढ़ी है
पक रही है
हां ! धीरे धीरे पक रही है
चाय को किसी तरह की जल्दी नहीं

यद्यपि दुनिया इन दिनों जल्दी में है
न जाने कहां जाने की तैयारी कर रही है
पर चाय को कोई फर्क नहीं पड़ता
कि कौन कहां जा रहा है कहां से आ रहा है

चाय तो चाय की गति लिए पक रही है
और पक जाने के बाद
उम्मीद की तरह आ जायेगी
अपनी दुनियादारी में अपने होने में
और संवाद का पुल रचने में

इस तरह चाय पकते पकते आ जाती है
हड़बड़ी में चाय नहीं होती
फिर इतनी हड़बड़ी क्यों
चाय है , चाय की तरह आयेगी

धीरे धीरे पक कर ,
कड़क और ताजगी से भरपूर
चाय के साथ मन का ताप
मन का राग और इच्छाओं की दुनिया
आ जाती है

चाय कहां अकेले आती
सर्द रातों में अपनी गर्माहट से साथ निभाती
जब कोई नहीं हो तो भी चाय कवि की मेज पर
कलम कागज के साथ , साथ निभाती
एक दूसरे के सुख – दुःख से संवाद करते
चाय रच देती है दुनिया और विचारों का
लम्बा पुल जिस पर
कवि पूरी एक दुनिया लेकर चलता है
कवि के यहां चाय संवाद का जरिया है । ”

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यहां चाय एक उर्वर जमीन तैयार करती है । आपके मन के भाव जैसे हैं ठीक वैसे ही रूप रंग चाय लेने लगती है । चाय खोलती है, जीवन को पढ़ने का हुनर देती है और ज्ञान संसार में रस घोलने का काम कोई और नहीं चाय ही करती रहती है। चाय को कभी भी अकेले ठाठ बनाते नहीं देखा , चाय है तो तरह तरह का साथ है, अनुभव का संसार है और संसार का राग रचता ही जाता चाय पर दुनिया। चाय पर दुनिया भर की बातें आती रहती हैं । जब तब एकरसता ज्यादा ही बढ़ जाती तो एकरसता को तोड़ने के लिए आदमी चाय पर चल देता है । कुछ कदम चलते ही चाय मिल जायेगी । हर इलाके में सड़क के विस्तार के साथ साथ चाय के कोने / थड़ी / चाय का ठेला मिल जायेगा । बड़ा से बड़ा ढ़ाबा ही क्यों न हो यदि चाय की व्यवस्था नहीं है तो लगता है कि फिर क्या। यहां तो रुके ही चाय के लिए हैं और चाय नहीं तो चलते हैं फिर कहीं आगे चाय मिलेगी। चाय मिलेगी । चाय की खोज चलते चलते पूरी हो जाती है । यह सब चाय के रंग चाय के स्वाद और चाय के प्रति आम से लेकर खास जन तक सभी का झुकाव कुछ इस तरह रहता कि कभी ऐसा लगता ही नहीं कि आप चाय पर अकेले हैं । आपके साथ आपके पास अनगिनत चेहरे चाय की खोज में या चाय के साथ मिल जायेंगे और चाय की यहीं ताकत उसे पूरी दुनिया से जोड़ने और जुड़ने का अवसर देती है ।

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चाय गली के नुक्कड़ से लेकर बड़े बाजार , फैक्ट्री , कॉलेज , विश्वविद्यालय आफिस या वह कोई सी जगह हो सकती है जहां आसपास के कुछ लोग आ जाते हैं । कुछ लोगों का इधर से आना जाना होता हो बस चाय की दुनिया भी इस दुनिया के साथ जुड़ जाती है । छात्रावास , कालेज विश्वविद्यालय और आफिस के साथ साथ वह एरिया जहां अधिक से अधिक लोगों का आना जाना थोड़ा ठहरना होता वहां चाय के लिए जगह हो जाती है । हॉस्टल से एक सौ मीटर दूर चाय की दुकान है पढ़ते पढ़ते जब थक जाते तो चलें चाय पी लिया जाये और एक दो साथी को लेकर चल देते और चाय पीते पीते बहुत सारी बातें बहसें अखबार की कतरनें सब सामने आ जाती । दुनिया भर में क्या चल रहा है यह हॉस्टल के सामने चाय की दुकान पर चलता रहता और यहां सबके हिसाब से चाय बनती रहती कौन कैसा है उसका स्वभाव मन सब चाय मालिक वीरेंदर को पता रहता और उस हिसाब से चाय के गिलास सामने आ जाती आपको कहना भी नहीं पड़ता कि कैसी चाय पीनी है जैसा आपको चाहिए वैसा मिल जाता । चाय पीते और बहसें करते चलें आ रहें हैं कि कई बार ऐसा भी होता कि दूसरा दौर भी चाय पर चल पड़ता । इस तरह चाय की दुकान मित्रों की दुनिया और विचार व बहस के लिए सबसे खुली जगह होती । चाय पर विचार करने की स्वतंत्रता हमेशा बनी रहती और असहमति मित्रता के बीच कभी बाधक नहीं होती। यहां से आप न केवल विचार करना सीखते वल्कि विचार के साथ जीवन पथ पर कैसे चला जाता है यह समझने का अवसर यहीं से मिलना शुरू होता । चाय के साथ आप से आप कदम चल पड़ते हैं । चाय के प्रति लगाव आदमी को खींचता रहता है । कुछ ऐसे कि पूछिए मत। यह साथ चलने का बहाना भी होता और बहुत बार ऐसे ही चाय पर चल देते पर जब चाय आपके भीतर से बोल उठे कि समय हो गया अब तो चाय चाहिए ही चाहिए और उस समय पर चाय मिल जाये तो फिर बात बनती है । चाय के किनारे से तरह तरह की कहानियां शुरू हो जाती हैं और इस बीच जो समय बनता है वह एक तरह से आपको गढ़ने का काम करता है । आपकी स्वयं की दुनिया और स्वयं की सोच एक तरफ और चाय के साथ चाय के रंग में जुड़ी दुनिया की सोच अनुभव का विस्तार करने लगती है । एक न एक विचार एक न एक नया आइडिया आ ही जाता जो चाय के साथ शुरू होता है और आपके दिमाग पर इस तरह क्लिक करता है कि यह कार्य आप करें । यह आप ही कर सकते हैं और आपको ही करना है । फिर चाय की सुनते हुए निश्चित ही यदि उस दिशा में उस कार्य में आप अपने को पूरे मन से लगाते हैं तो सफलता मिलेगी । यह कोई और नहीं चाय के साथ चलने वाला अनुभव कहता है । आपके मन को समय समय पर राहत दिलाता है तो मन को ताकत देने का काम एक नई ताजगी और नया उत्साह भरने का काम भी चाय के साथ हो जाता है । चाय सीधे सीधे हमारी चेतना को जागृत करती है और चेतना के साथ गतिशील भी होती है । चिंतन मनन और विचार की दुनिया से निकली बात को संभालने के लिए एक अदद चाय का प्याला या चाय का कप होना चाहिए । सोचते विचारते हुए चाय का एक एक घूंट आनंद में , चाय के रंग में और स्वाद में खो जाने का अवसर देता है।

 

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डॉ.रमेश चन्द मीणा
डॉ.रमेश चन्द मीणा
26 days ago

सुंदर