
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

रंगे-सियासत* उखड़ा-उखड़ा।
नज़्मे-हुकूमत* बिखरा-बिखरा।।
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मद्धम-मद्धम चाॅंद-सितारे।
रात का चेहरा उतरा-उतरा।।
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सूरज का वो क़हर* बपा है।
हर कोई है सहमा-सहमा।।
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सुलझी हुई है उसकी ज़ुल्फ़ें।
अपना मुक़द्दर उलझा-उलझा।।
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हिज्र* में ऑंखें भीगी-भीगी।
इश्क़ का दरिया सूखा-सूखा।।
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ख़त्म हुआ है चलो इलेक्शन।
नेताओं ने पल्ला झाड़ा।।
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मैखाने पर उतरे पंछी।
रास न आये काशी-काबा।।
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मेरे ही तो नक़्श* मिलेंगे।
जंगल-जंगल सेहरा-सेहरा*।।
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जीवन की इस जंग को “अनवर”।
मर जाऊॅंगा लड़ता-लड़ता।।
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शब्दार्थ:-
रंगे-सियासत*राजनीति का रंग
नज़्मे-हुकूमत*शासन व्यवस्था
क़हर*प्रकोप
हिज्र*वियोग जुदाई
नक्श*चिन्ह निशान
सेहरा*रेगिस्तान
शकूर अनवर
9460851271