आम के पेड़ , कच्चे आम और गर्मी के दिनों में जीवन का आनंद

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आम के पेड़ों ने उबलती गर्मी में भी जीने का मर्म दिया और जीवन दिया। आम के इसी रस बोध को लेकर आप जीवन जी सकते हैं कि जीवन में कुछ भी मीठा मीठा सा नहीं होता न ही सबकुछ खट्टा खट्टा … जीवन तो खट्टे और मीठेपन के बीच घुला घुला चलता रहता है । संसार मन और जीवन इस मीठास से भरे खट्टेपन के बीच जिंदगी की तरह घूमता रहता है और आप इसी के साथ जीवन का आनंद लेते हुए कदम बढ़ाते चलें तभी तो संसार के अनंत रंग आपके इर्द-गिर्द घूमता रहेगा।

– विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

जैसे जैसे गर्मी बढ़ती है और लूं से भरी हवाएं चलना शुरु होती हैं वैसे वैसे दिन आमों के बाग में कटने लगते हैं। हर आम अलग ही अंदाज में अपनी ओर खींचता है। पक्के और बड़े आम जहां अलग से ही बुलाते नजर आते हैं वहीं कच्चे हरे आमों का आकर्षण ही अलग है। कच्चे आम तोड़कर खाने का जो सुख है वह भला और कहां। कच्चे आम जिसमें मिठास भी होती और खट्टापन भी। अब आम है तो खट्टापन तो लिए होगा ही होगा पर यदि आम मीठा हो गया तो जो खट्टेपन से मीठापन आता है वह तो अलग ही सुख देता है। ऐसे आम को खाने का‌ सुख ही अलहदा है। यह सब अनिर्वचनीय सुख है। आम को देखते और आम को खाते हुए आदमी की मनोदशा पर विचार करते हैं तो आनंद की रसधारा उमड़ पड़ती है। एक दौर था जब हर पेड़ पर जो आम होता उसकी एक एक विशेषता जुबान पर थी, अब वो दिन नहीं रहे वे सारे आम भी एक एक कर गिरते जा रहे हैं। एक एक कर आम खतम होते जा रहे हैं और फिर वैसे बड़े आम के पेड़ अब लग भी नहीं रहे हैं। अब तो कलमी आमों का जमाना है। पहले की तरह के विशाल आम के पेड़ अब नहीं दिखते। अब जो आम के पेड़ दिखते हैं वे होते तो छोटे ही हैं पर फलते बहुत मन से हैं और एकदम से पेशेवर अंदाज में फलते हैं। ऐसे आम के पेड़ों पर फल ही फल होता और इसपर आम इतना नजदीक होता कि आसानी से हाथों में आ जाता है। आम हाथ में आ जाएं फिर क्या फिर तो खाने के लिए मुंह में पानी आ ही जाता। आम को देखने और खाने का सुख ही अलग है और यह सुख बच्चे बूढ़े कोई नहीं छोड़ता, सब आम के पेड़ के आसपास ही मंडराते रहते हैं। आमों की दुनिया तरह तरह से अपनी ओर खींचती है। आम की छोटी छोटी फांक लेकर आदमी कुतरता ही रहता है और एक समय ऐसा भी आता है आम खाते खाते दांत कोट हो जाते हैं दांतों की काटने वाली शक्ति खत्म हो जाती है, स्वाद भी नहीं आ पाता पर आदमी आमों की ओर भागता रहता है। यह आम ऐसा है तो वह आम वैसा और ऐसे ही आमों के बीच जिंदगी कट सी जाती है। आम के पेड़ों ने उबलती गर्मी में भी जीने का मर्म दिया और जीवन दिया। आम के इसी रस बोध को लेकर आप जीवन जी सकते हैं कि जीवन में कुछ भी मीठा मीठा सा नहीं होता न ही सबकुछ खट्टा खट्टा … जीवन तो खट्टे और मीठेपन के बीच घुला घुला चलता रहता है। संसार मन और जीवन इस मीठास से भरे खट्टेपन के बीच जिंदगी की तरह घूमता रहता है और आप इसी के साथ जीवन का आनंद लेते हुए कदम बढ़ाते चलें तभी तो संसार के अनंत रंग आपके इर्द-गिर्द घूमता रहेगा । आम खाने का सुख ही अलग है। जब आम से पेड़ लद जाता है तो बस आम ही आम दिखता है । आम पत्तियों के साथ पत्तियों के बीच पत्ते जैसा ही हो जाता है। आम को देखते ही मन आम पर आ जाता है और आदमी आम पाने का जतन करने लगता है । वैसे भी बचपन में खेत खलिहान , बाग बगीचे अपनी ओर अनायास ही बुला लिया करते थे । सोचकर बगीचे की ओर पैर नहीं बढ़ते थे वे तो यूं ही बगीचे की ओर कदम बढ़ा लेते और जब आप बगीचे तक चले गये तो आप से आप कच्चे आम अपनी ओर खींच लेते थे । आम को देखने का सुख ही अलग है । आम के टिकोरे जिंदगी में रस ही घोलते हैं । कच्चे आम पत्तियों के बीच से ऐसे झांकते हैं कि आदमी ही आदमी से बातें कर रहा हों । आम के टिकोरे पत्तियों के बीच से ऐसे आ जाते हैं कि उनमें एक साथ रस, स्वाद और जीवन अनुभूतियों के घुले रस को आप पढ़ सकते हैं । आम के टिकोरे यह कहते हुए चलते हैं की इन गर्मियों में कोई और साथ दे या न दे पर आम के ये छोटे-छोटे टिकोरे आपका साथ देते हुए चलते हैं । कैसी भी उमस भरी गर्मी क्यों न हो यदि आप आम के इन टिकोरों के साथ हैं और साथ में प्याज हो तो फिर क्या कहना । आम और प्याज की छोटी छोटी कतरन और उसमें थोड़ा नमक थोड़ा भरा मिर्चा और सरसों का तेल मिलाकर खेलते कूदते गर्मी की छुट्टियां काट दी जाती थी । आज जरूर यह किसी पिछले जमाने में जाने जैसी बात लगती होगी पर एक समय था जब संसाधनों से ज्यादा आदमी एक दूसरे का मन देखता था , मन देखते आदमी को किसी संसाधन से नहीं मन से ही खुशी मिलती थी। आप कहीं से चलें आ रहे हैं, गर्म हवाओं के थपेड़े पड़ रहे हैं सब धू धू कर जल रहा है तो ऐसे में बाग बगीचे और खासकर आमों के बाग एक राहत की तरह होते थे । आम के पेड़ से कुछ कच्चा आम गिरा लिया साथ में दो चार प्याज लेकर चलते ही थे लोग और ये सब साथ में एक पूंजी की तरह से थी , फिर कैसी भी गर्मी क्यों न पड़ रही हों आराम से काट देते थे लोग। इस समय बगीचों में तरह तरह से खेल खेलते रहते थे। एक खेल ओल्हा पाती का था जिसमें एक लकड़ी के डंडे को पैर के भीतर से निकाल कर दूर तक फेंक दिया जाता था और उस बीच सब पेड़ पर चढ़ जाते थे पेड़ पर चढ़ना उतरना भागना और इन सबके बीच जब थक जाते थे तो किसी बड़े आम की जड़ें जो अलग ही तरह से भारी और मोटी होती थी उस पर बैठकर आराम से कच्चे आम को कतर कतर कर काटा जाता था, आम को देखते ही मुंह में पानी आ जाता था, छोटे बड़े सभी इस आनंद के साक्षी हुआ करते थे, गर्मियां जब आती थी तो तरह तरह से आनंद को लेकर आती थी , तब घूमने जाने के लिए कहीं और नहीं अपने गांव घर ही हुआ करते थे और गर्मी के दिनों में पूरा गांव ही अपने अपने काम पर लगा रहता था । किसी को किसी से इर्ष्या नहीं थी और रही भी होगी तो कम ही दिखती थी । सब एक दूसरे के काम आने में विश्वास रखते थे । यदि किसी के पेड़ से किसी ने आम तोड़ लिया या किसी के खेत से कोई प्याज निकाल लाया तो कोई बुरा नहीं मानता था एक तरह का प्रेम और अधिकार का भाव था , सब सबसे एक दूसरे को जानते हुए विश्वास के धागे में ऐसे बंधे हुए होते थे कि कोई किसी को न तो मना कर पाता था और न ही बुरा मानते थे । खेत खलिहान और बाग बगीचे रस के अथाह सागर थे , यहां सब खेलते थे और मन से खेलते थे । यहां मन लगता था और मन रमता भी था । आम की इन अमराईयों में जीवन कम से कम संसाधन में भी किसी स्वर्ग से कम न था । यहां जो था वो पूरा मगन था और आम की पत्तियों के बीच छिपे और दिखते हुए आमों के संग साथ मानों जीवन तरह तरह से लीला करता हुआ सबके साथ चलता था ।

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