
कलगी बाजरे की
हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरे बाजरे की।
अगर मैं तुमको ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद् के भोर की नीहार-न्हायी कुँई।
टटकी कली चंपे की, वगैरह, तो
नहीं, कारण कि मेरा हृदय उथला या सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है
बल्कि केवल यही: ये उपमान मैले हो गए हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच।
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है
मगर क्या तुम नहीं पहचान पाओगी :
तुम्हारे रूप के, तुम हो, निकट हो, इसी जादू के
निजी किस सहज गहरे बोध से, किस प्यार से मैं कह रहा हूँ-
अगर मैं यह कहूँ-
बिछली घास हो तुम
लहलहाती हवा में कलगी छरहरे बाजरे की?
आज हम शहरातियों को
पालतू मालंच पर सँवरी जुही के फूल-से
सृष्टि के विस्तार का, ऐश्वर्य का, औदार्य का
कहीं सच्चा, कहीं प्यारा एक प्रतीक
बिछली घास है
या शरद् की साँझ के सूने गगन की पीठिका पर दोलती
कलगी अकेली
बाजरे की।
और सचमुच, इन्हें जब-जब देखता हूँ
यह खुला वीरान संसृति का घना हो सिमट जाता है
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित।
शब्द जादू हैं-
मगर क्या यह समर्पण कुछ नहीं है ? – अज्ञेय
– विवेक कुमार मिश्र

आधुनिक हिंदी कविता के नये प्रतिमान गढ़ने वाले कवि अज्ञेय के यहां बाजरे की छवि सौंदर्य का जहां नया प्रतिमान कलगी बाजरे के रूप में गढ़ी गई है वहीं यहां से जो सौंदर्य फूट रहा होता है वह देखते ही बनता है । बाजरे का खेत सौंदर्य की एक अलग ही सृष्टि है। एक अलग ही दुनिया में लेकर चला जाता है जहां वह सब कुछ हो सकता है जो सौंदर्य की परिधि में आता है, सौंदर्य की परिभाषा करने में सहायक होता है जैसे की ताजगी , नयापन, लहरना, हवा में उड़ते जाना , बल्लियों बल्लियों उछलना , तरंगे और भी बहुत कुछ जो प्राण तत्व से स्पंदित है वह सब कलगी बाजरे की ध्वनि में समा कर सामने आती है । अज्ञेय के यहां सौंदर्य को एक नये रंग में ढाला गया है जो नया है, जो चमक लिए है जिसमें जादुई हरापन है और जीवन की चमक और चहक है और जब यह बाजरा लहरता है तो ऐसा लगता है कि आसमान में ही लहरा रहा है यह लहक आसमान को ही छुने के लिए दौड़ सी पड़ती है । इसीलिए तो कवि अब अपने नायिका के सौंदर्य को आंकने के लिए बाजरे की उपमा देता है पुराने सौंदर्य के सारे प्रतिमान धरे रह जाते हैं और एकदम से लहराता हुआ बाजरा आंखों के आगे नायिका के रूप में जीवंत हो उठती है कवि कहता है कि –
‘हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरे बाजरे की।
अगर मैं तुमको ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद् के भोर की नीहार-न्हायी कुँई।
टटकी कली चंपे की, वगैरह, तो
नहीं, कारण कि मेरा हृदय उथला या सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है
बल्कि केवल यही: ये उपमान मैले हो गए हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच।’
पुराने सौंदर्य के प्रतिमान से आज की दुनिया को आज के सौंदर्य को परिभाषित नहीं किया जा सकता है । अब तो सौंदर्य का टटकापन नई चमक और लहरना ही नायिका की छवि को बाजरे की छवि के साथ समानांतर रखने पर समझ में आता है । यह सौंदर्य हवा में लहरता है , जीवन की चमक लिए आता है और लचक और चमक ऐसी की बस देखते रहिए । बाजरे का लहराना सौंदर्य का एक अलग ही प्रतीक है । बाजरे के खेत अलग ढ़ंग से ध्यान खींचते हैं, ऐसा लगता है कि बाजरा हवा में लहराते हुए आसमान तक खींचा चला जाता है । बाजरे में लचक होती है , उसका लहराना मन को भाता है और यह भी है जब आग बरस रहा हो तब भी हवा में कोई और नहीं बाजरा ही लहराते हुए मिलता है, हरापन का एक रंग ही हवा के साथ, बाजरे के साथ चल पड़ता है । चिलचिलाती धूप में आंखों को जो सुकून मिलता है वह बाजरे के छोटे-छोटे लहराते खेत से ही मिलता है । यह बाजरा लहराते हुए मन को जहां भाते हैं वहीं जैसे लगता है कि जीवन की किरणें ही लहरा रही हों । यहां ऐसे लगता है कि सौंदर्य आसमान तक ही खींचा चला जायेगा, बाजरा लहराता ही रहता है, झूमता रहता है और हवा में ऐसे उड़ता है कि आसमान में ही चला जायेगा । सौंदर्य की जमीन को थाम कर लहराता बाजरा मानों सबके मन को ही छुने के लिए चल पड़ता है । कलंगी बाजरे की सौंदर्य का एक ऐसा प्रतिमान बन जाता है कि आधुनिक हिंदी कविता की अलग से पहचान निर्मित करने वाले कवि अज्ञेय का बाजरे को ही नायिका के सौंदर्य में न केवल देखा गया बल्कि पुराने सारे सौंदर्य के प्रतिमान को खारिज करते हुए अज्ञेय ने नायिका को कलंगी बाजरे की कहा तो जो बात समझ में आती है वह यहीं है कि बाजरे में जो लचक है, जो नयापन है, जो टटकापन है वहीं सौंदर्य को एक सिरे से रचने का काम करता है । सौंदर्य गति का रूपक है । सौंदर्य स्थिर स्थिति में नहीं रहता । वह निरंतर उर्ध्व दिशा में गति करते हुए आगे बढ़ता रहता है और यह गति भौतिक रूप से यदि सौंदर्य के पक्ष में देखें तो बाजरे में दिखती है । बाजरे के पौधे जब हवा में लहराते हैं तो उसमें उमंग दिखती है, जीवन का कांपता हुआ सौंदर्य दिखता है और एक असीम सी चाह दिखती है, एक राहत , एक छांव और हरापन का लचक से भरा जो रंग है वह एक साथ मन को, आंख को तृप्त करता है। यहां से सौंदर्य की चंचलता को भी पढ़ा जा सकता है, और उस जीवटता को भी देखा जा सकता है जो चिलचिलाती धूप में, गर्म हवाओं के बीच भी चमक लिए जादुई रहस्य के साथ हिलोरें लेती रहती है । यह जो बाजरा है वह सौंदर्य का एक अलग ही प्रतिमान प्रकट करता है । हवा में लहराते हुए बाजरे की लहर को हर कोई महसूस करता है । इस बाजरे के आगे सौंदर्य के सारे पुराने रूप फ़ीके पड़ जाते हैं । यह बराबर से देखने में आता है कि बाजरा हवा में लहरा रहा है जैसे कि नायिका के भीतर कंपन और तरंगे लहरा रही होती हैं । अक्सर यह देखने में आता है कि चिलचिलाती धूप में भी बाजरा लहरा रहा है , झूम रहा है और हवाओं में एक मस्ती घोल रहा है । जब आग बरसाने वाली गर्म हवाएं चलती हैं, जब मृग मरीचिका दिखती है और गर्म थपेड़ों के अलावा कुछ और नजर नहीं आता तो इन हवाओं के बीच ही सुकून से भरी एक छांव बाजरे के खेत से उठती है । लहराती हवाओं के बीच झूमते हुए बाजरे जीवन का गीत गाते हैं । जीवन राग का , सौंदर्य की उर्जा का और मन की तरंग का भाव बाजरे जैसे ही लहरा रहा होता है । बाजरे की गति जीवन में रंग भरने का काम करती है । बाजरे के साथ मन एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है । इन दिनों गर्म हवाओं के बीच पानी की चमक , पत्तियों का रंग और सौंदर्य का लहराता तना एक साथ बाजरे के रूप में झूम रहा है । यहां से बाजरे के खेत जीवन की कथा लिख रहे होते हैं । जब हवाएं आसमान से नीचे उतरती हुई महसूस होती है तो दूर क्षितिज पर बाजरे लहरा रहे होते हैं । इस भयानक गर्मी में जेठ की अगियायी दुपहरी में आंखों को राहत और सुकून देने वाले नज़ारे के रूप में बाजरे के खेत लहराते हुए दिखते हैं । बाजरे की एक धुन होती है । वह हवा में लहरता रहता है । नीचे से ऊपर तो उपर से नीचे एक कंपन सा चलता रहता है । एक हरा भरा संसार बाजरे के खेत के इर्द-गिर्द बन जाता है । बाजरे के छोटे-छोटे खेत किसानों के द्वारा अपने पालतू पशुओं को हरा चारा खिलाने के लिए तैयार किया जाता है । यह जहां चारे के रूप में उपयोग में लिया जाता है वहीं पौष्टिक अन्न के रूप में श्री अन्न के रूप में भ बाजरे की गिनती होती है । बाजरा बहुत ही पौष्टिक और मोटा अनाज है, इसे खाकर हमारे किसान मजदूर और सभी लोग तन मन से अपने को चंगा महसूस करते हैं । बाजरे की रोटी का स्वाद अद्भुत सुख लिए होता है । बाजरे का अपना ही सौंदर्य है । यह सौंदर्य हर क्षण एक नई चमक और लहक लिए आंखों के आगे आ जाता है।