एयर इंडिया एआई-171 अति दुःखद हादसा: शोक से सबक तक का सफ़र

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फोटो सोशल मीडिया

-सन्दर्भ: एआई-171: एक उड़ान, जो राष्ट्रीय शोक बन गई

-डॉ सुरेश पाण्डेय

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डॉ. सुरेश पाण्डेय

दिनाँक 12 जून 2025 का दिन भारतीय विमानन इतिहास के सबसे दुखद और भयावह हादसों में से एक बन गया। एयर इंडिया की उड़ान संख्या एआई-171 ने जब दोपहर 1 बजकर 38 मिनट पर अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लंदन गैटविक के लिए उड़ान भरी, तब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि कुछ ही मिनटों में यह बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान 242 यात्रियों समेत एक भीषण त्रासदी का शिकार हो जाएगा। उड़ान भरने के कुछ मिनटों बाद ही विमान मेघानी नगर के रिहायशी इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुर्घटना में लगभग सभी यात्रियों की मृत्यु हो गई, केवल दो लोग ही चमत्कारी रूप से जीवित बचे। इस हादसे ने न केवल भारत को, बल्कि पूरी दुनिया को गहरे शोक में डुबो दिया।

हादसे में पूर्व गुजरात मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की मृत्यु ने देश को और अधिक पीड़ा पहुंचाई। जब विमान का मलबा जल रहा था और काले धुएं के गुबार उठ रहे थे, तब बचाव दल जीवन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे और पूरी दुनिया इस दृश्य को भय और दुःख के साथ देख रही थी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, पोप लियो चौदहवें और इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जैसे अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने संवेदनाएं व्यक्त कीं।

घटना की प्रारंभिक जांच में कुछ चौंकाने वाले तथ्यों का संकेत मिला है। पायलटों ने दुर्घटना से ठीक पहले ‘मेडे’ कॉल दी थी, जो किसी गंभीर तकनीकी संकट की ओर इशारा करता है। विमान मात्र 625 फीट की ऊँचाई पर ही स्थिर हो गया था, जो जोर की कमी की ओर संकेत करता है। विमानन विशेषज्ञों ने यह आशंका जताई है कि अहमदाबाद के आस-पास पक्षियों की अधिकता के कारण एक से अधिक बार पक्षियों से टकराव (बर्ड स्ट्राइक) हुआ होगा, जिससे विमान के जनरल इलेक्ट्रिक जेनएक्स इंजन पूरी तरह से खराब हो गए होंगे। वहीं कुछ विशेषज्ञों ने यांत्रिक गड़बड़ी या पायलट त्रुटि की भी संभावना जताई है, क्योंकि विमान के पंखों के फ्लैप्स का असामान्य ढंग से मुड़ जाना और लैंडिंग गियर का खुले रहना सामान्य प्रक्रिया से अलग था।

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फोटो सोशल मीडिया

बोइंग 787 विमान, जिसे 2011 से अब तक एक सुरक्षित और भरोसेमंद विमान माना जाता था, उसके साथ यह पहला घातक हादसा हुआ है। यह विमान ग्यारह वर्षों से सेवा में था, लेकिन अब उसके रखरखाव और देखभाल प्रणाली पर प्रश्नचिह्न उठ रहे हैं।

भारत पहले भी कई ऐसे त्रासदियों से गुज़र चुका है जो विमानन प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करती हैं। 1978 में मुंबई के पास एयर इंडिया की उड़ान 855 समुद्र में गिर गई थी, 1985 में उड़ान 182 एक आतंकवादी बम धमाके का शिकार हो गई, 1996 में चारखी दादरी में दो विमानों की टक्कर में 349 लोग मारे गए, 2010 में मंगलौर में टेबलटॉप रनवे से विमान फिसलने के कारण 158 लोगों की मौत हुई और 2020 में कोझिकोड में रनवे पर फिसलकर 21 लोगों की जान चली गई। इन सभी हादसों ने यह सिद्ध किया है कि मानवीय भूल, तकनीकी खामियां और कमजोर नियमन एक गहरा खतरा बन चुके हैं।

अब समय आ गया है कि हम भविष्य में इस प्रकार की दुर्घटनाओं को रोकने हेतु ठोस और साहसी कदम उठाएं। अहमदाबाद जैसे पक्षी प्रभावित क्षेत्रों में पक्षियों से टकराव की घटनाओं को रोकने के लिए रडार प्रणाली, प्रशिक्षित शिकारी पक्षियों की तैनाती और नियमित निगरानी आवश्यक है। पुराने विमानों की समय-समय पर गहन जांच होनी चाहिए और भारी ईंधन से लदे विमानों के रखरखाव के मानकों को और अधिक सख्त किया जाना चाहिए।

पायलटों को केवल तकनीकी प्रशिक्षण ही नहीं बल्कि संकट के समय निर्णय लेने, सहकर्मियों के साथ समन्वय और चेतावनियों पर तत्पर प्रतिक्रिया देने का भी प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए। विमानन नियंत्रण संस्था की भूमिका केवल प्रतिक्रिया देने तक सीमित न रहे, बल्कि वह अग्रसक्रिय और सतर्क होकर जोखिम की पहचान करे और उन्हें रोकने के उपाय पहले से लागू करे।

सन 2019 में अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन द्वारा किए गए निरीक्षण में भारत की हवाई यातायात सेवाओं में कई खामियों की ओर इशारा किया गया था। इन खामियों को दूर करने की दिशा में अब गंभीरता और निरंतरता से कार्य करना आवश्यक है। उन हवाई अड्डों पर जहाँ जोखिम अधिक है, वहाँ इंजीनियर किए गए विशेष अवरोधक पदार्थों से बनी प्रणाली को स्थापित किया जाना चाहिए ताकि रनवे से आगे फिसलने की स्थिति में विमान को रोका जा सके।

हर दुर्घटना की जांच पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से होनी चाहिए तथा पीड़ित परिवारों के साथ संवेदनशील संवाद बना रहना चाहिए ताकि उनकी भावनाओं का सम्मान हो और व्यवस्था में उनका विश्वास कायम रहे।

इस भयानक हादसे में केवल दो लोग बच पाए, जिनमें से एक ब्रिटिश नागरिक विश्‍वास हैं। उनका जीवित बचना इस त्रासदी में एक उम्मीद की किरण है, लेकिन साथ ही यह भी याद दिलाता है कि सुधार की आवश्यकता अत्यंत गंभीर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नागर विमानन मंत्री राममोहन नायडू राहत कार्यों में जुटे हैं, लेकिन अब वक्त है पूरे देश को यह संकल्प लेने का कि हम अपने आकाश को सुरक्षित बनाएंगे। यह हादसा केवल शोक का नहीं, चेतना का क्षण है—हम सबको बदलना होगा ताकि 242 आत्माएँ, जिन्होंने इस उड़ान में अपना जीवन खोया, व्यर्थ न जाएँ। भारत को अब इस घटना को परिवर्तन की नींव बनाना होगा।

भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हवाई अड्डों के आस-पास वन्यजीव नियंत्रण के लिए रडार, ध्वनि उपकरण और प्रशिक्षित पक्षियों का प्रयोग होना चाहिए। पुराने विमानों की नियमित गहन जाँच, विशेषकर लंबे रूट पर उड़ने वाले विमानों की, अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। पायलटों को केवल उड़ान संचालन नहीं, बल्कि संकट प्रबंधन, टीम समन्वय, और चेतावनी संकेतों पर शीघ्र प्रतिक्रिया देने का गहन प्रशिक्षण मिलना चाहिए। विमानन नियामक संस्थाओं को प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि पूर्वसक्रिय, जागरूक और जिम्मेदार भूमिका निभानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन की रिपोर्ट में जिन खामियों की पहचान की गई थी, उन्हें दूर करने के लिए ठोस और तेज़ कदम उठाए जाने चाहिए। उन हवाई अड्डों पर जहाँ रनवे से आगे फिसलने की संभावना रहती है, वहाँ विशेष अवरोधक प्रणाली लगाई जाए जो विमान को बिना क्षति के रोक सके। दुर्घटना के बाद की जाँच पूरी तरह पारदर्शी हो और प्रभावित परिवारों को समय पर स्पष्ट सूचना मिलती रहे—यह व्यवस्था का दायित्व होना चाहिए।

अगर हम इन बातों को गंभीरता से लें और इन पर ईमानदारी से अमल करें, तभी हम आने वाले समय में अपने नागरिकों की जान को सुरक्षित रख पाएँगे और अपने देश की विमानन व्यवस्था को विश्वस्तरीय बना पाएँगे। सभी मृतक परिवारों के परिजनों को अश्रु पूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आईये हम इस प्रकार की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कृत संकल्पित होकर प्रयास करें।

डॉ सुरेश पाण्डेय

लेखक प्रेरक वक्ता, नेत्र चिकित्सक

कोटा

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