
-प्रो अनिता वर्मा

आज समय तेजी से भाग रहा है किसी के पास किसी को देखने सुनने बात करने की फुरसत नहीं है। सब भागे जा रहे है ।भौतिकवादी जीवन शैली के प्रभाव से कोई नहीं बच पाया है। उच्चवर्ग मध्यमवर्ग निम्न मध्यम निम्न वर्ग आर्थिक दृष्टि से जो भी किसी को अवसर मिलता है सब भागने लगते है। शहर हमेशा जागता रहता है मुश्किल से एक दो घंटे गाड़ियों की रफ़्तार थमती होगी। सब अपनी दुनिया में मस्त है । सुबह सुबह अगर चार बजे भी आप उठ जाते हो तो आप देखेंगे ऑटो रिक्शा पर सवारियां सब्जी बेचने वाले अपनी टोकरियाँ लादे बैठे दिखाई देंगे। दोस्त मित्र पड़ौसी सब अपने आप में मगन हो रहे है। इन दिनों परीक्षा कार्य होने के कारण कार्यस्थल पर जल्दी जाना होता है ये दृश्य रोज के हैं। लोग केवल एक बात कहते है समय ही नहीं है । घर से नौकरी ,नौकरी से घर बचा समय परिवार के लिए कुछ लोगों को तो यह पता नहीं पड़ौस में क्या हो रहा है? क्या तकलीफ है? किसी से बोले कितना समय हो गया? हालांकि अच्छी जीवन शैली के लिए अर्थ आवश्यक है । किन्तु मानसिक स्वास्थ्य के लिए सामाजिकता अत्यंत जरुरी है। मनुष्य हमेशा काम नहीं कर सकता उसे आराम की भी जरुरत होती है । समय सबके पास एक जैसा है । इसलिए त्यौहार ,मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पारिवारिक कार्यक्रम यात्राएँ तीर्थ यात्राएँ सबकी व्यवस्था है। परंतु बात यहाँ संवाद करने की है ।कई बार एक जैसे रूटीन से जीवन में नीरसता आ जाती है।हम सबके पास कहने सुनने को बहुत कुछ होता है । संवाद करने से जो हम कहना चाहते है बातों बातों में निकलता जाता है। हम भीतर से हल्के होते जाते है। मनुष्य ने अपने आसपास ऐसा वातवरण निर्मित कर लिया है। कि किसी की किसी से बात करने की हिम्मत नहीं होती या मन नहीं होता । सहजता बहुत जरुरी है। जीवन में सब जरुरी है ।घर, परिवार, नौकरी, पास- पड़ौस नहीं तो हम मनुष्य होने का धर्म कैसे निर्वहन करेंगे केवल अच्छा खाना होटल रेस्टोरेंट में, वीकेंड पर परिवार और परिजनों के साथ जाना। यही तो जीवन नहीं है। यहाँ यह तात्पर्य नहीं है कि आप किसी का किसी भी समय जाकर दरवाजा खटखटा दे। सुबह से लेकर शाम तक दस पांच मिनट जो भी परिचित हो पडौसी हो बच्चे बूढ़े जिससे जैसे बन पड़े चेहरे पर अच्छी सी मुस्कान लेकर केवल इतना ही पूछ ले बाबा कैसे हो? बच्चों आजकल क्या चल रहा है? अम्मा जी आप कैसी है?बस फिर डूब जाइये अपनी दिनचर्या में वह कुछ मिनट का समय आपके लिए बूस्टर का काम करता है सबके साथ समय प्रबंधन जरुरी है आप तरोताजा महसूस अवश्य करेंगे। घर परिवार की जिम्मेदारियां तो उठानी पड़ेगी। पर कभी -कभी यूँ ही किसी से बिना मतलब भी बातचीत कीजिये हाल पूछ लीजिये । अच्छा लगेगा उसे भी आपको भी। दिन भर काम के बोझ तले गाम्भीर्य ओढ़कर जीवन जीना मन और तन दोनों के लिए उचित नहीं है। आज एक बीमारी या कहें लत ने भी संवाद हीनता को जन्म दिया है । छुट्टी या समय मिलते ही ।लोग घरों में अपना मोबाइल खोल कर लीन हो जाते है घर में जितने सदस्य उतने मोबाइल कोई आपस में बात नहीं करते रील्स गेम्स देखकर या अपनी पोस्ट या जो भी उन्हें पसन्द हो मगन रहते है। पूर्व में चौपाल पर कहानी किस्से बात कहना आदि मनोरंजन के साधन तो थे ही वहाँ बच्चे, बूढ़े, युवा आदि सब एकत्र होकर सुनते उनमें जिज्ञासा पैदा होती थी,प्रश्न पूछते थे । उनमें औत्सुक्य का भाव प्रमुख होता था। आज बच्चों का बचपन महत्वाकांक्षाओ की भेंट चढ़ रहा है।सब भाग रहे है बच्चे कंधे पर बस्ता टांगे सुबह स्कूल चले जाते है माता पिता यदि दोनों कामकाजी हो तो सब सुबह निकल पड़ते है। शाम को सब थके टूटे रहते है। मन भर कर संवाद नहीं होता सब एक निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति कर रहे है।इन दिनों छोटे छोटे गांव के मध्य होकर कार्यस्थल तक मुझे जाना होता है। वहाँ अभी भी कुछ बुजुर्ग घर के बाहर चबूतरों पर बैठे बतियाते दिखाई देते है । सर्दी में अलाव तापते बुजुर्ग युवा हँसते खिलखिलाते सुबह शाम दिख जाते है। रास्ते में पड़ने वाले टोल कर्मी परिचित से हो चले है। स्टॉपर हटाने वाले कर्मी से एक दिन पूछ लिया,” कैसे हो इन दिनों गरमी खूब पड़ रही है” वह बोला क्या करें रोज का यही काम है। कुछ पलों की उस बातचीत ने उस कर्मी के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी। भले ही ये उसकी रोज की ड्यूटी है। पर उसे शायद ये लगा हो की किसी ने उसे भी नोटिस किया। यही संवाद उसके लिए ऊर्जा प्रदान करने वाला था। केवल दो बोल’ कैसे हो ?’ किसी भी मनुष्य की उदासी को, नकारात्मकता, अनमनेपन को दूर कर सकता है।आप जहाँ प्रतिदिन जाते है, कार्य करते है ,गुजरते है तो वहाँ के परिवेश और लोगों से अवश्य परिचित से हो जाते है। सब कुछ पहचाना सा लगने लगता है। अतः हो सके तो घर, परिवार, मित्रों से पड़ौस में रिश्तेदारों से परिवार में । पड़ौस में बुजुर्ग है तो समय निकाल कर हाँ.. समय निकालना पड़ता है.. उनसे संवाद अवश्य करना चाहिए। सबके पास व्यस्तता है उन्हीं में से कुछ पल चुराने हैं..फिर देखिये आप कैसे अच्छा महसूस करेंगें
आपकी थकान चेहरे की उदासी मिनटों में ग़ायब हो जायेगी।
प्रो अनिता वर्मा
कोटा राजस्थान