
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान के दो दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने बुधवार 11 जून को राजस्थान में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए एक जैसा बयान दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस एक जुट है। सभी नेता और कार्यकर्ता एकजुट रहकर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करेंगे और 2028 में पार्टी को वापस सत्ता में लेकर आएंगे।
गहलोत और पायलट दोनों ही प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी के सबसे बड़े दावेदार हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दोनों नेताओं के बीच 2018 से ही राजनीतिक मतभेद है। 2018 में मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रबल दावेदार सचिन पायलट थे। माना जाता है कि जब सचिन पायलट में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान संभाली थी, तब शर्त यह थी कि यदि प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस ने वापसी की तो, मुख्यमंत्री सचिन पायलट होंगे। सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने। इसको लेकर दोनों नेताओं के बीच विवाद भी हुआ और एक समय विवाद इतना बढा कि सचिन पायलट ने अशोक गहलोत सरकार को गिराने की चेष्टा भी की। यह आरोप पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगाते हैं।
2023 के विधानसभा चुनाव में भी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर विवाद नजर आया। कांग्रेस हाई कमान ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं बनाया। बल्कि ऐसा लगा जैसे मुख्यमंत्री का चेहरा अशोक गहलोत ही है। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस ने सत्ता को गंवा दी। मगर हाई कमान ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी में एक ऐसा फैसला लिया जिसकी बदौलत कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल की। 2024 से पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट के हाथों में थी तब कांग्रेस ने प्रदेश की 25 की 25 सीट हारी थी। मगर 2023 में प्रदेश की कमान गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली के हाथ में थी तब कांग्रेस ने प्रदेश में लोकसभा की 9 सीट जीती। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली की जोड़ी प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए कार्य कर रही है। विधानसभा से लेकर सड़क तक डोटासरा और जूली की जोड़ी में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दी है। डोटासरा जाट समुदाय से आते हैं और टीकाराम जूली दलित नेता है। राजस्थान में जाट और दलित समुदाय के लोग कांग्रेस के पारंपरिक मतदाता है। इसी वजह से राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी लगातार जीत कर अपनी सरकार नहीं बना पाती है। प्रदेश में एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार बनती है। प्रदेश में मौजूदा वक्त में कांग्रेस की जाट और दलित की जोड़ी प्रभावी है ऐसे में यदि कांग्रेस हाई कमान ने खासकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बहकावे में आकर या किसी भी प्रकार के संदेह में रहकर इस प्रभावशाली जोड़ी को छेड़ा तो प्रदेश में हरियाणा की जैसी स्थिति बन सकती है।
11 जून बुधवार के दिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए एक जुटता का परिचय दिया और कहा कि प्रदेश में हम सब नेता एक साथ मिलकर काम करेंगे। गहलोत और पायलट की यह बात कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तक निश्चित रूप से पहुंची होगी। अब राहुल गांधी और खरगे को फैसला लेना है और निर्देश देना है दोनों नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट को कि वह प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली की जोड़ी के साथ मिलकर पूरे प्रदेश में प्रोग्राम आयोजित कर कांग्रेस को मजबूत करें। अभी तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस के प्रोग्राम में कम ही देखा जा रहा है। सचिन पायलट की चाहत और महत्वाकांक्षा मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर अधिक है। वह अलग से अपनी राजनीतिक छवि बनाते हुए नजर आते हैं।
यदि देखा जाए तो प्रदेश में कांग्रेस कमजोर नहीं है। यदि कांग्रेस कमजोर दिखाई दे रही है तो इसका कारण अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कुर्सी को लेकर बड़ा विवाद है। राहुल गांधी इस भ्रम में ना रहे की प्रदेश में कांग्रेस तब मजबूत होगी जब यहां की कमान किसी दूसरे नेता के हाथ में देंगे। राहुल गांधी को चाहिए कि वह सचिन पायलट और अशोक गहलोत को कहें कि वह वर्तमान नेतृत्व के साथ मिलकर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करें। वर्तमान नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 9 लोकसभा सीट जीत कर परिणाम भी दिया है। राहुल गांधी का यह निर्णय और निर्देश प्रदेश के बड़े नेता गहलोत और पायलट को परख का सबसे बड़ा अवसर भी है। राहुल गांधी को गहलोत और पायलट की कथनी और करनी का फर्क भी पता चल जाएगा। राहुल गांधी को यदि राजस्थान में बदलाव करना ही है तो राजस्थान कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय प्रभारी सुखजिंदर को बदलें। क्योंकि सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कांग्रेस के संविधान को किनारे कर अपने व्यक्तिगत लेटर पैड पर प्रदेश कार्यकारिणी में दर्जनों पदाधिकारियों की नियुक्तियां कर बड़ा विवाद खड़ा किया था। यह विवाद आज भी बरकरार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)