
-विवेक कुमार मिश्र

स्मृतियों के घड़े से
चाय निकाल लाओ बाबू
न जाने कितनी कितनी
कहानियां किस्से और चाय के बनने के रंग जुड़े हैं
एक चाय मां बनाती थी
और मां की चाय ऐसी की
हर कोई पीना चाहे
उस चाय में सघन अनुभव की घुट्टी मिली थी
यह चाय जो मां बनाती
वह अलग ही स्पेशल चाय थी
बिल्कुल काली चाय,
जिसमें एक विशेष अनुपात में
काली मिर्च, अदरक , हल्दी ,
थोड़ा सा दालचीनी ,
और थोड़ी सी ही शक्कर ,
आधा कटा नींबू का रस
और इसी अनुपात में चाय की पत्ती भी
और पकाने का एक अंदाज था कि
इतनी आंच पर
चाय पक जायेगी
फिर क्या मां की चाय बनती
और सबके सब बातों संग
चाय के इस ज़ायके में ऐसे डूब जाते कि
फिर कहीं ऐसी चाय कहां मिलेगी
मां की चाय को सब बस देखते
और धीरे धीरे पीते
एक एक घुंट ऐसे पीते कि
आखिरी बूंद तक का स्वाद ले लेंगे
मां की चाय आह्लादित कर देती थी
इस चाय में जीवन रस का ऐसा स्वाद था
कि पूछो मत
आप कहीं से आये हों,
कैसे भी हालात हों,
तबियत ठीक हो या न हो
मां को पूरा भरोसा था कि
उनके एक कप चाय से
तबियत हरी हो जायेगी ,
सब ठीक हो जाएगा
यह चाय चाय से कहीं ज्यादा
प्रसाद की तरह बच्चों के उपर
एक आशीर्वाद सा था ….।