दिसंबर की चाय और दुःख के रंग

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– विवेक कुमार मिश्र

vivek kumar mishra
विवेक कुमार मिश्र

दिसंबर की चाय पकाते हुए
सबसे पहले जो बात
मन में आती है कि
दिसंबर की चाय…
ठंड से ठिठुरते आदमी को
सबसे पहले गर्माहट का अहसास दें

दिसंबर की चाय
चाय के बहाने से ही
उनके भीतर गर्म-गर्म आंच को भरें
गर्माहट का अहसास कराएं
और दिसंबर की शाम
सबसे पहले उसके लिए
कल के लिए
कुछ काम धाम की व्यवस्था करें
कम से कम इतना तो करें ही कि
कल के आगे कल भी
वह स्वयं और अपने परिवार के साथ
चाय और दाना पानी खाना ले सकें

दिसंबर की चाय से
इतनी प्रार्थना है कि
वह हर किसी के लिए जीने का सुख
चाय के साथ बांटती चलें

दिसंबर की चाय पीते हुए
यह अहसास बना रहे कि
जो कम्बल नहीं ले पाए
इस बार उनके लिए
कम से कम एक कम्बल की
व्यवस्था तो कर ही दें

दिसंबर की चाय
ठंडी हवाओं के मारे
दुखियारे के पास जाने के लिए
कहती ही न रहे
बल्कि उसके पास लें जाएं
उसके दुःख दूर कराने के लिए
मन को मजबूत ही न करें
बल्कि चमकीले स्वप्न दें

हां इतना ही नहीं
दिसंबर की चाय
बदल दें दुखियारों के दुःख
और दे दे उनके हाथों में गर्माहट का स्वाद
इससे आगे जीने का रंग और सुख

दिसंबर के हाथों कम से कम
इतना तो करते ही चलें कि
आसपास के दुखियारों के दुःख को
न केवल बदल सकें
बल्कि उसके स्वप्नों को भी चमकीला बना सकें ।

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