
– विवेक कुमार मिश्र

शीत लहर में जब हाथ को
हाथ भी सूझ न रहा हो
हवाएं काट खाने को दौड़ रही हो
जब एक कदम भी चलना मुश्किल हो
तब राहत का ठीहा
चाय की थड़ियों पर ही मिलता है
दहकते आग की भट्ठी पर खौलती चाय
गर्माहट का स्वाद दे जाती है
ये चाय कोई मामुली पेय नहीं है
यह औषधि की तरह से
जीवन को रस व स्वाद एक साथ प्रदान करती है
सर्द हवाओं के बीच
कांपते हाथों से
चाय के कुल्हड़ को पकड़ लिया है
चाय के कुल्हड़ से उठ रही भाप
इस समय जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है
कहते हैं कि जब शीत लहर में
कुछ भी सूझ न रहा हो,
कुछ भी साफ साफ दिख न रहा हो
तो उम्मीद की आग कहीं और से नहीं
चाय के प्याले से…भाप के रूप में उठती है
इस मौसम में कुछ भी
जब न कर सकने की स्थितियां बनती जा रही हों
तो केवल चाय ही है
जो उम्मीद का रास्ता दिखाती है
इस समय चाय के हर घूंट में
गरमागरम भाप और उम्मीद का रास्ता दिखता है
चाय जीवन से, सड़क से
और आंच से इस तरह जोड़ देती है कि
जीवन में चाय के अलावा
कोई और काम जैसे हो ही नहीं
चाय पर आदमी सेंक लेता है मन ,
जीवन की गणित और बनते बिगड़ते समय में
जीवन का सहज रास्ता ।