
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

बात समझो न इसको हैरत की।
अब ये दुनिया नहीं मुहब्बत की।।
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तुमने ज़ालिम से दोस्ती रक्खी।
हमने मजलूम की हिमायत की।।
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दिल को समझा-बुझा के बैठ गये।
“जब तेरी चाहतों ने हिजरत* की”।।
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शायरी में अलग ही तेवर हो।
कोई आवाज़ हो बग़ावत की।।
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हम पे टूटा है क़हर सूरज का।
हम पे गुज़री है शब क़यामत की।।
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हर सितम आपका सहा “अनवर”।
क्या कभी आपसे शिकायत की।।
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शब्दार्थ:-
हिज़रत*पलायन
क़हर*प्रकोप
शकूर अनवर
9460851271
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