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-विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 का संजीवनी सन्देश नेत्र चिकित्सकों की कलम से

डॉ. विदुषी शर्मा, डॉ. सुरेश पाण्डेय
लेखक, प्रेरक वक्ता, नेत्र चिकित्सक
सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा.

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डॉ सुरेश पाण्डेय                         डॉ विदुषी पाण्डेय

सात अप्रैल की सुबह नई, सपनों की उड़ान लिए,
“स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य” का संजीवनी संदेश लिए।
माँ की गोद में बस्ती है जिंदगी की राह,
नन्हा दिल धड़के, न छूटे उसका साथ।

क्या सुनाई देगी वह पहली किलकारी?
या खामोश हो जाएगी माँ की पुकार भारी?
एक साँस टूटे, तो टूटे सारा जहान,
हर बच्चे में बसता है कल का सम्मान।

चलो थाम लें माँ की काँपती उँगलियाँ,
बचाएँ नन्हीं साँसों की थरथराती थकन।
विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 का संकल्प, यह पुकार हमारी, माँ-शिशु की सेहत से बनेगी दुनिया प्यारी।

विश्व स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष 7अप्रैल को विश्व भर में एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है। इस बार, वर्ष 2025 में, विश्व स्वास्थ्य दिवस एक ऐसी कहानी / थीम लेकर आया है जो हर हृदय को छू जाएगी। यह कोई साधारण दिन नहीं है, बल्कि एक माँ की सिसकी और एक बच्चे की अधूरी साँस को थामने का वादा है। सोचिए, जब एक नन्हा दिल अपनी पहली धड़कन के साथ दुनिया में कदम रखता है, और एक माँ उसे गोद में लेकर अपने सपनों को उसकी आँखों में देखती है—क्या यह हर माँ और हर बच्चे का अधिकार नहीं?

पहली बार विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल 1950 को मनाया गया था, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1948 में अपनी नींव रखने के बाद इसे एक मिशन बनाया कि धरती के इंसान को सेहत का अधिकार मिले। इस वर्ष, विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 की थीम है—’हैल्दी बिगनिंग्स, होपफुल फ्यूचर्स’ यानी ‘स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य’। यह थीम माँ और नवजात की सेहत को एक नई रोशनी देने की बात करती है, क्योंकि एक माँ की गोद ही वह पहला आसमान है, जहाँ से बच्चे का भविष्य शुरू होता है। लेकिन जब वह आसमान काले बादलों से घिर जाए, जब वह माँ अपने बच्चे को गोद में लेने से पहले ही अलविदा कह दे, तो क्या हम चुपचाप देखते रह सकते हैं?

दुनिया में कुछ देश ऐसे हैं, जहाँ माँ और बच्चे की साँसें सबसे सुरक्षित हैं। संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आँकड़ों के मुताबिक, नॉर्वे, स्वीडन, और जापान जैसे देशों में मातृ मृत्यु दर सबसे कम है—महज 2 से 3 प्रति एक लाख जीवित जन्म। यानी वहाँ हर माँ अपने बच्चे को हँसते हुए देख पाती है। शिशु मृत्यु दर को बहुत कम करने में भी जापान और आइसलैंड सबसे आगे हैं, जहाँ यह दर 2 प्रति 1,000 जीवित जन्म से भी कम है। इन देशों में साफ पानी, बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएँ, स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता, हर माँ को मिलने वाली देखभाल यह सुनिश्चित करती है कि जच्चा-बच्चा स्वस्थ रहे।

लेकिन हमारी धरती भारत की बात करें तो यहाँ बहुत सामूहिक प्रयास किए जाने शेष हैंI देश में हर साल करीब 24,000 माँएँ गर्भावस्था या प्रसव के दौरान अपनी साँसें खो देती हैं। शिशु मृत्यु दर 28 प्रति 1,000 जीवित जन्म है, यानी 7 लाख से ज्यादा नन्हे फूल खिलने से पहले मुरझा जाते हैं। ये आँकड़े सिर्फ संख्याएँ नहीं, ये उन माँओं की, उनके परिजनों की अकल्पनीय पीड़ा व संताप हैं, जो अपने बच्चे का मुँह देखने से पहले चली गईं। ये उन पिताओं की खामोश आँखें हैं, जो अपने बच्चे का नाम रखने का सपना पूरा न कर सके।

फिर भी, उम्मीद की किरणें बुझी नहीं हैं। भारत के चिकित्सकों, स्वास्थ्य कर्मियों एवं स्वास्थ्य संस्थानों ने पिछले कुछ सालों में माँओं और बच्चों को बचाने की जंग में बड़ी जीत हासिल की है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2020 बताता है कि भारत में वर्ष 2014-16 में जहाँ मातृ मृत्यु दर 130 प्रति एक लाख थी, वह 2018-20 में घटकर 97 हो गई। इसी प्रकार इन्हीं वर्षों में भारत में शिशु मृत्यु दर 39 से 28 पर आई, और नवजात मृत्यु दर 26 से 20 पर। पिछले 30 सालों में मातृ मृत्यु में 83 प्रतिशत की कमी आई है, जो दुनिया के औसत से कहीं ज्यादा है। लेकिन क्या यह काफी है? नहीं, क्योंकि हर दिन 67,000 बच्चे यहाँ जन्म लेते हैं—दुनिया के बच्चों का पाँचवाँ हिस्सा—और हर मिनट एक बच्चा अपनी साँस खो देता है। यह कोई आँकड़ा नहीं, यह एक माँ का टूटा हृदय है, एक परिवार की बुझा हुआ चिराग है।

भारत को अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य कहता है कि 2030 तक मातृ मृत्यु दर 70 प्रति एक लाख और शिशु मृत्यु दर को और कम करना है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कैसे होगा?

सपने बड़े हैं, और रास्ता मुश्किल है, पर लक्ष्य पर पहुंचना असम्भव या नामुमकिन नहीं। अपनी माँओं और बच्चों को बचाने के लिए सरकारों को सफेद कोट पहने चिकित्सक सैनिकों, व स्वास्थ्य सेनानियों, चिकित्सा संस्थाओं को साथ लेकर जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सबसे पहले देश के दूर दराज के हर गाँव तक, हर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचाना होगा। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 30 प्रतिशत बच्चे घरों में जन्म लेते हैं, जहाँ न प्रशिक्षित डॉक्टर हैं, न दवा, सिर्फ अंधविश्वास और भ्रांतियाँ हैं, जो माँ और बच्चे को मौत के मुँह में धकेल देती हैं। दूसरा, हर माँ को पोषण देना होगा। देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा गर्भवती महिलाएँ खून की कमी (एनीमिया) से जूझ रही हैं, कुपोषण उनके शरीर को खोखला कर रहा है। अगर माँ कुपोषित व कमजोर होगी, तो बच्चा कैसे स्वस्थ होगा? तीसरा, व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलानी होगी जिससे समूचे परिवार को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने, महिलाओं को भ्रांतियों से दर किनार कर सही स्वास्थ्य आदतों को अपनाने की बात सिखाई जा सके। द लैन्सेट की रिपोर्ट कहती है कि पहले छह महीने सिर्फ माँ का दूध पीने से शिशु मृत्यु दर 13 प्रतिशत कम हो सकती है, लेकिन भारत में सिर्फ 55 प्रतिशत बच्चे जन्म के पहले घंटे में माँ का दूध नामक यह अमृत पी पाते हैं। भ्रांतियां, गलतफहमियाँ, अन्धविश्वास और अज्ञानता लाखों बच्चों को इस महत्वपूर्ण परंपरा से दूर रखती हैं। चौथा, टीकाकरण, पोषक भोजन, स्वच्छ जल और साफ-सफाई आदतों (हाईजीन) को हर गाँव के हर घर तक ले जाना होगा। लगभग 80 प्रतिशत बीमारियाँ टीकों से रोकी जा सकती हैं। गर्भवती महिला का नियमित परामर्श, जाँच, आयरन फोलिक एसिड युक्त पोषक भोजन, स्वच्छ जल और हाईजीन अपनाने से कम वजन वाले बच्चों की संख्या 30 प्रतिशत कम हो सकती है।

इस दिशा में भारत सरकार की कोशिशें भी सराहनीय हैं। जननी सुरक्षा योजना ने 10 करोड़ से ज्यादा माँओं को सुरक्षित प्रसव का मौका दिया। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान हर महीने 1.5 करोड़ गर्भवती महिलाओं की जाँच करता है। कंगारू मदर केयर ने समय से पहले जन्मे बच्चों की मृत्यु दर को 40 प्रतिशत तक कम किया। ये कदम उस माँ की साँस को थामने की कोशिश हैं, जो अपने बच्चे को खोने के डर से काँपती है। लेकिन यह जंग सिर्फ सरकार की नहीं, हम सबकी है। अगर हम एक माँ को समय पर अस्पताल पहुँचाएँ, एक बच्चे की साँस बचाएँ, तो हम दो जिंदगियों को बचा सकते हैं। सोचिए, एक माँ अपने बच्चे की हँसी सुन रही हो, उसकी आँखों में अपने सपने देख रही हो—क्या यह हर माँ का अधिकार नहीं? एक बच्चे की पहली जरूरत उसकी माँ का दूध है, उसकी ताकत है। हर साल 7 लाख से ज्यादा नवजात समय से पहले जन्म, कम वजन, या संक्रमण की वजह से अलविदा हो जाते हैं। लेकिन हम हार नहीं मान सकते।

एक नेत्र चिकित्सक की नज़र से देखें तो यह दर्द और गहरा हो जाता है। गर्भावस्था में पोषण की कमी माँ के शरीर व आँखों को कमजोर करती है, और जागरूकता के अभाव में कमजोर, नौ माह से पहले जन्मी भावी संतान का जीवन अंधकार में कर सकती है। समय से पहले जन्मे प्रीमैच्योर बच्चों में रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी जैसी बीमारी जागरूकता व उपचार के अभाव में जीवन-भर अंधेरे का कारण बन सकती है।

माँ और बच्चे की सुरक्षा सिर्फ डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों का ही काम नहीं, यह हम सभी का सामूहिक कर्तव्य है। स्वच्छ जल, पौष्टिक भोजन, नियमित टीकाकरण, स्वास्थ्य परीक्षण, और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता—ये वो धागे हैं जो एक मजबूत पीढ़ी को बुनते हैं। हर हाथ जो एक माँ को थामे, हर कदम जो एक बच्चे को बचाए, वही इस दुनिया का वास्तविक स्वास्थ्य योद्धा है।

यह विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल 2025 हर माँ और बच्चे के लिए एक नई सुबह का वादा है। यह उस नन्ही हँसी को गूँजने का हक देने की पुकार है। यह उस माँ को स्वास्थ्य संजीवनी देने का संकल्प है, जो अपने बच्चे के लिए दिन-रात सपने बुनती है। विश्व स्वास्थ्य दिवस पर हम सब मिलकर सामूहिक प्रयासों से स्वास्थ्य जागरूकता की मसाल प्रज्वलित कर माँ की सिसकी को हँसी में बदल दें। देश के ग्रामीण क्षेत्रों की हर गली, हर चौखट, हर चौबारे तक स्वास्थ्य जागरूकता की अलख जगाएँ। हर हाथ एक माँ को थामे, हर कदम एक नव शिशु को बचाए। क्योंकि जब एक माँ अपने बच्चे को सीने से लगाएगी, जब एक बच्चा अपनी पहली हँसी बिखेरेगा, तभी हमारा भविष्य सचमुच रोशन होगा। आईये, इस 7 अप्रैल 2025 को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर जागरूकता का सामूहिक उद्घोष करते हुए एक नया संसार बुनें—जहाँ माँ की साँसें गूँजें, और बच्चे की हँसी खिले।

माँ की गोद में बस्ती है सुबह की लाली,
बच्चे की हँसी में गूँजती है हर गली।
साँसों को थामें, सपनों को सजाएँ,
हर टूटते दिल को हौसले से उठाएँ।

क्या खामोश रहेंगी ये नन्हीं किलकारियाँ?
क्या सूनी रहेंगी माँ की बेबस निगाहें?
चलो जागें, चलो जगाएँ, देश के गाँवों के हर इक कोने को, हर माँ-शिशु को दें, जिंदगी के इस अनमोल उपहार को।

यह संदेश है हमारा, ले जाएँ घर-घर,
“हर साँस को बचाएँ, हर सपने को संवारें।”
माँ की हँसी और बच्चे का भविष्य बनाएँ,
सात अप्रैल विश्व स्वास्थ्य दिवस की यह संजीवनी पुकार, हम सभी भारत वासियों तक पहुँचाएँ।

जय स्वास्थ्य दिवस।

डॉ. विदुषी शर्मा, डॉ. सुरेश पाण्डेय
लेखक, प्रेरक वक्ता,
नेत्र चिकित्सक
सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा.

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