कोरोना के वास्तविक खतरों से आगाह करना जरूरी

-देशबन्धु में संपादकीय आज.

देश में कोरोना की भयावह पदचाप फिर सुनाई देने लगी है और फ़िलहाल ये आहट धीमी है, लेकिन कब खौफ़नाक धमक में बदल जये, कहा नहीं जा सकता। आंकड़ों के मुताबिक बुधवार दोपहर तक 1083 एक्टिव कोरोना केस पाए गए, हालांकि सुबह यह संख्या 1047 थी, यानी बढ़ोत्तरी का सिलसिला शुरु हो गया है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में 66 और उत्तर प्रदेश में 10 नए मामले सामने आए हैं। दक्षिण और प.भारत के राज्यों के बाद अब पूर्वी और उत्तरपूर्वी राज्यों में भी कोरोना ग्रसित मरीज पाए गए हैं। इससे मरने वालों की संख्या भी अब 12 तक पहुंच गई है। बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय के 26 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक तब देश में 1010 एक्टिव केस थे, लेकिन अब इसकी संख्या बढ़ गई है और साथ ही कोरोना के 4 नए वैरिएंट की पहचान भी हुई है। दक्षिण और पश्चिम भारत से जिन वैरिएंट की पहचान हुई है, उनमें एलएफ 7, एक्सएफजी, जेएन.1 और एनबी1.8.1 शामिल हैं। अब बाकी जगहों से नमूने लेकर नए वैरिएंट की पड़ताल की जा रही है। कोरोना के नए मामलों को लेकर एम्स के पूर्व डायरेक्टर, डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि नये वेरिएंट के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन अभी गंभीर ख़तरा नहीं है। वहीं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने सोमवार को कहा कि संक्रमण को लेकर गंभीरता की स्थिति अभी तक आमतौर पर हल्की है और चिंता की कोई बात नहीं है।

यह सही है कि अब तक महामारी की बात सामने नहीं आई है, लेकिन जो अब तक 12 मौतें हुई हैं, क्या उसके बाद भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत नहीं है। दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, यह पुरानी कहावत है। लेकिन हम जले ही नहीं, झुलसे हुए हैं। याद कीजिए कोरोना की दूसरी लहर के भयावह मंजर को। जब अस्पतालों के बाहर लंबी कतारें लग गयी थीं कि एक बिस्तर मिल जाये, एक ऑक्सीजन सिलेंडर मिल जाये, ताकि मरीज की उखड़ती सांसों को आसरा दिया जा सके। एक महिला किस तरह अपने पति को एंबुलेंस में मुंह से सांस देने की कोशिश कर रही थी, वह दृश्य कैसे भूला जा सकता है। श्मशानों से देर रात तक चिताओं से लपटें उठा करती थीं, वहां भी मुर्दे जलाने के लिए कतार लगी रहती थी। जिन शवों को रीति के अनुसार अंतिम संस्कार नसीब नहीं हुआ, उन्हें गंगा की गोद में सौंप दिया गया। सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर रोजाना किसी परिचित की मौत की खबर देखने मिलती थी। कितनी दारुण यादें हैं, कहां तक गिनाये। लेकिन क्या हमारी याददाश्त इतनी कमज़ोर हो चुकी है कि तीन साल पुरानी बात हम भूल गए हैं।

सरकार ने पहली लहर के वक्त लापरवाही दिखाई तो उसका भुगतान दूसरी लहर में करना पड़ा। अब फिर से क्या वही लापरवाही दिखाई जा रही है, यह सोचने वाली बात है। प्रधानमंत्री मोदी 29-30 मई को उप्र और बिहार दौरे पर रहेंगे। उनकी प्राथमिकता इस समय ऑपरेशन सिन्दूर को भुनाना है, जिसके लिए वे रोड शो करेंगे। इसके अलावा बिहार चुनाव का मंच सजाना भी भाजपा की तरफ से उनके ही जिम्मे है, तो वे चाहेंगे कि अच्छी-खासी भीड़ जुटे। पांच साल पहले भी इसी तरह बिहार चुनाव कोरोना के बीच ही संपन्न हुए थे। उसका कितना खामियाजा आम जनता ने भुगता होगा, पता नहीं। लेकिन श्री मोदी के लिए तब भी चुनाव में जीत महत्वपूर्ण थी, अब भी वही आलम है। अलबत्ता प्रधानमंत्री के दौरे के मद्देनज़र राज्य का स्वास्थ्य विभाग भी सतर्क है। निर्देश दिया गया है कि श्री मोदी के 100 मीटर के दायरे में रहने वाले सभी लोगों की कोरोना जांच होगी। अब सोचने वाली बात है कि जब प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य को लेकर यह सतर्कता बरती जा रही है, तो आम नागरिकों के लिए क्यों यही रवैया नहीं दिखाया जा रहा। कम से कम सरकार की तरफ से सही सूचना और कोरोना से बचने के सही दिशा-निर्देश तो तत्काल व्यापक स्तर पर प्रचारित-प्रसारित करने शुरु कर देने चाहिये। सरकार को यह भी बताना चाहिए कि कोरोना टीकाकरण क्या अब निष्प्रभावी हो गया है, क्योंकि आम जनता यही मानकर चलती है कि एक बार टीका लग गया तो फिर उसे दोबारा वह बीमारी नहीं होगी। हालांकि टीकाकरण के बाद अचानक चलते-फिरते जो अकाल मौतें हुई हैं, उसका कोई तार्किक कारण भी अब तक सामने नहीं आया है कि एकदम से देश में दिल के दौरे लोगों को क्यों पड़ने लगे।

बहरहाल, सरकार ने बड़े जोर शोर से आरोग्य सेतु ऐप और कोविन ऐप भी पेश किए थे, जिनमें निजी डेटा लीक होने की आशंका के बावजूद लोगों ने डाउनलोड कर अपनी जानकारियां उसमें भरीं। लेकिन वह सारी कवायद क्या अब बेकार हो चुकी है, या ऐसे ऐप्स अब भी कारगर हैं, ये भी सरकार को बताना चाहिए। क्योंकि अभी दो-चार नामी डॉक्टरों के बयान ही आए हैं, जिनमें नए वैरिएंट के लक्षण, प्रभाव आदि की जानकारी मिली है और बताया गया है कि चिंता की बात नहीं है। लेकिन जिस तेजी से मामले बढ़ रहे हैं, उसमें चिंता होनी स्वाभाविक है।

सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री ने अब तक इस बारे में कोई संदेश नहीं दिया है। वे रोड शो करते हैं, जनसभाएं करते हैं, तो उनमें लोगों को आगाह भी कर सकते हैं। मगर उनकी प्राथमिकता में फिलहाल कोरोना से बचाव नहीं दिख रहा है। पहले भी उनके नमस्ते ट्रंप के आयोजन, अचानक लॉकडाउन का फैसला, ताली-थाली बजाना, दिए जलाना जैसे अविचारित फैसलों ने समस्या को समाधान से दूर किया था और जनता के सामने अकाल मौत खड़ी हो गई थी। उस वक्त आयुर्वेद के नाम पर गजब गोरखधंधा भी खड़ा हो चुका था, जिसके एक अग्रणी व्यापारी को कोर्ट से जमकर फटकार भी मिली थी, लेकिन अब फिर से वैसा ही असमंजस, अनिश्चितता और भय का माहौल बनता दिख रहा है। उम्मीद है सरकार इस बार पहले वाली गलतियां नहीं दोहराएगी और कोरोना के वास्तविक खतरों से जनता को पहले ही आगाह करेगी।

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