स्कूल फेल ठगों पर भी सरकार का कोई बस नहीं

-सुनील कुमार Sunil Kumar

राजस्थान से ठगी का एक ऐसा नया मामला सामने आया है जिसमें 10वीं फेल ठग ने बड़े-बड़े कारोबारियों को क्रिप्टोकरेंसी का झांसा दिखाकर उनसे दसियों लाख रूपए एक-एक से ठग लिए, उन्हें विदेशों में क्रूज पर पार्टियां देकर, महंगे होटलों में ठहराकर 10 गुना तक कमाई का सपना दिखाया गया, और सब अपने पैसों से हाथ धो बैठे। इधर छत्तीसगढ़ में जगह-जगह ऐसे मामले सामने आए हैं कि कस्बों के छोटे-छोटे से लोग कहीं शेयर बाजार का झांसा देकर, तो कहीं किसी फाइनेंस कंपनी में पूंजीनिवेश करवाकर, तो कहीं क्रिप्टोकरेंसी में मोटी कमाई के सपने दिखाकर लोगों को लूटे जा रहे हैं। गांव-देहात से निकले हुए, कम पढ़े-लिखे लोग भी बड़े पैमाने पर ठगी कर रहे हैं। देश में बरसों से टेलीफोन पर जालसाजी करने की अघोषित राजधानी बने हुए जामताड़ा में तो कहा जाता है कि स्कूल फेल लडक़े घर-घर में फोन पर लोगों को धोखा देने, और ठगने को कुटीर उद्योग की तरह चलाते हैं। ऐसे कम पढ़े-लिखे लोगों की ऐसी मौलिक प्रतिभा देखकर लगता है कि अगर इन्हें किसी सही राह पर मौका मिलता, तो हो सकता है कि वे किसी भले कारोबार में भी आगे बढ़ गए होते।

आज देश भर में क्रिप्टोकरेंसी, शेयर, चिटफंड जैसे कई तरह के सपने बेचने वाले लोग जिस तरह से लोगों की जिंदगी भर की बचत, और कमाई लूट रहे हैं, उस बारे में सरकार को कुछ करना चाहिए। आज सरकार सिर्फ ठगी हो जाने, पैसा निकल जाने के बाद लकीर पीटने के अंदाज में मुजरिमों को गिरफ्तार करती है, लेकिन अधिकतर पैसा जा चुका रहता है। इसके अलावा टेलीफोन, और इंटरनेट पर लोगों को ब्लैकमेल करने, उन्हें पोर्नो फिल्म देखने की धमकी देकर उनसे उगाही करने, उनके बैंक खातों से ड्रग्स का धंधा चलने की दहशत पैदा करके उनसे अकाऊंट का एक-एक रूपया चूस लेने का काम अलग चल रहा है। एक और धंधा बड़े जोरों पर है जिसमें कोई लडक़ी फोन करके सेक्स की बातें करके, अपना बदन दिखाने का झांसा देकर लोगों के कपड़े उतरवाती है, और फिर ऐसे जवान या बड़े बुजुर्ग लोगों के बिना कपड़ों के वीडियो बना लिए जाते हैं, और ब्लैकमेलिंग का यह सिलसिला बहुत सी आत्महत्याओं तक पहुंच जाता है।

हमने पहले भी इसी जगह सुझाया है कि सरकार को आर्थिक अपराधों की जांच एजेंसियों से परे, आर्थिक अपराधों पर निगरानी रखने की खुफिया एजेंसी विकसित करनी चाहिए जो कि रात-दिन इंटरनेट और टेलीफोन पर नजर रखकर, बैंकों के संदिग्ध खातों में रकम का तेजी से आना-जाना देखकर जुर्म को समय रहते पकड़ सके। आज सट्टेबाज और दूसरे किस्म के अपराधी नासमझ और सीधे-साधे लोगों के बैंक खातों को किराए पर ले लेते हैं, और उनमें जुर्म का पैसा तेजी से आने लगता है, और उसी तेजी से जाने भी लगता है। भारत में बैंकिंग का जिस तरह डिजिटलीकरण हुआ है, हर बैंक लेन-देन जिस तरह कम्प्यूटरों पर दर्ज होता है, खुफिया एजेंसियां बैंकों की मदद से आसानी से यह पता लगा सकती हैं कि किसी खाते से अगर किसी अनजान खाते में रातोंरात बड़ी-बड़ी रकम जाने लगी है, कुछ दिनों के भीतर ही खाता खाली होने लगा है, और जिन खातों में रकम जा रही है, वहां से पल भर में आगे बढ़ा दी जा रही है, तो ऐसे मामलों की निगरानी आज एआई की मदद से आसानी से हो सकती है। अगर किसी खाते में सट्टे का पैसा हर दो-चार मिनट में जमा हो रहा है, तो क्या उस बैंक को अपने ऐसे खाते का पता नहीं चलता? बैंकों के कम्प्यूटरों को ही यह निर्देश दिए जा सकते हैं कि किसी भी अस्वाभाविक लेन-देन, जमा-निकासी पर वह खतरे की घंटी बजा दे, और बैंक के कोई अधिकारी-कर्मचारी उसे व्यक्तिगत रूप से परख लें। एक-एक खच्चर-खाता महीनों तक काम करता है, और वह पकड़ में नहीं आता, तो यह बैंकिंग सिस्टम में एक बड़ी कमजोरी है, और यह सिलसिला तोडऩा चाहिए।

केन्द्र सरकार ने देश भर में बैंकों से जुड़े हर कामकाज का डिजिटलीकरण कर दिया है, और जालसाजी में लोगों की जमा रकम को लूटा न जाए, यह जिम्मेदारी भी सरकार की ही है। इसलिए हम ऐसे निगरानीतंत्र को जरूरी समझते हैं जो कि बाजार से भी मिलने वाली खबरों को देखे, और बैंकों में कोई भी अस्वाभाविक गतिविधियां भी परखे। सरकार को यह भी चाहिए कि साइबर-जुर्म में अगर लोगों का पैसा डूबता है, तो उसका एक बीमा होना चाहिए। सरकार, बैंक, और खातेदार, ये सब लोग मिलकर ऐसे बीमे का खर्च उठा सकते हैं, ताकि लोगों की जिंदगी भर की कमाई इस तरह डूब न सके। आज टेक्नॉलॉजी ने बैंकों के सारे कामकाज को ऑनलाईन कर दिया है, और लोग रात भर अपने घर में बैठकर भी पूरा पैसा कहीं भी ट्रांसफर कर सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ऐसे संगठित जुर्म से लडऩे में बड़ा मददगार हो सकता है क्योंकि वह पल भर में खातों से ऐसी अस्वाभाविक आवाजाही को पकड़ सकता है। आज टेलीफोन पर वॉट्सऐप सरीखे बहुत से इनक्रिप्टेड संदेशों के भीतर तक सरकार की आम पहुंच नहीं हो सकती, इसलिए इन पर निगरानी रखना भी आसान नहीं है, और जब तक सरकार ऐसे प्लेटफॉर्म को यह सुबूत नहीं देती है कि उसका जुर्म में इस्तेमाल हो रहा है, तब तक वे सरकार को संदेशों तक पहुंच नहीं देते। ऐसे में सरकार को बैंकों पर ही सबसे कड़ी नजर रखनी होगी जो कि उसकी पहुंच के भीतर है। बैंकों पर यह जिम्मेदारी डालनी होगी कि अस्वाभाविक लेन-देन होने पर एजेंसियों को तुरंत खबर करना उनकी जिम्मेदारी रहेगी, नहीं तो नुकसान उनका रहेगा।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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