
-देवेंद्र यादव-

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके हाव-भाव और हरकतों के कारण लोग उन्हें बीमार समझ रहे हैं। जबकि वह बिहार में चुनावी यात्रा कर अपने और पार्टी के लिए जनता का समर्थन जुटा रहे हैं।
सवाल यह है कि नीतीश कुमार बीमार है या फिर वह बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से ठीक पहले अपने विरोधी नेताओं को गलतफहमी में रख रहे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूके के अनेक बड़े नेता भी मुख्यमंत्री को लेकर शायद गलतफहमी के शिकार हैं। यही वजह है कि जदयू के कई नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के इंप्रेशन में हैं। शायद वह नेता भी इस भ्रम में है कि नीतीश कुमार बीमार है। क्या नीतीश कुमार बीमार होने की एक्टिंग कर अपने दल के नेताओं को परख रहे हैं कि उनके साथ ईमानदारी से वफादारी कौन-कौन नेता निभा रहे हैं। नीतीश कुमार ने देख लिया होगा कि पार्टी के भीतर उनके साथ ईमानदारी से कौन-कौन नेता है। आने वाले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि वास्तव में नीतीश कुमार बीमार थे या फिर वह बीमार होने की एक्टिंग कर अपने विरोधियों को उलझा रहे थे। यदि बात करें दूसरे नेता की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बिहार के दौरे पर जा रहे हैं। गत दिनों गुजरात में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर मोदी ने रोड शो किया और ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी को जनता को बताया। ठीक वैसा ही मोदी बिहार में भी करेंगे। इस पर किसी को शक नहीं होना चाहिए। गुजरात में विधानसभा के चुनाव नहीं है मगर बिहार में 2025 के अंत में विधानसभा के चुनाव हैं इसलिए ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी का डंका मोदी बिहार में जोर-जोर से बजाएंगे।
इसीलिए सवाल यह है कि क्या बिहार विधानसभा का चुनाव दो राजनीतिक दिग्गजों के बीच होता नजर आएगा। दोनों में से कामयाब कौन होगा यह तो समय बताएगा। एक तरफ नरेंद्र मोदी की कोशिश होगी कि बिहार में भाजपा अपने दम पर पहली बार सरकार बनाए। वहीं नीतीश कुमार भी कोशिश करेंगे की बिहार की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी अपनी दम पर कभी नहीं आए। भाजपा को रोकने के लिए नीतीश कुमार एक बार फिर से पाला भी बदल सकते हैं। इस बार शायद नीतीश कुमार की नजर कांग्रेस पर है। कांग्रेस ने जिस प्रकार से बिहार में पार्टी को मजबूत करने के लिए बड़े कदम उठाए हैं, उन कदमों से शायद नीतीश कुमार को राहुल गांधी पर भरोसा है कि कांग्रेस बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव से कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। यदि नीतीश कुमार और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े तो स्थिति अनुकूल बन सकती है क्योंकि दलित और मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की तरफ अधिक दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी को अपनी तरफ से एक प्रयास नीतीश कुमार की तरफ हाथ बढा कर करना चाहिए।
बिहार में कांग्रेस के पास एक बड़ा साथ पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का है जो विपरीत परिस्थितियों में भी बिहार के अंदर कांग्रेस की लाज बचा सकते हैं। पप्पू यादव बार-बार बता रहे हैं कि कांग्रेस बिहार में 100 सीटों पर मजबूत स्थिति में है और कांग्रेस 100 सीट जीत सकती है यदि कांग्रेस रणनीतिक तरीके से चुनाव लड़े तो। क्या नीतीश कुमार के मन में भी यही है। राजनीतिक पंडितों को जो नजर नहीं आ रहा वह नीतीश कुमार को नजर आ रहा है। यदि कांग्रेस पर भरोसा करें तो नीतीश कुमार और कांग्रेस दोनों मिलकर बड़ा उलट फेर कर सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी को अपने दम पर सरकार बनाने से रोक सकते हैं। राजनीतिक पंडितों की नजर प्रधानमंत्री मोदी के बिहार दौरे पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे से आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कौन सा दल मजबूत रहेगा और सरकार बनाने की स्थिति में आएगा यह तय हो जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)