
-सुनील कुमार Sunil Kumar
गुजरात के अमरेली में एक स्कूल के पांचवीं से सातवीं के दो दर्जन बच्चों ने अपने को एक डेयर-गेम के तहत खुद को ब्लेड से घायल कर लिया। इन छात्रों ने एक-दूसरे को चुनौती दी कि या तो वो खुद को जख्मी करें, या दस रूपए जुर्माना दें, इसके बाद करीब दो दर्जन छात्रों ने ब्लेड से अपने हाथ जख्मी कर लिए। फिर मां-बाप ने स्कूल और पुलिस के साथ मिलकर बैठक की, और यह विचार किया कि बच्चों के दिमाग से इस तरह की बातें कैसे हटाई जाएं। लोगों को याद होगा कि समय-समय पर अलग-अलग जगहों पर बच्चे किसी खतरनाक ऑनलाईन गेम की ऐसी ही चुनौती मंजूर करके कई खतरनाक काम करते हैं, और उनमें से कुछ की जान भी चली जाती है। कुछ खेल रहते ही ऐसे हैं जो लोगों को जान पर खेलने के लिए उकसाते हैं। भारत में ऐसा एक खेल सरकार ने कुछ अरसा पहले बंद भी करवाया था, पबजी नाम के इस खेल को खेलते हुए कई लोगों की जान भी गई थी। इसके अलावा दुनिया में कई तरह की चुनौतियां सोशल मीडिया पर दी जाती हैं, और जो किशोर-किशोरियां या नौजवान सोशल मीडिया पर खासा वक्त गुजारते हैं, या जो वहां एक-दूसरे से आगे बढऩा चाहते हैं, या जो किसी और से पीछे न छूट जाने के तनाव में रहते हैं, वैसे लोग इन चुनौतियों को धार्मिक भावना सरीखी गंभीरता से लेते हैं, और अपने को कुछ साबित कर दिखाना चाहते हैं।
सोशल मीडिया ने लोगों के बीच संबंधों का, एक ऐसा अजीब सा ऑनलाईन समाज खड़ा कर दिया है जो कि अभी दो-तीन दशक पहले कहीं नहीं था। अब स्मार्टफोन, इंटरनेट, और सोशल मीडिया ने मिलकर लोगों की जिंदगी के हर दिन के बहुत से घंटे एक ऐसी आभासी दुनिया में लगवाना शुरू कर दिया है जिसके सामने, जिसके मुकाबले असल दुनिया भी फीकी लगती है। फेसबुक और इंस्टाग्राम सरीखे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खास एल्गोरिद्म लोगों की पसंद को भांपकर उन्हें उसी तरह के लोग दिखाते हैं, उसी तरह की सामग्री दिखाते हैं, और उन्हें रेशम के ककून की तरह की एक सीमित दुनिया में कैद कर देते हैं, इंसान रेशम की कीड़ों की तरह अपने ही उस ककून के भीतर कैद रह जाते हैं। गुजरात की जिस स्कूल से हमने चर्चा शुरू की है, वह तो सिर्फ चर्चा शुरू करने के लिए है, असलियत तो चारों तरफ इतनी बिखरी हुई है कि उसने दसियों हजार साल पुराने मानव समाज के सारे तौर-तरीकों, रीति-रिवाजों को पलटकर रख दिया है। लोग धरती के दूसरे तरफ जी रहे लोगों से ऑनलाईन मोहब्बत करने लगते हैं, और अपने आसपास के लोग उन्हें उतने अच्छे नहीं लगते, क्योंकि आभासी दुनिया में हर कोई अपनी एक ऐसी चमकदार तस्वीर पेश करते हैं, जिसका कि हकीकत से अनिवार्य रूप से कुछ लेना-देना नहीं रहता।
आज पुलिस की खबरों से पता लगता है कि हर दिन चाकू-पिस्तौल के साथ जाने कितने ही बालिग-नाबालिग नौजवान गिरफ्तार हो रहे हैं, और पुलिस को उनका सुराग उनके इंस्टाग्राम अकाऊंट से मिलता है, जहां पर वे चाकू-पिस्तौल के साथ अपने वीडियो पोस्ट करते हैं। अभी हफ्ते भर पहले ही एक नौजवान ने दिनदहाड़े, खुली सडक़ पर, लोगों की आवाजाही के बीच चाकू के दर्जनों वार से एक किसी को मार डाला, और फिर खून से सने चाकू के साथ अपना वीडियो पोस्ट किया, और यह चुनौती दी कि वह जेल में जाकर भी वहां राज करेगा। आज अगर लॉरेंस बिश्नोई जैसे देश के एक सबसे खतरनाक समझे जाने वाले अंतरराष्ट्रीय हत्यारे के गिरोह के लोग अपने वीडियो पोस्ट करते हैं, वीडियो पर धमकियां पोस्ट करते हैं, तो यही फैशन चल निकला है। हिंसा का शौक रखने वाले, या दूसरे किस्म के जुर्म करने वाले, या कि सिर्फ अपना दबदबा बनाने के लिए आतंक फैलाने वाले लोग हथियारों के साथ अपने फोटो-वीडियो इसी तरह पोस्ट कर रहे हैं। और दूसरे कई किस्म के लोग दूसरे किस्म के वीडियो से अपनी हसरतें पूरी कर रहे हैं।
अभी चौथाई सदी पहले तक लोगों को ऐसी सहूलियत हासिल नहीं थी कि वे अपनी जैसी चाहे वैसी फोटो खींच लें, पल भर में उसे पोस्ट कर दें, और कुछ मिनटों में जान-पहचान के लोगों की उन पर प्रतिक्रिया आना शुरू हो जाए। अब नौजवान पीढ़ी के बहुत से लोग तो ऐसे हैं जिनके लिए उनकी असल दुनिया, मोबाइल में कैद उनकी आभासी दुनिया के मुकाबले छोटी रह गई है। असल दुनिया में दोस्त कम हैं, वहां के लिए वक्त कम हैं, उसकी जरूरत कम हैं, उसे लेकर हसरत कम हैं, और असल और आभासी दुनिया के बीच की ऐसी खींचतान ने लोगों की सोच में ऐंठी हुई रस्सी की तरह बल डाल दिया है। सदियों से मनोविज्ञान के जानकार लोगों ने जितने किस्म के विश्लेषण पेश किए थे, उनमें से बहुत से ठीक वैसे ही धराशायी हो गए हैं जैसे कि सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व इतिहास की किताबों की जानकारी धराशायी हो गई थी।
अब सब कुछ एकदम बदल गया है। परिवार के भीतर लोगों के एक-दूसरे से रिश्ते अब मोबाइल फोन के अलग-अलग एप्लीकेशनों पर तय होने लगे हैं। एक-दूसरे से बातचीत कम हो गई है, और बहुत से लोग अधिकतर बातें वॉट्सऐप जैसे संदेशों पर कर लेते हैं। अब परिवार के ढांचे पर, प्रेमी-प्रेमिका के संबंधों पर, एक दफ्तर के भीतर काम करने वाले लोगों के बीच टेक्नॉलॉजी से जो फर्क आया है, उस पर तो अभी सारा अध्ययन भी नहीं हो पाया है। इस बदले हुए माहौल में पढ़ाई की किताबों में इन विषयों पर नए सिरे से चर्चा करनी होगी। आज वक्त ऐसा आ गया है कि स्मार्टफोन के लिए, वह भी महंगे स्मार्टफोन के लिए, उन पर हर दिन अधिक घंटे गुजारने के लिए बच्चे खुदकुशी कर रहे हैं, शादीशुदा लोग विवाहेत्तर संबंधों में पड़ रहे हैं, कहीं कोई महिला पति को छोड़ चार बच्चों संग पाकिस्तान से प्रेमी के पास हिन्दुस्तान पहुंच जा रही है, जिसे कभी देखा भी न था, और सिर्फ ऑनलाईन दोस्ती हुई थी। हर दिन ऑनलाईन दोस्ती प्रेम में बदल रही है, और प्रेम बलात्कार में या हत्या में। आज की स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई, और समाज पर लिखी गई किताबों में इस बदले हुए माहौल पर बहुत कुछ मौजूद नहीं है। कुछ लिखकर छपने तक तो लोगों की आभासी दुनिया बदल भी चुकी होगी। इसलिए लोगों को बातचीत लगातार जारी रखनी होगी, और न सिर्फ अपने बच्चों को, बल्कि अपने आपको भी आभासी दुनिया से उपजी हिंसा से बचाना होगा क्योंकि फेसबुक की दोस्ती में माताएं कई बच्चों को लेकर, या छोडक़र नाबालिग प्रेमी के साथ भाग निकल ले रही हैं, और समाज के कोई रीति-रिवाज ऐसी नौबत की कल्पना अब तक नहीं कर पाए थे। समाज को आपसी चर्चा से ही बदलते हुए हालात से जूझने के तरीके ढूंढने होंगे।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)