
-डॉ. सुरेश पाण्डेय

देशभर के लाखों विद्यार्थीयों के माता-पिता /अभिभावक 10वीं और 12वीं के बाद इंजीनियरिंग अथवा मेडिकल में प्रवेश दिलाकर इंजीनियर अथवा डॉक्टर बनाने का सपना देखते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी में प्रवेश पाने के लिए आईआईटी, जेईई नामक अतिकठिन परीक्षा में चयन होना बहुत दुष्कर कार्य हैं। देशभर में 14 लाख से अधिक विद्यार्थी प्रतिवर्ष आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठते है जिनमें से मात्र 17 हजार सात सौ चालीस विद्यार्थियों का चयन भारत के शीर्ष आईआईटी संस्थानों में होता है ठीक इसी प्रकार देश में 24 लाख से अधिक विद्यार्थी एलोपैथिक चिकित्सक बनने हेतु नीट परीक्षा में बैठते है जिनमें से लगभग 80 हजार विद्यार्थी का चयन देश के सरकारी चिकित्सा संस्थानों में डॉक्टर बनने के लिए होता है। आईआईटी को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में देश का सर्वश्रेष्ठ संस्थान माना जाता है। आईआईटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद करोड़ों रुपयों के पैकेज और विदेश के अतिप्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के अवसर अक्सर इन विद्यार्थीयों के लिए खुले रहते हैं। लेकिन ऐसे प्रतिस्पर्धी माहौल में कुछ असाधारण उदाहरण सामने आते हैं, जहां आईआईटियन और डॉक्टर अपने जीवन के भौतिक सुखों को त्यागकर आत्मा की खोज के आध्यात्मिक मार्ग पर निकल पड़ते हैं।
हाल ही में प्रयागराज के महाकुंभ के दौरान आईआईटी (इंजीनियरिंग) बाबा के नाम से प्रसिद्ध अभय सिंह की आईआईटी मुम्बई से एरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर जूना अखाड़े के संत बाबा सोमेश्वर पुरी के के मार्गदर्शन में जारी आध्यात्मिक यात्रा का समाचार विश्वभर के समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है। इसके साथ ही यह अहम बिन्दु सोशल मीडिया एवं समाज में नई चर्चा का विषय बन चुका है कि प्रतिष्ठित संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर, ऊंचे सपनों और भौतिक उपलब्धियों को हासिल करने के बाद भी, ये पेशेवर सबकुछ त्यागकर क्यों आत्मा की शांति और उद्देश्य की ओर कैसे बढ़ जाते हैं?
आईआईटी बाबा अभय सिंह इस आध्यात्मिक यात्रा में अकेले नहीं हैं। अनेकों अतिप्रशिक्षित व्यक्तियों ने उच्च पदों एवं करोड़ों रूपये के पैकेज को तिलाँजलि देकर आध्यात्मिक को अपनाकर जीवन को नई दिशा में मोड़ा। इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस) के प्रमुख आध्यात्मिक मार्गदर्शकों में से एक गौर गोपाल दास, एक समय में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर थे। उन्होंने महसूस किया कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। आज वह लाखों युवाओं और पेशेवरों को प्रेरित कर रहे हैं। उनकी प्रेरक शैली और गहन आध्यात्मिक दृष्टिकोण ने उन्हें एक वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई। इसी प्रकार स्वामी मुकुंदानंद, जिन्होंने आईआईटी दिल्ली से स्नातक और आईआईएम कोलकाता से एमबीए कर कॉर्पोरेट जगत के चकाचौंध भरे जीवन को छोड़कर ‘जगद्गुरु कृपालुजी योग’ नामक एक योग प्रणाली की स्थापना की। स्वामी मुकुंदानंद, के अनुसार भौतिक सफलता और जीवन की हर सुविधा के बावजूद, आत्मा की शांति और आनंद के बिना जीवन अधूरा है। वह आज योग और ध्यान के माध्यम से लाखों लोगों को मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। इसी कड़ी में रसनाथ दास, जिन्होंने आईआईटी से स्नातक और अमेरिका की सुप्रसिद्ध कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से एम.बी.ए. किया। उन्होंने वॉल स्ट्रीट की चमक-दमक को छोड़कर आध्यात्मिकता की राह अपनाई। स्वामी रसनाथ दास ने एक संगठन ‘अपबिल्ड’ की स्थापना की, जो आध्यात्मिकता के माध्यम से आंतरिक नेतृत्व और विकास को बढ़ावा देता है।
स्वामी विद्यनाथानंद, (जिन्हें प्रोफेसर महान मित्र अथवा महान महाराज के नाम से जाना जाता है) ने आईआईटी कानपुर और अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में पढ़ाई की। उन्होंने वैल्लोर स्थित रामकृष्ण मठ के साधु बनने का निर्णय लिया। उनके अनुसार, जीवन की बाहरी सफलता के बावजूद, उन्हें अपने जीवन मेंएक गहरी कमी महसूस हुई। आध्यात्मिकता ने उनके जीवन के खालीपन को भरने में मदद की। इसी प्रकार श्री संकट पारिख, (जो आईआईटी बॉम्बे से केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं) ने एक आकर्षक नौकरी छोड़कर जैन मुनि बनने का निर्णय लिया। उनकी यह यात्रा यह दिखाती है कि जीवन का असली उद्देश्य आत्मा की खोज और शांति प्राप्त करना है।
डॉक्टरों के बीच भी सर्वोच्च त्याग कर आध्यात्मिकता की खोज में निकले ऐसे अनेकों प्रेरक उदाहरण हैं। विश्वविख्यात स्वामी शिवानंद सरस्वती एक प्रसिद्ध योग गुरु और हिंदू आध्यात्मिक शिक्षक थे। डॉक्टर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले स्वामी शिवानंद ने मलेशिया में गरीबों की निस्वार्थ सेवा की। उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता हासिल की, लेकिन महसूस किया कि मानव पीड़ा को केवल दवा से समाप्त नहीं किया जा सकता। इस एहसास ने उन्हें सन्यास का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया। भारत लौटने के बाद, उन्होंने ऋषिकेश में साधना की और शाश्वत शांति और योग का प्रचार किया। स्वामी शिवानंद को 20वीं सदी के महान योग गुरुओं में गिना जाता है।
एलोपैथिक चिकित्सक से आध्यात्मिक चिंतक बने इन्हीं प्रेरक कहानियों में एक नाम आता है – सूरत, गुजरात की डॉ. हिना कुमारी हिंगड़ का। अरबपति पिता की बेटी डॉ. हिना ने अहमद नगर यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस परीक्षा में गोल्ड मेडल प्राप्त कर शीर्ष स्थान प्राप्त किया था। उन्होंने 28 वर्ष की आयु में आध्यात्मिक गुरू आचार्य सुरेश्वर जी महाराज से दीक्षा लेकर। सांसारिक सुखों को त्यागकर जैन भिक्षु बनने का निर्णय लिया। उन्होंने सूरत में पूरे विधि-विधान और जैन परंपरा के अनुसार दीक्षा ग्रहण की। आज, 28 वर्षीय हिना साध्वी श्री विशारदमाला के नाम से जानी जाती हैं। डॉ. हिना का यह निर्णय यह दर्शाता है कि आध्यात्मिकता की पुकार व्यक्ति के जीवन में कितना गहरा प्रभाव डाल सकती है। डॉ. हिना के अनुसार उन्होंने भौतिकता से भरे जीवन में खुद को खोया हुआ महसूस किया। आत्मा की शांति और सच्चा उद्देश्य पाने के लिए उन्होंनें जैन धर्म के साधु जीवन को चुना। इसी क्रम में पुणे के एलौपैथिक चिकित्सक डॉ. आदित्य गैत, जो एक सफल मेडिकल प्रैक्टिशनर थे, ने अपनी सफल प्रैक्टिस छोड़कर आध्यात्मिकता की ओर कदम बढ़ाया। वह अब आनंद संघ पुणे के आध्यात्मिक निदेशक हैं और आत्मा की गहराई को समझने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।
देश एवं विदेश में उच्च शिक्षा के बाद उच्च पदों को त्यागकर इंजीनियर अथवा चिकित्सकों द्वारा आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि भौतिक सफलता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद भी, मानव आत्मा की सबसे गहरी चाहत आत्मिक शांति और उद्देश्य की होती है। भौतिक सुखों, ऊंचे वेतन, और जीवन की तमाम सुविधाओं के बावजूद, इन पेशेवरों ने महसूस किया कि उनके जीवन में कुछ अधूरा था। ‘मैं कौन हूं ?, ‘जीवन का असली उद्देश्य क्या है?’, ’मानव जीवन की सच्ची सार्थकता क्या है?, ‘जीवन में भौतिकता से परे परमानंद की प्राप्ति कैसे हो ? जैसे अनगिनत सवाल उनके मन में उठते थे। यह अधूरापन उन्हें बार-बार यह सोचने पर मजबूर करता था कि जीवन का असली अर्थ क्या है। उन्होंने संन्यास का मार्ग अपनाकर इन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया। उन्होंने महसूस किया कि मानव जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा अनमोल अवसर है, जो आत्मा की गहराई में जाकर उस शाश्वत सत्य की खोज के लिए मिला है जो हर सांसारिक सीमाओं से परे है।
जीवन के इस गहरे अर्थ की खोज, चाहे वह आईआईटीयन हों, डॉक्टर हों, या अन्य पेशेवर, यह दर्शाती है कि यह दुर्लभ मानव जीवन अनगिनत रहस्यों से भरा हुआ है। जब ऊंचे वेतन, भव्य जीवनशैली और सभी प्रकार की सांसारिक उपलब्धियां भी उन्हें संतुष्टि नहीं दे सकीं, तब उन्होंने आत्मा की ओर रुख किया। यह यात्रा केवल बाहरी सफलता को त्यागने की नहीं थी, बल्कि यह भीतर की शांति और परमानंद की खोज थी। यह यात्रा स्वयं को समझने की यात्रा है। यह अपने भीतर छिपी उस दिव्यता को पहचानने की यात्रा है, जो आत्मा और परमात्मा के संगम में पाई जाती है।
आध्यमिकता एवं त्याग के इस मार्ग पर अग्रसर इन व्यक्तियों ने यह महसूस किया कि यह दुर्लभ मानव जीवन हमें भौतिक संसार से परे कुछ बड़ा और गहरा अनुभव करने का मौका देता है। यह अनुभव केवल आध्यात्मिकता के माध्यम से ही संभव है। जब उन्होंने अपनी आत्मा से जुड़ने का प्रयास किया, तब उन्होंने पाया कि जीवन का असली उद्देश्य भौतिकता से परे परमानंद की प्राप्ति में है। उन्होंने महसूस किया कि सच्चा सुख और सच्ची शांति केवल आत्मा की गहराई में जाकर उस शाश्वत सत्य को पाने में है, जो हमें इस जीवन के सबसे गहरे अर्थ तक ले जाता है। उनके अनुसार अनमोल मानव जीवन का उद्देश्य केवल भौतिकता में नहीं है। यह उस परमानंद की खोज में है, जो आत्मा और परमात्मा के संगम से उत्पन्न होता है। यह वह यात्रा है, जो हमें हमारे भीतर छिपी दिव्यता को पहचानने में मदद करती है। यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि जीवन की सबसे बड़ी यात्रा अपने भीतर की खोज की यात्रा है। अपने आप को समझने की यह यात्रा ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। जब तक हम इस यात्रा पर नहीं निकलते, तब तक हम इस अनमोल जीवन की सच्ची सार्थकता को नहीं समझ सकते।
आध्यात्मिकता के रहस्यों से भरे इस दुर्लभ मानव जीवन का उद्देश्य यही है कि हम अपने भीतर के शाश्वत सत्य को पहचानें और उस परमानंद को प्राप्त करें, जो हमें इस जीवन को सार्थक बनाता है। यह यात्रा हमें सिखाती है कि सच्चा सुख और सच्ची शांति केवल आत्मा और परमात्मा के संगम में है। यही जीवन की सबसे गहरी सच्चाई है। यही इस दुर्लभ मानव जीवन की सबसे बड़ी सार्थकता है।
डॉ. सुरेश पाण्डेय
लेखक, नेत्र चिकित्सक, प्रेरक वक्ता
सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा