
-देशबन्धु में संपादकीय
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश तो दिया था कि 26 नवम्बर तक हर हाल में महाराष्ट्र की सरकार बन जानी चाहिये, लेकिन शीर्ष अदालत की सीधी अवहेलना करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भरपूर समय लिया और समयसीमा ख़त्म होने के 9 दिन बाद आखिरकार गुरुवार को देवेन्द्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ उप मुख्यमंत्री के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी शपथ ली। ढाई साल पहले एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से अलग होकर न केवल भाजपा का साथ दिया था वरन मुख्यमंत्री पद भी पा लिया था। वहीं अजित पवार ने अपनी पार्टी राकांपा को तोड़कर उसके एक धड़े के साथ महायुति सरकार का हिस्सा बनना स्वीकार किया था। खुद फडणवीस, जो पहले दो बार मुख्यमंत्री बने थे, पार्टी के प्रति निष्ठा दिखलाते हुए इस दौरान एकनाथ शिंदे के साथ उप मुख्यमंत्री बनकर काम करते रहे। उनकी निष्ठा व धैर्य का पुरस्कार अंततः मिला और अब वे शिंदे के हाथ-पांव मारने तथा कई तरह की भाव-भंगिमाएं दिखाने के बावजूद राज्य का शीर्ष पद पाने में सफल हो गये। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा के लिये 20 नवम्बर को मतदान हुआ था और नतीजे 23 निकले थे। इसमें भाजपा को 132 सीटें मिलीं और उसका दावा है कि 3 निर्दलीय विधायकों का भी उसे समर्थन है।
देवेन्द्र फडणवीस तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गये हैं लेकिन सारी नज़रें पूर्व मुख्यमंत्री शिंदे पर बनी रहेंगी। इसका कारण है उनके बदले हुए तेवर। हालांकि चुनाव के पहले माना जा रहा था कि महायुति (भाजपा-शिंदे की शिवसेना-अजित पवार की एनसीपी) की जीत की गुंजाइश नहीं है लेकिन इस अप्रत्याशित जीत ने शिंदे के साथ अजित पवार के खेल को बिगाड़ दिया क्योंकि दोनों ही उम्मीद लगाये बैठे थे कि चाहे महायुति जीते या महाविकास आघाड़ी (कांग्रेस-उद्धव की शिवसेना-शरद पवार की एनसीपी)- किंगमेकर वे दोनों ही रहेंगे। दोनों की उम्मीद त्रिशंकु विधानसभा से थी लेकिन अब नयी सूरत में भाजपा के अलावा किसी की नहीं चल सकती। दोनों के पास भाजपा को समर्थन देने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता। अजित पवार ने परिस्थितियों को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया। ज्यादा सौदेबाजी किये बगैर उन्होंने नयी सरकार में वही पद स्वीकार कर लिया जो वे पिछली सरकार में (शिंदे के नेतृत्व वाली) सम्हालते थे।
शिंदे ने अलबत्ता शपथग्रहण के कुछ घंटे पहले तक रहस्य बनाए रखा कि वे सरकार में शामिल होंगे या नहीं। उन्होंने जो तेवर दिखलाये उससे साफ़ है कि आगे भी वे भाजपा के लिये सरदर्द बने रहेंगे। जैसे ही तय हुआ कि भाजपा फडणवीस का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे बढ़ा सकती है, शिंदे बीमारी तथा चुनाव प्रचार की थकान का बहाना कर सातारा स्थित अपने गांव चले गये। दो दिन बाद लौटे तो उनकी नाराज़गी बरकरार थी। बुधवार की शाम फडणवीस उनके शासकीय आवास ‘वर्षा’ बंगले पर गये जिसके बाद उन्होंने घोषित किया कि वे नयी सरकार को समर्थन देते रहेंगे। खुद के लिये किसी पद को लेने से इंकार कर दिया। हालांकि कहा जाता है कि उन्होंने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाक़ात कर कहा कि उन्हें अगले 6 माह तक मुख्यमंत्री बना रहने दिया जाये जिसे केन्द्रीय नेतृत्व ने अस्वीकृत कर दिया, यह कहकर कि इससे भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच ख़राब संदेश जायेगा। शिवसेना (उद्धव) के मुखपत्र सामना में तो एक कार्टून छापा गया है जिसमें शाह के समक्ष शिंदे को गिड़गिड़ाते हुए दिखलाया गया है जिसमें शिंदे कह रहे हैं कि ‘उन्हें इस पद पर 6 माह और रहने दिया जाये।’
गुरुवार की शाम को मुम्बई के ऐतिहासिक आजाद मैदान में नयी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का जो आमंत्रण पत्र बांटा गया है, उसमें शिंदे का नाम गायब बताया गया। दिन भर उन्हें मनाने की तरकीबें आजमाई जाती रहीं। लोगों ने मान भी लिया; और संकेत भी यही बताते हैं कि वे उपमुख्यमंत्री बनें या न बनें, उनकी नाराज़गी बनी रहेगी क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री पद का स्वाद चख लिया है। वे यह भी जान गये हैं कि अगर वे फडणवीस के तहत उप मुख्यमंत्री बनते हैं तो उनकी गति भी अजित पवार जैसी ही होगी जो एक वक़्त मुख्यमंत्री तो बनना तो चाहते थे लेकिन अब किसी भी तरह से मोल-भाव करने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिये उन्होंने अपने सांसद बेटे श्रीकांत को भी उप मुख्यमंत्री बनाने या खुद के केन्द्र में कोई पद लेने के प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया। शिंदे के 57 विधायक हैं और 7 सांसद लोकसभा में हैं। हालांकि उनके किये से केन्द्र की सरकार गिरने से रही और वहां वे कोई वैसा बड़ा खेल नहीं कर सकते जिस प्रकार से तेलुगु देसम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू या जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार कर सकते हैं जिनके क्रमशः 16 व 12 सदस्य हैं। शिंदे जो भी करेंगे महाराष्ट्र में कर सकते हैं इसलिये उन पर नज़रें बनी रहेंगी।
भाजपा के लिये शिंदे की उपयोगिता खत्म हो चुकी है। शिवसेना सांसद संजय राउत के शब्दों में कहें तो एकनाथ शिंदे का युग बीत चुका है, अब वे कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। अब भाजपा का प्रयास यही रहेगा कि पूर्ण बहुमत पाने के लिये 142 का आंकड़ा शिंदे की पार्टी को तोड़कर ही जुटाया जाये ताकि उसकी निर्भरता उनके साथ अजित दादा पर भी न रहे। अब शिंदे के पास भाजपा को समर्थन देने के अलावा और कोई चारा भी नहीं रह गया है। जिस प्रकार से महाराष्ट्र में तोड़-फोड़कर अनैतिक तरीके से सरकारें गिराई और बनाई जाती रहीं, उसका परिणाम यही होना था कि वहां फिर से सत्तारुढ़ हुए तीनों धड़ों में जीत के बावजूद गहरा अविश्वास कायम है। जिस लिहाज से प्रमुख मंत्रालयों (खासकर गृह, वित्त एवं शहरी विकास) पर खींचतान जारी है, उससे साफ़ है कि महाराष्ट्र की नयी सरकार की राह कठिन रहेगी।