अमृता देवी का बलिदान क्या भूल गया है राजस्थान?

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कहो तो कह दूं।

-बृजेश विजयवर्गीय-

बृजेश विजयवर्गीय

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोटा आते-आते बहुत देर कर दी। बुधवार को जिस कथित ऑक्सीजोन सिटी पार्क का लोकार्पण उन्होंने किया उसके लिए बहुत-बहुत बधाई देने का मन कर रहा था। जोधपुर से आने वाले गहलोत साहब को याद दिलाना चाहते हैं कि जिस शहर में एक घास का तिनका नहीं उगा सकते उस शहर में आप ऑक्सीजन पार्क का उद्घाटन कर गए। 2 दिन पहले ही वन शहीद दिवस मनाया था तब कोटा में हमने भी अमृता देवी की मूर्ति पर पुष्प अर्पित किए थे। तब इसी आईएल कॉलोनी के सामने से निकलने का अवसर प्राप्त हुआ तो सोचा कि कहीं से ऑक्सीजन की फैक्ट्री खुली रही है। इस शहर का वाशिंदा होने के नाते झालावाड़ रोड पर छोटे पुल से देखने पर लगा कि कभी यहां आईएल के कर्मचारी रहा करते थे। अब ऑक्सीजन पर भी पहरा लगेगा या कीमत चुकाकर जाना पड़ेगा। जोधपुर से आने वाले माननीय को याद दिलाना जरूरी है कि खेजड़ी में 363 महिलाओं का बलिदान उस समय भी राज्य देश से पेड़ बचाने को लेकर हुआ था और आज भी पेड़ों को काटने का राज्यादेश हर संवेदक की जेब में मौजूद है। पूछता है राजस्थान कि क्या अमृता देवी का बलिदान व्यर्थ गया?
जिस आईएल टाउनशिप में एम्यूजिंग पार्क के नाम पर ऑक्सीजन कहा जा रहा है वहां ऑक्सीजन पर पहरा लगना क्या आपको जंचता है। जहां राष्ट्रीय पक्षी मोर कभी चहका करते थे, वहां एम्यूजमेंट पार्क बनाकर किसे प्राणवायु ष्देने की बात हो रही है।
पिछले 4 साल में ही कोटा शहर में एक लाख से अधिक पेड़ों को तथाकथित विकास के नाम पर काट दिया गया या मरने के लिए छोड़ दिया गया। इंच इंच जमीन पर सीमेंट कंक्रीट की प्ररत चढ़ा दी गई ,खाली जमीन इंच भर भी नहीं छोड़ी गई। भविष्य में कोई पेड़ न लग सके इसकी पुख्ता व्यवस्था भी कर दी गई। माननीय 24 घंटे कोटा में रहेंगे सर्किट हाउस के पास का यदि भ्रमण कर लें तो उनको लोहआवरण में जकड़े हुए पेड़ भी दिख जाएंगे। कोटा बहुत सुंदर बन गया है। प्राचीन हेरिटेज को दिखाने के लिए तो बड़े-बड़े पेड़ों को काटा छांटा गया, संग्रहालय का स्थापत्य दिखाने के लिए पेड़ों को साफ किया गया। पेड़ काटकर पत्थरों में सौंदर्य ढूंढने वाले आर्किटेक्ट को विश्व स्तर पर मान्यता मिलने वाली है। पर्यटन को पंख लग गए लेकिन मोर के पंख कट गए। कोचिंग नगरी का तामगा 5-5 विश्वविद्यालय होने पर भी शिक्षा नगरी पर भारी पड़ गया जहां पढ़ने के लिए फीस ही नहीं देनी पड़ती प्राण भी देने पड़ते हों,वहां नकली प्राण वायु कि नकली फैक्ट्रियां इस अमृता देवी के बलिदान को व्यर्थ हो जाने के लिए तैयार पर्याप्त है। माननीय जिस रिवर फ्रंट को चालू करने के लिए आप आने वाले थे, उसके आगे तो कोई भक्त प्रहलाद आ गया। उसे भक्त की भक्ति कितनी सही है या गलत यह तो वक्त बताएगा लेकिन वन विभाग के आला अफसर यह नहीं बताएंगे कि हम चुप क्यों रहे? माननीय रिवर फ्रंट चंबल की डाउनस्ट्रीम में ही है अपस्ट्रीम तो सीवर फ्रंट ही कहलाएगी सरकार! जहां प्राण वायु पर पहरा है, वही नदी के दर्शन पर फाइबर सीटों का पहरा। बिना पैसे के कोई कैसे देख ले इस चंबल मां को?

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