
-धीरेन्द्र राहुल-

जयपुर में हुई दुखान्तिका में रिटायर्ड आईएएस करणसिंह राठौड़ की भी मृत्यु हो गई है। वे अपनी कार में जलकर भस्म हो गए थे। डीएनए जांच से भी पुष्टि हो गई है कि वे हमारे बीच नहीं है। कोटा से जुड़ी उनकी घणी यादें हैं।
कोटा नगर परिषद में भ्रष्ट प्रशासकों की लंबी श्रृंखला रही है, जिन्होंने खाया कम ढोला ज्यादा। ऐसे में राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अफसर करणसिंह राठौड़ को सन् 1988 में कोटा नगर परिषद का प्रशासक नियुक्त किया गया तो लगा कि सुखद बयार का एक झौंका आया है।
वे हद दर्जे के ईमानदार अफसर थे। कठोर और निष्पक्ष प्रशासक। एक बार जो फैसला कर लेते थे। फिर किसी की नहीं सुनते थे। नगर परिषद में भ्रष्ट और निकम्मों की कमी नहीं थी। तिस पर अधिकांश को किसी न किसी राजनीतिज्ञ का समर्थन प्राप्त था। ऐसे में राठौड़ ने पनिशमेन्ट और प्रमोशन की स्कीम अपनाई। अच्छा काम करने वालों को पदोन्नति दी और भ्रष्टों को 16 सीसी के नोटिस दिए। साथ ही यह भी कहा कि मेरे रहते अगर तुम्हारा आचरण ठीक रहा तो जाते समय यह नोटिस फाड़कर फेंक जाऊंगा, अन्यथा अमल कर जाऊंगा। जाहिर है कि माहौल खराब करने वालों को उन्होंने नकेल पहना दी थी।
अतिक्रमण हटाने में उन्होंने किसी के साथ पक्षपात नहीं किया। सुंदर धर्मशाला एरिया में अतिक्रमण हटाते समय भाजपा के एक बड़े नेता का अतिक्रमण सामने आया तो शहरवासी यह सोच रहे थे कि अब राठौड़ क्या करते हैं ? लेकिन राठौड़ ने अन्य दुकानदारों की तरह उस नेता का भी अतिक्रमण ध्वस्त किया।
करणीसिंह राठौड़ के काल में ही कोटा में विकास और नवनिर्माण की नई इबारत लिखी गई। जिसे बाद में नगर विकास न्यास अध्यक्ष हरिकृष्ण जोशी ने कंचनजंघा तो नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने एवरेस्ट पर पहुंचाया दिया।
यद्धपि इसमें व्यवधान आते रहते हैं लेकिन शहर का विकास थमता नहीं। लेकिन आजादी के बाद सबसे पहले शहर के विकास का सपना करणसिंह राठौड़ ने ही सामने रखा था।
उनकी काम करने की शैली से अनेक लोग नाराज थे। सचिवालय स्तर से उन्हें नोटिस दिया गया कि वे नगर परिषद की प्राथमिक ड्यूटी साफ सफाई की उपेक्षा कर रहे हैं और निर्माण पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। उनके समय नगर परिषद में आयुक्त पद पर लक्ष्मण सिंह भी तैनात थे। वे दयालु अफसर थे और गरीबों का काम सर्वोच्च प्राथमिकता से करते थे।
(फोटो एवं आलेख धीरेन्द्र राहुल की फेसबुक वॉल से साभार)
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