मोहन भागवत का तारीफ के लायक बयान, उसे आगे बढ़ाने की जरूरत

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मोहन भागवत। फोटो साभार सोशल मीडिया

-सुनील कुमार Sunil Kumar

आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने अभी एक कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने को लेकर फिक्र जाहिर की है। उन्होंने कहा कि मंदिर-मस्जिद के रोज नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहते हैं, तो ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं। उन्होंने कहा- हमारे यहां हमारी ही बातें सही, बाकी गलत, यह चलेगा नहीं…, अलग-अलग मुद्दे रहे तब भी हम सब मिलजुलकर रहेंगे। हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ न हो, इस बात का ख्याल रखेंगे। जितनी श्रद्धा मेरी खुद की बातों में है, उतनी श्रद्धा मेरी दूसरों की बातों में भी रहनी चाहिए। हर धर्म और दूसरों के आराध्य का सम्मान करना चाहिए। मोहन भागवत ने पुणे में एक व्याख्यानमाला में कहा- हर दिन एक नया विवाद उठाया जा रहा है, इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है। हाल के दिनों में मंदिरों का पता लगाने के लिए मस्जिदों की सर्वेक्षण की मांगें अदालतों में पहुंची हैं। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों में अल्पसंख्यकों के साथ क्या हो रहा है? अक्सर भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर चर्चा की जाती है, अब दूसरे देशों में अल्पसंख्यक समुदायों को किस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

इसके दो-चार दिन पहले ही दिन मोहन भागवत ने कहा था कि व्यक्ति को अहंकार से दूर रहना चाहिए, नहीं तो वह गड्ढे में गिर सकता है। उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति में एक सर्वशक्तिमान ईश्वर होता है जो समाज की सेवा करने की प्रेरणा देता है, लेकिन अहंकार भी होता है। उन्होंने कहा था कि राष्ट्र की प्रगति केवल सेवा तक सीमित नहीं है, सेवा का उद्देश्य नागरिकों को विकास में योगदान देने में सक्षम बनाना होना चाहिए। यहां यह भी चर्चा के लायक है कि मोहन भागवत ने कुछ महीने पहले एक ऐसा बयान दिया था जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना माना जा रहा था। मोदी ने अपने आपको एक खास मकसद पूरा करने के लिए ईश्वर का भेजा हुआ बताया था, और इसके बाद आए भागवत के एक बयान में उन्होंने कहा था कि इंसान पहले सुपरमैन फिर भगवान बनना चाहता है। उन्होंने एक और बयान में मणिपुर के बारे में कहा था कि मणिपुर जल रहा है उस पर कौन ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना कर्तव्य है।

मोहन भागवत हिन्दुओं के सबसे पुराने और सबसे बड़े संगठन, आरएसएस के मुखिया हैं। और उनके बयान कई बार परस्पर विरोधाभासी भी रहते हैं, और कई बार उनसे गैरजरूरी विवाद भी खड़े होते हैं। लेकिन इस बार के उनके बयान को हम एक हिन्दू नेता, और एक हिन्दुस्तानी की एक जायज फिक्र से उपजे हुए मानते हैं। कुछ अरसा पहले भी उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने की कोशिश गलत है, यह नहीं होना चाहिए, और अभी फिर उन्होंने जगह-जगह मस्जिद के नीचे मंदिर विवाद पर साफ-साफ आपत्ति जाहिर की है। ऐसा लगता है कि भागवत पिछले कुछ अरसे में आत्ममंथन और आत्मविश्लेषण करके, चाहे अस्थाई और तात्कालिक रूप से ही सही, इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि अधिकतर हिन्दू आबादी वाले देश में एक हिन्दूवादी सरकार के रहते अगर हिन्दुओं को लगातार खतरे में बताया जाता रहेगा, और लगातार साम्प्रदायिक तनाव खड़े किए जाते रहेंगे, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान हिन्दुओं को ही होगा, और हो भी रहा है। देश की अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े हिस्से पर हिन्दू ही काबिज हैं, और देश में किसी भी तरह के तनाव की वजह से जब कानून व्यवस्था बिगड़ती है, उत्पादकता मार खाती है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान हिन्दू समाज को होता है, और इससे दुनिया भर में साख हिन्दूवादी सरकार की खराब हो रही है। दुनिया भर में यह माना जा रहा है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। और अभी भागवत ने बांग्लादेश के हिन्दुओं पर हमले की जो चर्चा की है, उसके बारे में भी यह समझने की जरूरत है कि उसे मुद्दा बनाने का भारत का, और हिन्दू समाज का नैतिक अधिकार भारत में जगह-जगह खड़े किए जा रहे, और स्थाई बनाए जा रहे साम्प्रदायिक तनावों से कमजोर हो जा रहा है। पड़ोस का छोटा सा बांग्लादेश भी वहां चल रहे साम्प्रदायिक तनाव के जवाब में भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को गिना रहा है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान के पीछे की उनकी नीयत पर हम जाना नहीं चाहते, उनके जो शब्द हैं, उनकी साफगोई की हम आज के इस वक्त में तारीफ करते हैं। उनका यह कहना कि हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं, यह देश संविधान के मुताबिक चलता है, और पुरानी लड़ाईयों को भूलकर हमें सबको संभालना चाहिए, सबको एक साथ रहना चाहिए, ये बातें मायने रखती हैं। इसके बाद आरएसएस से जुड़े हुए राजनीतिक दल भाजपा, और संघ परिवार के दूसरे दर्जनों अलग-अलग संगठन मस्जिदों की नींव खोदने के फतवों से हो सकता है कुछ अरसा परे रहें। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने इस धंधे पर पूरी ही रोक लगा दी है, और धर्मस्थल उपासना कानून पर व्यापक विचार-विमर्श कर रहा है, लेकिन देश भर जो माहौल खराब किया जा रहा है, उस पर हो सकता है कि भागवत के बयान के बाद कुछ रोक लगे।

हमारा वैसे भी यह मानना है कि देश में अगर नरेन्द्र मोदी की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के रहते अगर हिन्दुत्व पर खतरा बार-बार कहा जाता है, अगर हिन्दू को असुरक्षित बताया जाता है, तो इससे सरकार की साख खराब होती है, और ऐसा लगता है कि क्या 80 फीसदी हिन्दू आबादी के सौ करोड़ लोग भी इतने कमजोर हैं कि वे अपने को बचा नहीं पा रहे हैं? अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की साख में सबसे बड़ा बट्टा भारत के साम्प्रदायिक तनाव को लेकर ही लगता है। और मोहन भागवत जिस विचारधारा के अगुवा हैं, उन्हें भी यह बात शायद अच्छी नहीं लगेगी कि हिन्दुओं की बहुतायत वाले देश की साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब हो। कांग्रेस सांसद शशि थरूर से लेकर बहुत से मुस्लिम नेताओं ने भी मोहन भागवत के इस ताजा बयान और रूख का गर्मजोशी से स्वागत किया है। हमारा भी यही मानना है कि संघ के इतिहास की नींव खोदने के बजाय उसके इस ताजा रूख का सार्वजनिक समर्थन किया जाना चाहिए, और पुरानी बातों का हवाला देकर भागवत को नीचा दिखाने के बजाय उनके इस ताजा रूख को आगे बढ़ाना चाहिए ताकि देश में फैलाई जा रही साम्प्रदायिक हिंसा को भागवत के असर से रोका जा सके। देश और कई प्रदेशों की सरकारों के साथ-साथ हिन्दुओं का कई हिस्से भागवत के बयानों से सहमत होते हैं, ऐसे में उनकी अभी कही गई बातों का देश के हित में फायदा उठाना चाहिए।

(देवेन्द्र सुरजन की फेसबुक वॉल से साभार)

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