
#सर्वमित्रा_सुरजन
देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव करवाने के उद्देश्य से निर्वाचन आयोग का गठन किया गया था और इसमें आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान इस तरह से रखा गया था कि उनके लिए बिना किसी दबाव के कार्य करने का माहौल बने। लेकिन पिछले कुछ बरसों में बार-बार चुनाव आयोग पर सवाल खड़े हो रहे हैं, जिससे इस स्वतंत्र संवैधानिक संस्था की साख ही नहीं, देश के लोकतंत्र को भी नुकसान हो रहा है। ईवीएम बेशक चुनाव की लंबी और जटिल प्रक्रिया को आसान बनाती है, लेकिन बार-बार दावे किए जाते हैं कि ईवीएम हैक हो सकती है। हालांकि चुनाव आयोग इसे नहीं मानता और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यही माना है कि अभी ईवीएम का जो इस्तेमाल हो रहा है, वह ठीक है। अब ईवीएम के साथ-साथ मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप लगने शुरु हो गए हैं। पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में कांग्रेस ने आरोप लगाए हैं कि मतदाता सूची में बिना सत्यापन के नाम जोड़े गए हैं और फर्जी मतदान से बीजेपी को जिताया गया है। लेकिन आयोग ने ऐसे आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि प.बंगाल में ममता बनर्जी ने जब इस बात के सबूत दिए कि ईपीआईसी यानि मतदाता पहचान पत्र नंबर एक साथ दो-दो जगहों पर आबंटित हुआ है, जिसमें एक मतदाता प.बंगाल का है और उसके पास जिन अंकों वाला कार्ड है, उन्हीं अंकों वाला कार्ड दूसरे राज्य के मतदाता के पास भी है, तो फिर चुनाव आयोग की सफाई आई कि मतदाता सूची डेटाबेस को ईआरओएनईटी प्लेटफॉर्म में स्थानांतरित करने के कारण ऐसा हुआ होगा। अब उस गड़बड़ी को सुधारते हुए आयोग ने अद्वितीय ईपीआईसी नंबर जारी करने का फैसला लिया। यानी गड़बड़ी हुई है, भले सायास न हो।
अब महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस ने कुछ गंभीर सवाल उठाए थे कि पांच साल में जितने मतदाता नहीं बढ़े, उससे ज्यादा पांच महीने में कैसे बढ़ गए। चुनाव आयोग मशीन रिडेबल फार्म में मतदाता सूची क्यों उपलब्ध नहीं करा रहा है। इन सवालों के साथ राहुल गांधी ने हाल ही में एक लेख भी लिखा था और फिर से पूछा था कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश को हटाकर केन्द्रीय मंत्री को क्यों शामिल किया गया। जब आयुक्त के पद पर कौन बैठेगा यह फैसला प्रधानमंत्री और उनके केन्द्रीय मंत्री ले लेंगे तो फिर नेता प्रतिपक्ष की राय चाहे जो हो, वह मानी ही नहीं जाएगी। लेकिन विडंबना है कि नेता प्रतिपक्ष की आपत्तियों और सवालों को सरकार तो हल्के में ले ही रही है, चुनाव आयोग का रवैया भी ऐसा ही हो गया है। हालांकि राहुल गांधी सवाल उठाना नहीं छोड़ रहे। मतदान के वीडियो फुटेज पहले एक साल रखने का नियम था, अब आयोग ने उसे 45 दिन कर दिया है, तब भी राहुल गांधी ने आयोग पर सबूत मिटाने के आरोप लगाए थे। अब फिर से महाराष्ट्र की हाईप्रोफाइल नागपुर दक्षिण पश्चिम सीट पर उन्होंने सवाल किए हैं। दरअसल मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस की इस सीट पर लोकसभा चुनाव 2024 और विधानसभा चुनाव के बीच के मात्र छह महीनों में 29,219 नए वोटर जोड़े गए। यानी औसतन हर दिन 162 वोटर। यह वृद्धि 8.25 प्रतिशत है, जो चुनाव आयोग के तय 4 प्रतिशत की सीमा से दुगनी है। अगर यह सीमा पार होती है तो वहां मतदाताओं के अनिवार्य सत्यापन की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। न्यूज़ लॉन्ड्री की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है, जिसके बाद राहुल गांधी ने मंगलवार को ट्वीट किया – महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में, मतदाता सूची में केवल 5 महीनों में 8फीसदी की वृद्धि हुई। कुछ बूथों पर 20-50फीसदी की वृद्धि देखी गई। बीएलओ ने अज्ञात व्यक्तियों द्वारा वोट डालने की सूचना दी। मीडिया ने बिना सत्यापित पते वाले हजारों मतदाताओं का पता लगाया। और चुनाव आयोग? चुप – या मिलीभगत। ये अलग-अलग गड़बड़ियां नहीं हैं। यह वोट चोरी है। कवर-अप ही कबूलनामा है। इसलिए हम डिजिटल मतदाता सूची और सीसीटीवी फूटेज को तुरंत जारी करने की मांग करते हैं।
बता दें कि न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, 50 बूथों में कम से कम 4,393 वोटरों के पते दर्ज नहीं हैं। जबकि चुनाव आयोग की प्रक्रिया के अनुसार फॉर्म 6 के साथ घर के पते का प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है, और बीएलओ द्वारा मौके पर जाकर सत्यापन किया जाना चाहिए। लेकिन स्थानीय बूथ लेवल अधिकारियों का दावा है कि कई क्षेत्रों में ऐसी कोई जांच नहीं की गई।
रिपोर्ट में कहा गया कि नागपुर द.पश्चिम विधानसभा के 378 बूथों में से 263 में वोटर की संख्या में 4 फीसदी से ज़्यादा वृद्धि देखी गई। इनमें से 26 बूथों में 20 फीसदी से ज़्यादा और 4 बूथों में 40फीसदी से ज़्यादा की वृद्धि दर्ज की गई। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक ऐसी वृद्धि होने पर जमीनी स्तर पर सत्यापन, सुपरवाइजर जांच और सीईओ स्तर पर सुपर-चेकिंग अनिवार्य है। लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने जिन ब्लॉक अधिकारियों से बात की, उनमें से कई ने बताया कि उन्हें जिला चुनाव कार्यालय से फॉर्म थोक में मिले, और अधिकांश के पते या व्यक्ति उन्हें कभी मिले ही नहीं।
नागपुर में वोटरलिस्ट धांधली का सबसे बड़ा सबूत है कि ईसीआई के नियमों का पालन नहीं हुआ या नहीं कराया गया। ग्राउंड पर तैनात अधिकारियों ने खुद ही वोटरलिस्ट का सत्यापन नहीं करने की बात स्वीकार की है। लेकिन चुनाव आयोग मतदाता सूची में कमी या बढ़त को इसलिए मामूली घटना मान रहा है क्योंकि माइग्रेशन अब बहुत सामान्य हो गया है। उसके मुताबिक अगर फॉर्म भरने वाले के पास कुछ दस्तावेज़ हैं और बीएलओ ने फील्ड वेरिफिकेशन कर लिया, तो हम उसे जोड़ देते हैं।’ हालांकि नागपुर साउथ वेस्ट जैसी हाई-प्रोफाइल सीट पर अगर बड़े पैमाने पर बिना सत्यापन के वोटर जुड़ रहे हैं, तो यह चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अगर बूथ स्तर के कर्मचारी खुद कह रहे हैं कि उन्हें नए वोटरों के बारे में जानकारी नहीं है, तो इसे मतदाता सूची में हेरफेर की तरह ही देखा जाना चाहिए। मगर आयोग यहां बेफिक्र दिख रहा है।
नागपुर जिले की जनगणना के मुताबिक 2001 और 2011 के बीच 14 प्रतिशत की जनसंख्या वृद्धि बताती है। जो पिछले दशक की तुलना में कम थी। अगर आबादी में यकायक वृद्धि नहीं हो रही है, तो मतदाता सूची में संख्या कैसे बढ़ रही है, यह सोचने वाली बात है। चुनाव आयोग को अपनी साख और लोकतंत्र दोनों का ध्यान रखते हुए इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)