
#सर्वमित्रा_सुरजन
41 साल बाद एक बार फिर भारत के अंतरिक्ष यात्री के कदम अंतरिक्ष की तरफ बढ़े हैं। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अन्य तीन अंतरिक्ष यात्रियों के साथ बुधवार को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तरफ बढ़े, तो इतिहास रचने के इस पल के करोड़ों लोग साक्षी बने। भारत में कानपुर में जहां शुभांशु शुक्ला की पढ़ाई हुई है, वहां बाकायदा व्योमोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों स्कूली बच्चे शामिल हुए।
इससे पहले 1984 में भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष यात्रा की थी। तब सोवियत रूस के साथ भारत के एक संयुक्त मिशन के तहत राकेश शर्मा आठ दिनों की अंतरिक्ष यात्रा पर गए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनका ऐतिहासिक संवाद आज भी रोमांचित करता है। अंतरिक्ष में बैठे राकेश शर्मा से इंदिरा गांधी ने पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखाई देता है और जवाब में राकेश शर्मा ने कहा था- सारे जहां से अच्छा।
इस अद्भुत संवाद की याद इसलिए भी आई क्योंकि शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा पर राकेश शर्मा का एक रिकार्ड किया हुआ पॉडकास्ट रक्षा मंत्रालय ने जारी किया है, जिसमें राकेश शर्मा से पूछा गया कि अंतरिक्ष से दुनिया और भारत को देखकर उन्हें कैसा महसूस हुआ, तो उन्होंने कहा, ‘ओह डियर! बहुत सुंदर।’ हालांकि राकेश शर्मा ने यह भी कहा कि अंतरिक्ष यात्रा की तकनीक बदल गई है, लेकिन इंसान ज्यादा नहीं बदले हैं। अंतरिक्ष में जाने से सोच बदल जाती है। इंसान दुनिया को एक अलग तरीके से देखने लगते हैं। उन्हें समझ आता है कि ब्रह्मांड कितना बड़ा है।’
वहीं शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा पर वायुसेना ने एक्स पर पोस्ट किया है कि ‘पृथ्वी से बाहर तिरंगा लहराने वाले स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा के मिशन के 41 साल बाद यह भारत के लिए अद्भुत क्षण आया है। यह एक मिशन से कहीं बढ़कर है – यह भारत की निरंतर बढ़ती क्षमताओं की पुष्टि करता है।’
भारत के लिए यह वाकई गर्व की बात है कि एक बार फिर से अंतरिक्ष यात्रियों की सूची में भारतीय का नाम दर्ज हो गया है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी शुभांशु शुक्ला से बात कर सकते हैं। वैसे हाल में कई ऐसे मौके आए हैं, जिनमें इसरो के अभियानों में श्री मोदी महत्वपूर्ण क्षणों में खुद उपस्थित रहने की कोशिश करते हैं। चंद्रयान सफल हुआ था, तो श्री मोदी के हाथ में छोटा सा तिरंगा लेकर लहराने का दृश्य भी याद है। अब सवाल यह है कि अगर प्रधानमंत्री मोदी शुभांशु शुक्ला से बात करते हैं तो उनका सवाल क्या होगा। क्या वे भी इंदिरा जी की तरह- भारत कैसा दिखाई देता है, यह पूछेंगे, या कोई नया सवाल लाएंगे, जिसमें राष्ट्रवाद की झलक भी दिखे।
बहरहाल, शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष से अपना नमस्कार धरतीवासियों को भेजा है और एक संदेश में उन्होंने बताया है कि किस तरह अंतरिक्ष में रहने के लिए बच्चों की तरह उन्हें सारी चीजें फिर से सीखनी पड़ रही हैं। शुभांशु अपने साथ हंस का एक सॉफ्ट टॉय भी लेकर गए हैं। उनका कहना है कि भारतीय संस्कृति में हंस को ज्ञान, शुद्धता और अनुग्रह का प्रतीक माना जाता है। यह माता सरस्वती का वाहन है, जो विद्या और बुद्धि की देवी हैं। हंस में दूध और पानी को अलग करने की अनोखी क्षमता होती है, जो शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक है। इस खिलौने को ‘जॉय’ नाम दिया गया है। शुभांशु शुक्ला का कहना है कि जॉय को साथ ले जाना मुझे मेरे मूल्यों और संस्कृति से जोड़े रखता है। यह मिशन मेरे लिए सिर्फ एक वैज्ञानिक यात्रा नहीं, बल्कि 1.4 अरब भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक है। बता दें कि हल्के खिलौनों को अंतरिक्ष में साथ ले जाने की पुरानी रवायत रही है। इनसे पता चलता है कि यान में कब शून्य गुरुत्वाकर्षण हो गया है। हालांकि इस बार खिलौने को भारतीय संस्कृति से अंतरिक्ष यात्री ने जोड़ा है। नीर-क्षीर विवेक की बात कहकर शुभांशु शुक्ला ने बता दिया है कि हमारे पुरखों की सोच और दृष्टि कितनी व्यापक, पैनी और साथ-साथ उदार भी थी। लेकिन अभी जिस तरह से भारतीय संस्कृति का गुणगान किया जाता है, उसमें एक संकीर्णता नजर आती है, जो चिंतित करती है।
ज्ञान और बुद्धि के लिए मां सरस्वती को याद करना, शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा को भारत की बढ़ती क्षमताओं का प्रतीक बताना, यह सब तो ठीक है। लेकिन यह वक्त खुद से कुछ सवाल करने का भी है। मसलन, भारत से दूसरे अंतरिक्ष यात्री को जाने में 41 बरस का लंबा वक्त क्यों लगा। क्यों अब भी हमें विदेशी संस्थानों की मदद से अंतरिक्ष यात्रा करनी पड़ रही है। शुभांशु शुक्ला के बाद तीसरे अंतरिक्ष यात्री के लिए भारत को कितना इंतजार करना होगा।
बेशक राकेश शर्मा और शुभांशु शुक्ला के अलावा कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अंतरिक्ष में गए हैं, लेकिन वे अमेरिकी नागरिक के तौर पर गए। भारत ने पहली बार सोवियत रूस की मदद से अपने अंतरिक्ष यात्री को भेजा, तब आजादी को 37 साल ही हुए थे, हालांकि नेहरूजी की प्रेरणा और विक्रम साराभाई, होमी जहांगीर भाभा जैसे दूरदृष्टा वैज्ञानिकों के कारण भारत में अंतरिक्ष और विज्ञान अनुसंधान के श्रेष्ठ संस्थानों की स्थापना हो चुकी थी और देश में ज्ञान-विज्ञान की नयी लहर बह रही थी। इस लहर को और ऊंचा उठाने की जगह राजनैतिक स्वार्थों की रूकावटें डाली गईं, संस्कृति और धर्म के नाम पर रुढ़िवादिता को बढ़ावा मिला। उसी का नतीजा है कि दूसरा अंतरिक्ष यात्री 4 दशक के लंबे वक्त के बाद गया और वह भी अमेरिकी निजी संस्थान की मदद से।
अमेरिका की एक्सियोम कंपनी के निजी मिशन का हिस्सा बनकर शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष गए हैं। इस मिशन में 3 अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां नासा, इसरो और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी भी शामिल हैं। यह मिशन एक्सियोम कंपनी के व्यावसायिक स्पेस स्टेशन की लॉन्चिंग का हिस्सा है। एक्सियोम कंपनी भविष्य में कमर्शियल स्पेस स्टेशन स्थापित करने की तैयारी में है। इस अभियान की सफलता से अंतरिक्ष पर्यटन के द्वार खुलेंगे। जहां तक भारत की बात है तो 2027 में लॉन्च होने वाले इसरो के गगनयान मिशन पर इस अभियान का असर देखने मिलेगा।
लेकिन अंतरिक्ष कार्यक्रमों में दुनिया के दूसरे देशों से आगे निकलना है तो उसके लिए अकेले इसरो पर सारी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी जा सकती। न ही व्योमोत्सव जैसे कार्यक्रम बच्चों में वैज्ञानिक नजरिया भर सकते हैं। इसके लिए फिर से वही तैयारी करने की जरूरत है, जो नेहरूजी ने आजादी के बाद शुरु की थी।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)