
-वर्गीकरण और पुनर्चक्रण की व्यवस्था जरुरी
-बृजेश विजयवर्गीय

अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्ति दिवस 3 जुलाई को मनाया जता है। इस दिवस को मनाने के पीछे यूरोपीय समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य रहा होगा। लेकिन हमारे देश के संदर्भ में देखा जाए तो हम प्लास्टिक पॉलिथीन के कचरे से मुक्ति की युक्ति अभी तक व्यवहार में नहीं ला पाए ।सिर्फ आदेश और उपदेश तक सीमित है और शायद यही कारण है कि प्लास्टिक पॉलिथीन का कचरा और इस कचरे से बने पहाड़ असली पहाड़ों से भी ऊंचे होते जा रहे हैं और हमारे देश की पवित्र नदियां और समुद्र भयंकर प्रदूषित हो रही है। बेतरतीब शहरीकरण के बढ़ने से नालों और नालियों के द्वारा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है। शहरों में ही नहीं गांवों में पालीथीन प्लास्टिक का कचरा घुसपैठ कर चुका है।
सरकारों द्वारा भी दिवस पर आधे अधूरे संदेश दे कर पालीथीन प्लास्टिक रोकने की अपील उस जनता से की जाती है जिसके पास न तो कानून शक्ति है और सत्ता की ताकत और न कोई संगठन या संस्था जो प्रावधानों को लागू करा सके। यदि यदि वास्तव में पॉलीथिन प्लास्टिक के कचरे की समस्या का समाधान करना है तो सरकारों को ही पहल करनी होगी ।सबसे पहले अपने आचरण में लाना होगा ।सरकारें और उनकी दूध डेरियां और औद्योगिक इकाइयां खुद प्लास्टिक के थैलियों में दूध का वितरण करती है और अन्य उत्पाद भी प्लास्टिक के डब्बे में ही प्रस्तुत किए जाते हैं। हर उत्पादों का पेकेजिंग बिना पालीथीन प्लास्टिक के नहीं हो रहा।इस प्रकार के पेकेजिंग उद्योग भी सरकार की अनुमति से ही चल रहें हैं। जब सरकार खुद रोकने की पहल नहीं करती तो बेचारी जनता क्या कर लेगी। प्लास्टिक पालीथीन यदि बहुत जरूरी है तो उनको कचरा बनाने की आदत में सुधार आखिर कौन करेगा? इस सवाल का जवाब भी जिम्मेदार लोगों को ही देना होगा। या हमेशा की तरह सरकार कहेगी कि जनता की जागरूकता पर निर्भर करता है शिक्षा और संस्कार की कमी है या जनता कहेगी कि सरकार निकम्मी है ,अफसर काम नहीं करते सरकार की स्पष्ट नीतियां नहीं है। यह सिलसिला चलता रहेगा हजार साल तक और समुद्र, धरती, नदियां , जलाशय प्रदूषित होते रहेंगे ।न्यायालय भी आदेश ही पारित कर सकते हैं आदेशों की पालन करना तो कार्यपालिका का ही काम है।
दूसरा प्रमुख सवाल है कि समाधान क्या है वैज्ञानिकों ने और विशेषज्ञों ने इसके समाधान भी प्रस्तुत किए हैं कई जगह अपने ही देश भारत में इस तरह की प्रक्रिया शुरू हुई है ,लेकिन बहुत ही धीमी गति से इस प्रकार के काम हो रहे हैं। प्लास्टिक पॉलिथीन के खतरे को बिना कचरा वर्गीकरण के अलग करना संभव नहीं है इसके लिए सेग्रीगेशन में प्रशिक्षित लोगों की टीम हर नगर पालिका, पंचायत स्तर पर आवश्यक है। सरकार को यानी शहरी विकास मंत्रालय को रिसाइक्लिंग यानी पुनर्चक्रण इकाइयों को स्थापित करने में पहल करनी चाहिए। इस मामले में हमारी सरकारी मशीनरी पूर्णतया विफल है। हमारे देश में वर्तमान में प्रचलित सफाई का मॉडल ही बेकार हो गया है उसके स्थान पर नए और आधुनिक सफाई के मॉडल पर काम करने के लिए मैनेजमेंट प्लान बनाने की जरूरत है। ऐसा भी नहीं है कि इस दिशा में कुछ नहीं हो रहा हमारे देश का कबड्डी सिस्टम उसका वर्गीकरण कर रीसाइकलिंग भी कर रहा है लेकिन वह बहुत कम मात्रा में ही हो रहा है। यदि उसमें सरकार गंभीरता से प्रयास करें तो इसमें शत प्रतिशत परिणाम संभव है।
-बृजेश विजयवर्गीय, स्वतंत्र पत्रकार एवं अध्यक्ष कोटा एनवायरनमेंटल सेनीटेशन सोसायटी