
-देशबन्धु में संपादकीय
कभी भरी संसद में अल्पसंख्यक समुदाय के एक सांसद दानिश अली (तब बहुजन समाज पार्टी) का अपमान करने वाले भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद रमेश विधूड़ी ने यह कहकर अपने ओछेपन का परिचय दिया है कि ‘उनकी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनती है तो वे उनके क्षेत्र में प्रियंका गांधी के गालों जैसी सड़कें बनवा देंगे।’ हालांकि इसके लिये उन्होंने खेद जताने की मुद्रा में अपने शब्द वापस ले लिये। वैसे उन्होंने यह भी जोड़ा कि बरसों पहले लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि वे ‘बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गालों जैसी चिकनी बनाएंगे।’ ऐसा करने के बावजूद विधूड़ी का बयान उतनी ही सख्त निंदा के योग्य है जितना कि लालू का। विधूड़ी को इस आधार पर ऐसी टिप्पणी करने का हक़ नहीं मिल जाता क्योंकि तब भी संजीदा लोगों ने लालू का भी विरोध किया था। विधूड़ी को उनकी पार्टी ने कालकाजी से आम आदमी पार्टी की मुख्यमंत्री आतिशी एवं कांग्रेस प्रत्याशी अलका लांबा के ख़िलाफ़ मैदान में उतारा है। उनके बयान की कांग्रेस ने आलोचना की है।
विधूड़ी के दानिश अली वाले बयान पर भाजपा ने कारण बताओ नोटिस तो जारी किया था लेकिन उन्हें आप की सबसे प्रमुख नेताओं में से एक के ख़िलाफ़ चुनावी टिकट देकर साबित कर दिया है कि ऐसे लोग उनके विश्वासपात्र हैं तथा वे पार्टी को जीत दिलाने में सक्षम भी माने जाते हैं। लेकिन वे सक्षम हैं या नहीं, यह तो बाद में ही पता चलेगा। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा में ढले ऐसे कई लोग हाल के वर्षों में सामने आये हैं; और वे कोई सामान्य कार्यकर्ता नहीं हैं वरन ऊंचे पदों पर काबिज हैं। फिर वे चाहें पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हों या प्रवेश वर्मा अथवा प्रज्ञा सिंह ठाकुर। ऐसे लोगों को भाजपा का शीर्ष नेतृत्व न सिर्फ प्रश्रय देता आया है बल्कि उन्हें ऊंचे ओहदे भी सौंपता है। कभी किसी कारण से मामला बिगड़ जाये तो अधिक से अधिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह कह देंगे कि ‘मैं उन्हें दिल से माफ़ नहीं कर पाऊंगा’ या पार्टी ऐसे तत्वों को ‘स्प्लिंटर ग्रुप’ कहकर पीछा छुड़ा लेगी। लोकसभा में विधूड़ी द्वारा दानिश अली को अपशब्द कहने के बाद भी उन्हें टिकट देना बतलाता है कि भाजपा ने ऐसे लोगों को अपनी ताकत बना रखा है। हालांकि मोदी से इसलिये उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वे खुद भी महिलाओं के सम्मान के खिलाफ बातें कर जाते हैं। फिर चाहे वह पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी ममता बैनर्जी को ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर चिढ़ाना हो या मणिपुर में महिलाओँ के साथ हुए दुष्कर्म पर चुप्पी साधना।
वैसे यह केवल एक दल की बात नहीं है। भारत के ये ऐसे कुसंस्कार हैं जिन्होंने समाज को परिष्कृत होने से रोके रखा है। समाज की महिला विरोधी मानसिकता का ही प्रतिनिधित्व विधूड़ी जैसे लोग करते हैं। उन्हें प्रश्रय देना इसलिये भाजपा द्वारा स्वाभाविक है, क्योंकि भाजपा हो या उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा उनके अन्य सहयोगी संगठन- सभी में मूल समानता यही है कि वे पितृ सत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में भरोसा रखते हैं। एक आधुनिक व प्रगतिशील समाज बनने की प्रक्रिया के रूप में इस बुरी व्यवस्था का जो विरोध होता आया था, उसे भाजपा के शासनकाल में मटियामेट कर दिया गया है। महिलाओं के खिलाफ अपराध सतत बढ़ते जा रहे हैं और मार्के की बात तो यह है कि ऐसा सबसे ज्यादा भाजपा शासित राज्यों में हो रहा है। इसी मानसिकता ने देश भर में एक ऐसा वर्ग खड़ा कर दिया है जो महिलाओं के प्रति असंवेदनशील ही नहीं वरन बेहद क्रूर भी है।
सोशल मीडिया पर जायें तो अपनी विरोधी विचारधारा से जुड़ी महिलाओं को लेकर निहायत भद्दी, असभ्य और अश्लील टिप्पणियां पढ़ने-सुनने को मिलेंगी। फिर ये महिलाएं ज़रूरी नहीं कि केवल सियासी दलों से सम्बद्ध हों। वह नारंगी वस्त्रों में नृत्य करती दीपिका पादुकोण हो सकती हैं या लोकतंत्र की पक्षधर सम्मानित लेखिका अरुंधति राय, किसान आंदोलन का साथ देने वाली स्वरा भास्कर हो अथवा अंधविश्वास के विरूद्ध लिखने वाली गौरी लंकेश, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा या अगर विराट कोहली का बल्ला न चला तो उनकी पत्नी अनुष्का शर्मा – सभी के साथ यह ट्रोल ब्रिगेड अशिष्ट और बर्बर तरीके से पेश आता है। यह उसी समाज की देन है जिसकी भाषावली में हर दूसरी गाली स्त्री से सम्बन्धित है। औरत के प्रति अपनी कुंठा को वह विचारधारा के समर्थन अथवा विरोध का नाम देकर निकालता है। यह वर्ग, जिसकी नुमाइंदगी विधूड़ी जैसे लोग करते हैं इसलिये राजनीतिक सफलता अर्जित करते हैं क्योंकि उनका समर्थक और वोटरों का भी एक बड़ा हिस्सा इसी मानसिकता की पैदावार है- जस राजा तस प्रजा। शासकों ने अपने लायक जनता बना ली है और जनता अपनी पसंद के ऐसे लोगों को बार-बार ऊंचे पदों पर आसीन करती है।
दुनिया में बहुत सी महिलाएं हैं और भाजपा के पास उनकी सदस्य के रूप में बड़ी तादाद में महिलाएं हैं, फिर आखिरकार विधूड़ी को प्रियंका का ही नाम क्यों याद आया? सम्भवतः इसलिये क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस तथा नेहरू-गांधी परिवार के प्रति जो नफ़रत का जलजला भाजपा ने खड़ा किया है, उन्हीं संस्कारों के साथ विधूड़ी (और उनके जैसे करोड़ों) बड़े हुए हैं। ऐसे में यदि वे सभी को छोड़कर उसी प्रियंका को अपमानित करें तो आश्चर्य नहीं, जो तमाम विरोधों के बाद भी देश में लोकप्रिय हो रही हैं और भाजपा के न चाहते हुए भी वायनाड से सांसद बनकर उसी सदन में बैठ गयी हैं जिसके लिये विधूड़ी को टिकट नहीं मिला था।