
-देवेंद्र यादव-

क्या कांग्रेस इतनी लाचार हो गई है अथवा क्या मजबूरी है कि बिहार में लालू प्रसाद यादव के सामने झुकने को तैयार है। इसे लालू प्रसाद यादव की कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति वफादारी तो नहीं कहेंगे बल्कि अब यह दिखाई देने लगा है कि कांग्रेस या तो लाचार है या फिर कांग्रेस की मजबूरी है। मगर सही मायने में देखें तो राज्य दर राज्य चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस हाई कमान भ्रमित है। कांग्रेस हाई कमान ने हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय भी सबक नहीं लिया है और ना ही अब सबक लेती दिखाई दे रहा है।
हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने वही बात कही थी जो बात उन्होंने बिहार के संदर्भ में 25 मार्च को बिहार के नेताओं के साथ बैठक कर कही। राहुल गांधी ने कहा कि बिहार में कांग्रेस राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। यही बात हरियाणा और विधानसभा चुनाव के समय राहुल गांधी ने कही थी कि हरियाणा और दिल्ली में कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। यही कांग्रेस की बाद में कमजोरी साबित हुई और इस कमजोरी का फायदा आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को झुका कर लिया और कांग्रेस को बीच मझधार में छोड़ दिया। दोनों पार्टियों में समझौता नहीं हुआ और अलग-अलग चुनाव लड़ी। जिसका फायदा भाजपा ने उठाया और कांग्रेस हरियाणा में सरकार नहीं बना सकी और दिल्ली में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई। बिहार में भी स्थिति मझधार की तरह नजर आ रही है। अंतिम समय में बिहार के भीतर क्या होगा क्या दिल्ली और हरियाणा की तरह बिहार में कांग्रेस ना तो अपनी अलग रणनीति बना पाएगी और ना ही आरजेडी से मिलकर चुनाव लड़ पाएगी और परिणाम वही हरियाणा और दिल्ली के जैसा होगा। कांग्रेस का कार्यकर्ता सक्रिय नहीं है इसकी वजह कांग्रेस कार्यकर्ता नहीं है इसकी वजह भी पार्टी के रणनीतिकार हैं क्योंकि पार्टी के रणनीतिकार ऐसी नीतियां बनाते हैं जो कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ती हैं और कार्यकर्ता कुंठित होकर अपने घरों में जाकर बैठ जाता है। इसकी मिसाल बिहार है। बिहार में हाई कमान ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए रणनीति बनाई। कांग्रेस ने बिहार में अपना राष्ट्रीय प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष बदला। कन्हैया कुमार को दिल्ली से बिहार भेजा। कन्हैया कुमार ने बिहार में पलायन रोको रोजगार दो यात्रा शुरू की। कांग्रेस के इस कदम ने बिहार में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जो कुंठित होकर घरों में बैठे थे उन्हें बाहर निकाला। लेकिन 25 मार्च को हाई कमान ने बिहार के नेताओं की दिल्ली में बैठक की और बैठक में फैसला लिया कि बिहार में कांग्रेस आरजेडी से मिलकर चुनाव लड़ेगी। इस फैसले से एक बार फिर से बिहार के कार्यकर्ताओं को वापस घरों में जाने के लिए शायद मजबूर कर दिया। बिहार का कार्यकर्ता चाहता था कि कांग्रेस कब तक आरजेडी से समझौता कर अपने आप को खत्म करती रहेगी। जबकि बिहार में कांग्रेस कमजोर नहीं है। कांग्रेस के पास अपनी दम पर चुनाव लड़ने की ताकत है। बस फर्क यह है हाई कमान को अपनी उस ताकत का एहसास होना चाहिए जो दिखाई नहीं दे रहा है। बल्कि बार-बार कांग्रेस अपनी मजबूरी और लाचारी का अपने सहयोगी दलों को बार-बार एहसास करा रही है। जिसका फायदा सहयोगी दल उठा रहे हैं। वे कांग्रेस को मजबूर कर रहे हैं और लाचार बना रहे हैं। यह लाचारी कांग्रेस को एक दिन खत्म ना कर दे इसकी फिक्र कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अब सताने लगी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)