
-आरजेडी के समक्ष समर्पण या चुनाव आयोग के फरमान के खिलाफ इंडिया गठबंधन की एकजुटता
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस बिहार की सत्ता में वापसी करने की रणनीति बनाते बनाते, अपनी साख बचाने पर उतर आई है। इसके पीछे का कारण क्या कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के प्रति बड़ा दिल दिखा रही है, या भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के लिए मजबूत गठबंधन तैयार करने की रणनीति बना रही है।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी बिहार में लगभग आधा दर्जन दौरे कर चुके हैं। बिहार कांग्रेस में तीन बड़े बदलाव भी कर संकेत दिए थे कि 2025 के विधानसभा चुनाव में कुछ बड़ा करने का इरादा है। लग रहा था कि कांग्रेस बिहार में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की आरजेडी की शर्तों पर समझौता नहीं करेगी। लेकिन अब खबर यह आ रही है कि रविवार 29 जून को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह बिहार गए और लालू प्रसाद यादव से मंत्रणा की। उनमें समझौता हुआ कि कांग्रेस 50 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है।
जो कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के सामने सीट शेयरिंग को लेकर झुकने को तैयार नहीं थी वह उनकी शर्तों पर झुकती क्यों नजर आ रही है। इसकी असल वजह चुनाव आयोग का बिहार में मतदाता सूचियों को दुरस्त करने का फरमान है। चुनाव आयोग के फरमान के बाद कांग्रेस, राजद, वामपंथी दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग के फरमान के विरोध में संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता की थी। कांग्रेस समझ रही है कि इस समय चुनाव लड़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण भाजपा की रणनीति और चुनाव आयोग के फरमान से लड़ने की है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी, संसद से लेकर सड़क पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ वोटो की चोरी कर चुनाव जीतने का आरोप लगा रहे हैं। इस लड़ाई को खरगे और राहुल गांधी तभी जीत सकते हैं जब इंडिया गठबंधन के सभी नेता एकजुट होकर आवाज उठाएंगे। शायद इसीलिए कांग्रेस बिहार में लालू प्रसाद यादव के सामने झुकती हुई नजर आ रही है। बिहार में चुनाव आयोग के फरमान ने इंडिया गठबंधन के नेताओं के कान खड़े कर दिए हैं। यदि इंडिया गठबंधन बिहार में एकजुट नहीं रहा तो, इसका असर अन्य राज्यों में भी देखने को मिलेगा। सवाल यह है कि क्या बिहार में कांग्रेस को चुनाव आयोग के नए फरमान ने लालू प्रसाद यादव के सामने झुकने पर मजबूर किया, या महागठबंधन की एकता को मजबूत रखने के लिए बड़ा दिल दिखाया। राहुल गांधी ने बिहार में भाजपा की चुनावी रणनीति को बेअसर करने के लिए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को तैनात करने की योजना बनाई है।
अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह दोनों ही राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। मगर दोनों ही नेताओं की कमजोरी एक जैसी है। दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वापसी नहीं करवा पाए वहीं अशोक गहलोत लगातार राजस्थान में कांग्रेस की सरकार नहीं बनवा पाए।
यदि बिहार रणनीति का जिम्मा इन दोनों नेताओं के हाथों में हुआ तो इन दोनों नेताओं के राजनीतिक भविष्य की अंतिम चुनौती होगी। अशोक गहलोत को पार्टी हाई कमान ने दो बार गुजरात विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी भी दी थी, उसका परिणाम सामने है। बिहार चुनाव के लिए कांग्रेस ने राजस्थान के 58 नेताओं को विधानसभा पर्यवेक्षक लगाया है। ज्यादातर नेता अशोक गहलोत के सिपासालार हैं। कांग्रेस के दोनों अनुभवी नेताओं को एक बार पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव से भी बिहार चुनाव को लेकर मंत्रणा करनी चाहिए। बिहार में विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस के लिए पप्पू यादव संजीवनी साबित हो सकते हैं। कांग्रेस को बिहार चुनाव में झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी जैसे नेताओं को भी चुनाव प्रचार की कमान देनी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)