
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस चुनाव में अपने प्रदर्शन में सुधार के लिए प्रयासरत है। इसमें संगठन में व्यापक बदलाव शामिल है। लेकिन राजस्थान में संगठन के हाल ढीले ढाले हैं। राजस्थान में कांग्रेस संगठन के नाम पर केवल प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ही नजर आते हैं। भारतीय जनता पार्टी सरकार के सामने सडक पर उतरने के लिए अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की प्रदेश की टीम और जिला अध्यक्ष कहीं नजर नहीं आते हैं। ऐसा लगता है जैसे गोविंद सिंह डोटासरा की अपनी प्रदेश कमेटी और जिला अध्यक्ष केवल कागजी शेर हैं।
राजस्थान के आम कार्यकर्ताओं को यह भी पता नहीं है कि गोविंद सिंह डोटासरा की प्रदेश कार्यकारिणी में कितने सदस्य हैं। यदि हैं तो कौन-कौन हैं। उनके नाम तक कांग्रेस का आम कार्यकर्ता नहीं जानता है।
लंबा समय गुजर गया, ब्लॉक तो क्या जिलों के कार्यकर्ता भी नहीं जानते हैं कि उनके जिले का कांग्रेस प्रभारी कौन है।
जब कांग्रेस का जिला प्रभारी अपने जिलों में आकर नहीं देख रहा है तो ब्लॉक प्रभारी की बात करना तो बड़ी बात होगी। विधानसभा चुनाव की जब तारीख नजदीक आती है तब कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारी और जिला अध्यक्ष सक्रिय होते हैं इसलिए नहीं की वह कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सक्रिय हुए हैं इसलिए होते हैं क्योंकि उन्हें कांग्रेस का टिकट चाहिए अपने लिए और जिन्होंने उन्हें कांग्रेस के भीतर प्रदेश का पद दिलवाया है या जिला अध्यक्ष बनवाया है उस आका को टिकट दिलवाने के लिए कांग्रेस के बड़े पदों पर बैठे नेता सक्रिय होते हैं।
राजस्थान में कई जिलों में ऐसे जिला अध्यक्ष भी मौजूद हैं जिन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और बुरी तरह से चुनाव हार गए। रोचक तथ्य यह है कि वे अभी भी जिला अध्यक्ष बनाकर बैठे हुए हैं। उनकी हार की हताशा उनके चेहरे से अभी तक नहीं जा रही है। जब ऐसे जिला अध्यक्ष हताश होकर बैठे रहेंगे तो कांग्रेस ब्लॉक और ग्राम में कैसे मजबूत होगी। राहुल गांधी का मिशन कैसे सफल होगा जब संगठन में ही दम नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)