निजी विद्यालयों के संचालक और डीएमके कर रहे हैं त्रिभाषा फार्मूले का विरोध

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-विष्णुदेव मंडल-

vishnu dev mandal
विष्णु देव मंडल

चेन्नई। राष्ट्रीय शिक्षा अधिनियम एनईपी 2020 को लागू करने के लिए तमिलनाडु सरकार और भाजपा के बीच चल रही राजनीतिक लड़ाई पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। भारतीय जनता पार्टी की तमिलनाडु इकाई के नेता राज्य के अलग-अलग जिलों और कस्बों में हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। लोगों को तमिलनाडु सरकार की सच्चाई से अवगत कराने के लिए सभाएं की जा रही हैं। तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पर त्रिभाषा फॉर्मूला को लेकर जोरदार हमला किया है। उन्होंने सभा में मुख्यमंत्री को पाखंडी कह कर संबोधित किया है। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री एवं उनका परिवार तमिलनाडु में कई निजी विद्यालयों का संचालन कर रहे हैं जो त्रिभाषीय है। तमिलनाडु सरकार के मंत्रियों एवं सांसदों में से अधिकांश बड़े-बड़े निजी विद्यालयों में त्रिभाषीय फॉर्मूला वाले विद्यालयों में पढकर राजनीति में आए हैं। डीएमके के दर्जनों नेता एवं मंत्री महंगे एवं त्रिभाषीय विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं। बावजूद इसके वह सरकारी विद्यालयों में दो भाषा की बात कर रहे हैं।
वह तमिलनाडु की जनता को दो भाषाओं में बांधकर कर रखना चाहते हैं। उन्होंने अपने संबोधन में दो दर्जन से अधिक नेताओं का नाम लिया जो निजी विद्यालयों में पढकर राजनीति में आए हैं। तमिलनाडु के लोग अपने राज्यों से अन्य राज्यों अर्थात हिंदी भाषी क्षेत्रों में जाते हैं तो उन्हें भाषा का ज्ञान न होने पर समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। भाषा हमें एक दूसरों से जोड़ती हैं लेकिन तमिलनाडु सरकार यहां के लोगों को भाषा के विवाद में उलझा कर रखना चाहती है। यह भाषा का पाखंड नहीं तो क्या है?
उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया की तमिलनाडु सरकार अपने राजनीतिक रसूख के लिए राज्य के भोले भाले आमजन को हिंदी के खिलाफ भड़का रहे हैं।
वहीं संसद में भी भारतीय जनता पार्टी के नेता और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मौजूदा डीएमके सरकार पर भाषा का लेकर चल रहे विवाद पर जमकर प्रहार किया।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हर क्षेत्रीय भाषा की बेहतरी के लिए काम कर रही है। क्योंकि मातृभाषा हमें सभ्यता और संस्कृ​ित की सीख देती है। हम चाहते हैं कि तमिलनाडु में भी तमिल भाषा को उचित सम्मान मिले और राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षा तमिल भाषाओं में की जाए लेकिन डीएमके सरकार ऐसा नहीं चाहती है। उन्होंने एमके स्टालिन पर आरोप लगाते हुए कहा कि हिम्मत है तो वह तमिल भाषा में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई करवाएं। तमिलनाडु सरकार हजारों किलोमीटर दूर की भाषा अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, रसियन का समर्थन तो करती है लेकिन हिंदी का उनका विरोध है। हम गुजरात से आते हैं हमारी मातृभाषा गुजराती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तमिलनाडु से आती हैं उनकी मातृभाषा तमिल है।
केंद्र सरकार के लिए हर क्षेत्रीय भाषा महत्वपूर्ण है और हम उन्हें उचित सम्मान देने का काम कर रहे हैं। लेकिन तमिलनाडु सरकार अपने भ्रष्टाचार और बेईमानी को छुपाने के लिए भाषा की आड़ में तमिलनाडु के लोगों को बांटने का प्रयास कर रही है। अगर 2026 में तमिलनाडु की जनता हमें चुनती है तो हम मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी तमिल में करवाएंगे। बहरहाल तमिलनाडु की फिजाओं में अभी भी भाषा की लड़ाई जारी है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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