बिहार चुनाव: विपक्ष भाजपा के राजनीतिक हमले का एकजुट होकर सामना कर पाएगा!

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-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

सभी की नजर 12 मई सोमवार रात 8:00 बजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर थी क्योंकि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह पहला राष्ट्र के नाम संबोधन था।
जो राजनीतिक पंडित और विश्लेषक चुनाव का विश्लेषण करते हैं उनकी नजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर थी, क्योंकि बिहार विधानसभा का चुनाव इसी साल के अंत में होना है। भारतीय जनता पार्टी बिहार में अपने दम पर महाराष्ट्र की तरह सरकार बनाना चाहती है। भाजपा 2020 में कुछ ही सीटों के अंतर से सरकार बनाने से चूक गई थी। 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 2020 की तरह चूक नहीं करना चाहती है। भाजपा चाहेगी कि वह बिहार में अपने दम पर पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाए।
पहलगाम आतंकी हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार गए और वहां बड़ी घोषणाएं की जिसकी आलोचना भी खूब हुई। विपक्षी दलों के नेता आरोप लगाते देखे गए कि संकट की घड़ी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में चुनावी दौरे कर रहे हैं, जबकि विपक्ष के नेता राहुल गांधी, ने अपने अमेरिका के दौरे को बीच में छोड़कर कश्मीर का दौरा किया और आतंकी हमले में घायल हुए लोगों से मिलने श्रीनगर के अस्पताल में पहुंचे। विपक्ष और उसके नेता अच्छे से जानते हैं भाजपा ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का लाभ बिहार विधानसभा चुनाव में उठाना चाहेगी। मगर सवाल यह है कि बिहार में विपक्ष भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक हमले का ठीक से एकजुट होकर सामना कर पाएगा। क्योंकि बिहार में प्रमुख विपक्षी दल और राजद के नेता तेजस्वी यादव ने अपने मन में बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा नहीं हुई इससे पहले से ही मुख्यमंत्री बनने का सपना और मुगालता पाल रखा है। तेजस्वी यादव अपने सामने इंडिया घटक दल के बाकी दलों और उनके नेताओं को राजनीतिक रूप से बौना समझ रहे हैं। तेजस्वी यादव बिहार में इंडिया घटक दल के नेताओं पर अपनी शर्तों को थोप कर चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक दबाव डालते देखे जा रहे हैं। दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और कांग्रेस हाई कमान अभी भी बिहार को लेकर असमंजस की स्थिति में है। बिहार में कांग्रेस ने लंबे समय तक राज किया है मगर लगभग 4 दशक से कांग्रेस बिहार की सत्ता से बाहर है। यदि कांग्रेस को बिहार में अपने राजनीतिक पैर वापस से जमाने हैं तो कांग्रेस हाई कमान को कांग्रेस का जो कार्यकर्ता कुंठित होकर घरों में बैठा है उनकी बात को समझना और सुनना होगा कि बिहार में वह क्या चाहते हैं। उसे तय करना होगा कि कांग्रेस को राजद और उसके नेता तेजस्वी यादव की शर्तों पर नहीं बल्कि अपने बिहार कार्यकर्ताओं की भावनाओं के दम पर चुनाव लड़ना होगा। ऑपरेशन सिंदूर के बाद कांग्रेस को बिहार में अपनी चुनावी रणनीति में भी बदलाव करना होगा। उसे यह समझना होगा कि कांग्रेस को बिहार चुनाव में कैसे फायदा मिलेगा क्योंकि बिहार में भाजपा 2025 में अपनी दम पर सरकार बनाने के लिए पूरी दम लगा देगी। यदि महाराष्ट्र की बात करें तो भाजपा बिहार में भी अपनी दम पर सरकार बना सकती है, क्योंकि बिहार की महिला मतदाता ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद, भाजपा को जमकर वोट कर सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार की महिला मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए आकर्षित करेंगे इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन को अभी से इस पर रणनीति बनानी चाहिए और तेजस्वी यादव को अपना अहम तोड़ना चाहिए। पप्पू यादव की पहले चुनाव लड़ो जीतो और उसके बाद मुख्यमंत्री बनो बात पर अमल करना चाहिए। कांग्रेस को पप्पू यादव और उनकी चुनावी रणनीति को गंभीरता से लेना उन्हें जिम्मेदारी देनी चाहिए। राहुल गांधी को झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी जैसे नेताओं को अभी से बिहार चुनाव में जिम्मेदारी देकर तैनात कर देना चाहिए, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की नजर बिहार चुनाव को लेकर असदुद्दीन ओवैसी पर भी है। ओवैसी बिहार चुनाव में कितनी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारते हैं, कांग्रेस को इस नुकसान से भरपाई करने के लिए बिहार से अलग हुए राज्य झारखंड के मुस्लिम नेताओं को बिहार चुनाव में प्रचार की बड़ी जिम्मेदारी देनी चाहिए। इसके लिए झारखंड में स्वास्थ्य मंत्री कांग्रेस नेता इरफान अंसारी कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित होंगे, क्योंकि बिहार में भाजपा की नजर मुस्लिम समुदाय के पसमांदा मतदाताओं पर भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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