
-देवेंद्र यादव-

गत दिनों विधानसभा के हुए उपचुनाव में केरल को छोड़कर बाकी राज्यों में हुई हार पर कांग्रेस के रणनीतिकारों को गहन मंथन करना होगा। कांग्रेस पंजाब और गुजरात में नेताओं की गुटबाजी के कारण हारी या कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नेताओं के प्रति नाराजगी या उदासीनता के कारण हारी, या राहुल गांधी के मिशन जाति जनगणना के मुद्दे ने चार विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त दी।
हार के बाद, सवाल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की आपस में गुटबाजी को लेकर खड़े हुए, और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार भी कांग्रेस को मिली करारी हार को लेकर स्थानीय नेताओं की गुटबाजी को आधार मानकर शायद विश्लेषण करेंगे। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के भीतर गुटबाजी, कुर्सी को लेकर निश्चित रूप से थी, लेकिन अब यह गुटबाजी कुर्सी से बड़ी अपनी राजनीतिक हैसियत को बचाने की हो गई है। स्थानीय नेताओं को अपने सामने अपनी राजनीतिक हैसियत को बरकरार रखने का संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है। स्थानीय नेताओं का संकट कुर्सी का नहीं बल्कि अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने का आ गया है। संकट है कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का मिशन जाति जनगणना। जाति जनगणना का मतलब जिसकी जितनी संख्या भारी उनकी उतनी हिस्सेदारी। कांग्रेस के भीतर लंबे समय से सत्ता और संगठन पर ज्यादातर वे नेता है जिनकी भागीदारी संख्या के आधार पर कम है मगर सत्ता और संगठन पर उनका कब्जा रहा है। पहले यह नेता कुर्सी के लिए आपस में लड़ते थे मगर पंजाब विधानसभा के उपचुनाव में यह नेता अपनी राजनीतिक हैसियत को बचाने के लिए लड़ते नजर आए।
लुधियाना विधानसभा के उपचुनाव में ऐसा नजारा देखने को मिला जब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस के प्रत्याशी के साथ प्रचार करते हुए नजर आए। मगर पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा बडिंग और अन्य स्वर्ण जाति के नेता खुलकर नजर नहीं आए। पंजाब में लगभग 37% से अधिक दलित मतदाता हैं और शायद कांग्रेस ने इसीलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद पंजाब के जो नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कतार में थे, वह सभी स्वर्ण जाति के थे। लेकिन कांग्रेस ने दलित नेता चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया। स्वर्ण जाति के नेताओं के सामने यह खतरा अभी भी बरकरार है क्योंकि राहुल गांधी का नारा और संकल्प है जिसकी जितनी संख्या भारी उसको उतनी हिस्सेदारी।
यदि यह फार्मूला तय हो गया तो कांग्रेस के भीतर बड़े-बड़े स्थानीय नेता, अपने घरों में बैठ जाएंगे। लुधियाना में कांग्रेस को मिली हार का एक बड़ा कारण यह भी रहा होगा। कांग्रेस के उम्मीदवार को दलित और पिछड़ों का वोट तो मिला मगर स्वर्ण जाति का वोट भाजपा और आम आदमी पार्टी में पूरी तरह से शिफ्ट हो गया। ऐसा सभी सीटों पर हुआ होगा और आने वाले दिनों में यह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा मंथन करने का मुद्दा होगा। राहुल गांधी को अन्य मुद्दों के साथ-साथ इस मुद्दे पर भी गहराई से मंथन कर लेना चाहिए। अभी भी राज्यों के भीतर, क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं। ज्यादातर क्षेत्रीय दल आदिवासी, पिछड़ी जाति और दलित जाति के नेताओं के द्वारा बनाए गए हैं। कांग्रेस के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वह अपने पारंपरिक मतदाताओं को कांग्रेस में वापसी करवा पाएगी या नहीं। कांग्रेस के पारंपरिक वोट का बंटवारा लंबे समय से हो रहा है और इसीलिए कांग्रेस चुनाव नहीं जीत का रही है।
कांग्रेस को अघोषित रूप से सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के स्थानीय नेताओं से मिलती नजर आ रही है। कांग्रेस में जो गुटबाजी कुर्सी को लेकर थी क्या अब वह अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए नेताओं के भीतर नजर आने लगी है। सवाल यह है कि यदि राहुल गांधी का मिशन सफल रहा और कांग्रेस हाई कमान ने फार्मूला तय कर दिया तो कांग्रेस के अच्छे-अच्छे स्थानीय नेताओं के सामने राजनीति का संकट खड़ा हो जाएगा। यही नहीं बड़े-बड़े नेताओं को पद के बगैर घर बैठना पड़ेगा और शायद पंजाब और गुजरात में स्थानीय नेताओं ने इसका टेस्ट कर लिया है। इसे राहुल गांधी पंजाब और गुजरात के नेताओं की बड़ी चुनौती के रूप में देखकर मंथन कर सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)