
-पूर्व उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रहे सचिन पायलट का यह सवाल वाजिब, जांच होनी चाहिए
-कृष्ण बलदेव हाडा-

राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सचिन पायलट के हालिया बयानों को लेकर एक बार फिर से दोनों नेताओं के बीच के व्यक्तिगत तक की हद तक पहुंचे आरोपों सहित पार्टी के आंतरिक विवाद को हवा देने की कोशिश की जा रही है जबकि बीते दिनों में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से पहले, राज्य में प्रवास के दौरान और उसके बाद भी पार्टी आलाकमान ने दोनों नेताओं के बीच विवाद को काफी हद तक ने केवल शांत करने में कामयाबी हासिल कर ली थी बल्कि काफी समय तक दोनों नेताओं के खेमे में चुप्पी छाई रही लेकिन 15 जनवरी को सचिन पायलट के मारवाड़ के नागौर जिले में परबतसर से अपने समर्थक विधायकों के विधानसभा इलाकों में किसान सम्मेलन आयोजित करने के कार्यक्रम के दौरान हुई भाषणबाजी के बाद एक बार फिर से दोनों नेताओं के मध्य का विवाद फिर सतह पर आने लगा है। हालांकि अभी यह विवाद किसी गंभीर मोड़ तक नहीं पहुंचा है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने 15 जनवरी को परबतसर में किसान सभा को संबोधित करते पहली बार यह आरोप लगाकर इस विवाद को हवा देने की कोशिश की थी कि सरकार को बिचौलियों की जगह ‘पेपर लीक’ मामले में मुख्य आरोपियों पर हाथ डालना चाहिए और सरगनाओं को ही गिरफ्तार करना चाहिए जिसके जवाब में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह सफाई पेश करनी पड़ी थी कि राज्य सरकार के निर्देश पर पुलिस ने मुख्य सरगनाओं को ही पकड़ा है, किसी बिचोलिये को नहीं। तब से दोनों पक्षों के बीच विवाद बढ़ता नजर आ रहा है।
हालांकि इस बीच पाली जिले के सादड़ी में पिछले गुरुवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे सचिन पायलट ने ऎसे ही एक किसान सम्मेलन में सटीक टिप्पणी करते हुए यह जायज मांग उठाई कि पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के शासनकाल के दौरान कांग्रेस ने उनकी सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार से संबंधित जो आरोप लगाए थे, उनकी जांच करवाई जानी चाहिए और दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। चार सालों से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है लेकिन श्रीमती राजे के शासनकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार के मामलों में तब जो आरोप लगाए थे, उनमें से किसी एक की भी जांच नहीं की गई है। जांच होनी चाहिए।

सचिन पायलट ने श्रीमती राजे के शासनकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार जैसे मामलों को लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर यही सवाल उठाया है जो गलत नही है। इन आरोपों में उद्योगपति और इंडियन प्रीमियर लीग के संस्थापक ललित मोदी पर लगाए गए संगीन आरोप भी शामिल हैं जो कई करोड़ रुपए का घोटाला करने के बाद भारत छोड़कर भगौड़े हो गया है और वर्तमान में लंदन में निवास कर रहा हैं। ललित मोदी पर लगे आरोपों के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के उनसे संबंधों का सीधा नाता है। दोनों के बीच की नजदीकी जगजाहिर है और तब भी इन संबंधों की नजदीकी के चलते ही ललित मोदी पर गबन-घोटाले के आरोप लगाए गए थे लेकिन इन आरोपों की कांग्रेस सरकार आने के बाद अभी तक कोई जांच नहीं करवाई गई है। इसके अलावा श्रीमती राजे के शासनकाल के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने तत्कालीन भाजपा सरकार पर बजरी-जमीन घोटाले में लिप्त होने, सरकार के संरक्षण में भू-माफियाओं के पनपने जैसे आरोप लगाए गए, लेकिन सत्ता में आने के बाद इनमें से किसी भी आरोप की अभी तक जांच नहीं करवाई गई है और सचिन पायलट इसी को मुद्दा बनाए हुए हैं और उनकी काफी हद तक यह मांग जायज भी है कि जब विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने भाजपा सरकार के मंत्रियों पर आरोप लगाए थे तो सत्ता में आने के बाद सक्षम होते हुए भी कांग्रेस सरकार ने इन आरोपों की जांच क्यों नहीं करवाई? इस सवाल का जवाब जनता को दिया चाहिए, तभी ऎसे आरोपी की विश्वसनीयता और सार्थकता साबित होगी।

इस संबंध में गहलोत सरकार में वर्तमान में भी नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल से संबंधित मामला एक नायाब उदाहरण है और इस उदाहरण का अनुसरण किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि एक दशक पहले जब दूसरी बार गहलोत सरकार बनी थी तो विपक्ष में रहते श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने उस समय शांति धारीवाल पर उनके मंत्रालय के संबंध में भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए थे और इसमें सीधे श्री धारीवाल की भागीदारी होने की बात कहते हुए यह दावा किया था कि जब भी उनकी पार्टी की सरकार में आएगी तो इन सभी मामले की जांच होगी। भाजपा की सरकार आई और यही श्रीमती वसुंधरा राजे ही मुख्यमंत्री बनी। सरकार ने श्री धारीवाल के खिलाफ जांच के आदेश दिए तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने श्री धारीवाल को नोटिस भी थमाते हुये ब्यूरो में उपस्थित होने का निर्देश दिया। इससे वाजिब है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में गुस्सा पैदा हुआ लेकिन कई मीडिया वाले और भाजपा नेता-” अब आएगा मजा ” की तर्ज पर तमाशबीन होकर बैठ गये लेकिन उलझाने की इन तमाम साजिशों के बीच श्री धारीवाल ने अपना पक्ष रखने के लिए पूरी तैयारी की। उन्होंने बकायदा आरटीआई के जरिए नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग से उन सभी मामलों के बारे में दस्तावेजी जानकारियां मांगी जिनको लेकर भाजपा नेता और उनकी पार्टी की मुख्यमंत्री श्रीमती राजे उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही थी। हालांकि श्री धारीवाल चाहते तो अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके वह अपने मातहत रहे इस विभाग के अधिकारियों से सीधे ही इन सभी दस्तावेजों की नकल प्राप्त कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि तय प्रक्रिया के तहत विभाग के जरिए ही आधिकारिक तौर पर प्रमाणित दस्तावेज मांगे और बुलावे का इंतजार किये बिना खुद चलकर जांच में सहयोग देने के लिए दस्तावेजों सहित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो कार्यालय पहुंचे और सारे दस्तावेज सौंपते हुए एसीबी के अधिकारियों के उस हर सवाल का जवाब दिया जो उन्होंने पूछा था और अंत तक एसीबी अधिकारियों से यही कहते रहे कि- पूछो और क्या पूछना है ? तो अधिकारी ही निरूत्तर हो गए और आखिर उन्होंने श्री धारीवाल को जाने के लिए कह दिया और भाजपा के कार्यकाल में ही यह सारे मसले बंद हो गए।
ऐसे में अब जबकि श्रीमती राजे के पिछले कार्यकाल के शासन में कांग्रेस के नेताओं ने उनकी सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए थे, उनके अनुसार उन सभी प्रकरणों की जांच करवाई जानी चाहिए थी या अभी भी मौका है, करवाई जानी चाहिए ताकि सच सामने आ सके। कोई परदादारी नही रहे ताकि जनता के बीच बनी यह अवधारण टूटे कि आरोप केवल उसी समय लगाए जाते हैं, जब नेता-पार्टी सत्ता में नहीं होते। सत्ता में आते उन आरोपों को भुला दिया जाता है और बाद में उनके प्रतिद्वंदी पार्टी नए आरोप गढ़ने लग जाती है। सचमुच यह गलत परंपरा है। सचिन पायलट की मांग पर गौर किया जाना चाहिए और उन सभी आरोपों की जांच करवाई जानी चाहिए जो वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने श्रीमती वसुंधरा राजे के शासनकाल के दौरान उनकी सरकार में शामिल मंत्रियों और खुद श्रीमती राजे पर लगाये थे। खासतौर से आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी से जुड़े मामलों-आरोपों की क्योंकि यह सभी आरोप काफी व्यक्तिगत और सनसनीखेज थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)