नायब सैनी कैबिनेट ने की विधानसभा भंग करने की सिफारिश

संवैधानिक संकट टालने के लिए मुख्यमंत्री ने विधानसभा भंग करने का विकल्प चुना

 

-राजेन्द्र सिंह जादौन-

चंडीगढ़। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने विधानसभा भंग करने का फैसला कर लिया है। इस फैसले के लिए बुधवार शाम कैबिनेट बैठक बुलाई गई थी, जिमसें कृषि मंत्री कंवरपाल गुर्जर, स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता, लोक निर्माण मंत्री डॉ बनवारी लाल, शहरी निकाय मंत्री सुभाष सुधा, परिवहन मंत्री असीम गोयल, खेल मंत्री संजय सिंह शामिल रहे।
इन मंत्रियों ने बैठक में विधानसभा को भंग करने के मुख्यमंत्री सैनी के प्रस्ताव पर सहमति जताई। अब कैबिनेट के फैसले को राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के पास भेजा जाएगा। इसके बाद राज्यपाल ही आगे की कार्रवाई करेंगे। राज्यपाल इस पर बुधवार देर रात या गुरुवार को फैसला ले सकते हैं। तब तक सैनी कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम करते रहेंगे।
कैबिनेट की विधानसभा भंग करने की सिफारिश के बाद अब हरियाणा में केयर कार्यवाहक सरकार रहेगी। यह सरकार सिर्फ देखभाल करेगी, नीतिगत फैसले नहीं ले सकेगी।
मुख्यमंत्री सैनी ने विधानसभा भंग करने का फैसला विधानसभा का मानसून सत्र न बुला पाने की स्थिति में लिया है। विधानसभा भंग न करने के अलावा उनके पास दूसरा विकल्प विधानसभा सत्र बुलाना था, लेकिन वह ऐसा कर न सके। मोजूदा14वीं हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 तक है। इसका पिछला विशेष सत्र 1 दिन का बुलाया गया था।
वह विशेष सत्र 13 मार्च 2024 को बुलाया गया था। उसमें मुख्यमंत्री ने विश्वास मत हासिल किया था।
संविधान के अनुच्छेद 174(1) की सख्त अनुपालना में मौजूदा विधानसभा का एक सत्र भले ही 1 दिन या आधे दिन की अवधि का ही क्यों न हो, वह आगामी 12 सितंबर 2024 से पहले बुलाना अनिवार्य था क्योंकि, 6 माह के अंदर दूसरा सत्र बुलाना ही होता है।
संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि पिछले सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की प्रथम बैठक के बीच 6 महीने का अंतराल नहीं होना चाहिए। सरकार की ओर से पिछली कैबिनेट बैठक में मानसून सत्र पर कोई फैसला नहीं लिया गया था। ऐसे में अब सरकार के पास हरियाणा विधानसभा को समयपूर्व भंग करने के लिए राज्यपाल से सिफारिश करना ही एकमात्र विकल्प बचा था। यह संवैधानिक संकट ऐतिहासिक भी है, क्योंकि देश आजाद होने के बाद कभी ऐसी स्थिति नहीं आई। हरियाणा में ही कोरोना के दौरान भी इस संकट को टालने के लिए 1 दिन का सेशन बुलाया गया था। 6 माह में सत्र न बुलाने का इतिहास में उदाहरण नहीं है।

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