
-देवेंद्र यादव-

बिहार में चुनाव आयोग का नया फरमान, इंडिया घटक दल के नेताओं को एकजुट कर देगा। इसकी झलक शुक्रवार 27 जून को उस समय नजर आई, जब बिहार में इंडिया घटक दल के नेताओं ने संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता कर चुनाव आयोग के नए फरमान की एक स्वर में आलोचना और विरोध किया। बिहार में चुनाव आयोग नए सिरे से वोटर लिस्ट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है। चुनाव आयोग कि इस प्रक्रिया से नाराज होकर, इंडिया घटक दल के नेताओं ने संयुक्त प्रेस वार्ता करके अपना विरोध जताया। राजद नेता तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। इसी को लेकर तेजस्वी यादव ने बड़ा मुगालता पाल रखा है। इसीलिए इंडिया घटक दलों के नेताओं के बीच, सीटों को लेकर रार नजर आ रही है। मैंने पिछले दिनों अपने ब्लॉग में लिखा था कि कांग्रेस सहित इंडिया घटक दलों के नेताओं को सीट शेयरिंग से पहले मतदाता सूचियो पर ध्यान देना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी बिहार चुनाव हर हाल में जीतना चाहती है। इस पर इंडिया घटक दल के नेताओं को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
जैसे ही चुनाव आयोग का फरमान आया वैसे ही इंडिया घटक दल के नेताओं के कान खड़े हुए। सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग के फरमान के बाद इंडिया घटक दल के तमाम नेता एकजुट होंगे, क्योंकि कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे संसद से लेकर सड़क तक चुनाव आयोग की नीतियों को लेकर हमलावर है। 25 जून को खड़गे ने खुला आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी वोटो की चोरी कर सत्ता में बनी हुई है।
राहुल गांधी महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में वोट में धांधली होने का आरोप लगा रहे हैं। क्या इस समय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच तू डाल डाल मैं पात पात का खेल चल रहा है।
कांग्रेस देशभर में जाति जनगणना की आवाज उठा रही है, और उसी के अनुरूप सत्ता में हिस्सेदारी की बात कर रही है। क्या इससे कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिलेगा। क्या इस नीति से कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता जो कांग्रेस से अलग हो गया है वह वापस कांग्रेस में आ जाएगा। देश में ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दल दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने बनाए हैं। 2 दिन पहले विधायक उमेश मकवाना ने आम आदमी पार्टी को छोड़ने का ऐलान किया और उन्होंने बताया कि वह गुजरात में अपनी अलग पार्टी बनाएंगे। गुजरात में मकवाना समाज लगभग 20 विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। यदि उमेश मकवाना ने गुजरात में अपनी अलग पार्टी बना ली तो इससे बड़ा नुकसान कांग्रेस को होगा, क्योंकि मकवाना समाज कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता रहा है।
गुजरात में राहुल गांधी ने मकवाना समाज के युवा नेता ऋतिव मकवाना को कांग्रेस का राष्ट्रीय सचिव बनाया है।
लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस के रणनीतिकार, भाजपा के रणनीतिकारों की रणनीति को समझने में अभी भी नाकाम है। कांग्रेस सफल नहीं हो पा रही है क्योंकि उसके पास मजबूत रणनीतिकार नहीं हैं। जो है उनकी नजर कांग्रेस के पास बचे धन पर है। कांग्रेस के धन को कैसे ठिकाने लगाया जाए इसका अंदाजा बिहार में आयोजित सेवा दल के प्रशिक्षण शिविर से लगाया जा सकता है। लंबा समय नहीं हुआ है 4 दिन पहले ही गुजरात विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम आया जहां कांग्रेस का उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया। उस गुजरात का नेता सेवा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल जी देसाई गुजरात हारने के बाद बिहार में सेवादल का 9 दिवसीय शिविर लगाने पहुंच गए। क्या कांग्रेस के नेताओं ने बिहार में सेवादल का शिविर लगाने से पहले लालजी देसाई से पूछा कि गुजरात में क्यों हारे।
कांग्रेस के भीतर ना तो कोई सवाल पूछने वाला है और ना ही किसी को जवाब दिया जा रहा है। कांग्रेस कमजोर है और इसी का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठा रही है। भारतीय जनता पार्टी जानती है कि कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी की बात का नेताओं पर कोई असर नहीं होता है। कांग्रेस के भीतर तू मेरी मत कहना मैं तेरी नहीं कहूंगा। तू भी मस्त रहना मैं भी मस्त रहूंगा यह खेल चल रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)