
-द ओपिनियन-
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन देश के राजनीतिक परिदृश्य में एक गहरा शून्य पैदा करेगा। मुलायम का जाना एक कामयाब व शानदार राजनीतिक पारी का अंत है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक युग का अवसान है। राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और चौधरी चरण सिंह के साथ कामकर राजनीति में पारंगत हुए मुलायम ने जीवन भर समाजवाद का झंडा उठाए रखा और देश की राजनीति में अपने लिए अहम मुकाम बनाया। 22 नवंबर, 1939 को सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव करीब 5 दशकों तक यूपी के शीर्ष नेताओं में से एक बने रहे। वह 10 बार विधायक और 7 बार सांसद रहे। मुलायम ने 1989-91, 1993-95 और 2003-07 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया था। मुलायम तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में रक्षा मंत्री भी रहे। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होने कई राजनीतिक बदलाव व ध्रुवीकरण देखे। राम मंदिर मसले पर उनका रुख और दृढता उनकी राजनीतिक जोखिम उठाने की क्षमता को भी बताती है। लेकिन अवसर आने पर उसी भाजपा के नेता व प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी को 2019 में देश का दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद देने से भी नहीं चूके। अपने राजनीतिक प्रति प्रतिद्वंद्वियों के प्रति उनका यह व्यवहार आज की राजनीति में एक उहारण कहा जा सकता है। 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले संसद के आखिरी सत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद दिया था कि वह एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। यह इस बात का सबूत है कि वे अपने रिश्तों को कितना संभालकर संवारते थे।
सामाजिक बदलाव के संवाहक भी बने
उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका आना और फिर उनके बढते हुए कद ने राजनीति के कई दिग्गजों को बौना कर दिया था। उत्तर प्रदेश में वे सामाजिक बदलाव के संवाहक भी बने। उनके साथ पिछडी जातियों का राजनीतिक उभार तेजी से हुआ और ये तबका आज प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व स्थापित कर चुका है। कांग्रेस का परम्परागत गणित गडबडा गया। कुश्ती के अखाडे में पहलवान से बाद राजनीति में आकर अपने समर्थकों के बीच नेता जी के नाम से मशहूर हुए मुलायम ने सियासी जीवन में कई उतार चढाव देखे लेकिन उनके आचरण में हमेशा गरिमा बनी रही। उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक अपरिहार्य चेहरा बन गए। मुलायम के रक्षामंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान भारत ने रूस से सुखोई विमानों की खरीद का समझौता किया था। रक्ष मंत्री के रूप में उनका कार्याकाल छोटा रहा लेकिन चीन और पाकिस्तान को लेकर उनका रुख आज भी किसी भी रक्षा मंत्री के लिए नजीर बन सकता है।
बेटे को सौंपी राजनीतिक विरासत
मुलायम ने 2017 में पार्टी को सत्ता के द्वार तक पहुंचा फिर राजनीतिक कमान बेटे अखिलेश यादव को सौंप दी थी और खुद संरक्षक की भूमिका में आ गए थे। लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। उन पर जाति- परिवारवाद की राजनीति के आरोप भी लगे लेकिन जिस सामाजिक परिवेश से आकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और आगे बढकर मुकाम बनाया वहां यह सब सहज सा लगता है। इन सामाजिक सच्चाइयों से कोई अन्य राजनेता भी शायद ही इनकार कर सके।