राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा और पायलट की सक्रियता और अशोक गहलोत की खामोशी के मायने क्या ?

sachin
सचिन पायलट। फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के दो चेहरे वसुंधरा राजे और सचिन पायलट ऐसे हैं जिन्हें, अपनी-अपनी पार्टियों के द्वारा मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का मलाल अभी भी जस का तस बना हुआ है। दोनों ही नेता राजस्थान की राजनीति में अभी भी सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। दोनों ही नेताओं की राजनीतिक सक्रियता, अपनी अपनी पार्टियों मैं बैठे उनके विरोधी नेताओं को परेशान कर रही है।
राजनीतिक गलियारों में जहां वसुंधरा राजे और सचिन पायलट की सक्रियता चर्चा में है तो वही पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की खामोशी भी चर्चा में है। जब-जब भी अशोक गहलोत सत्ता से बाहर रहे हैं तब तब उन्होंने प्रारंभिक वर्षों में इसी तरह की खामोशी बरती है, लेकिन जब राज्य के विधानसभा चुनाव नजदीक आते हैं राजस्थान की राजनीति में वापस से सक्रिय हो जाते हैं। अभी भी अशोक गहलोत के समर्थक यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि राजस्थान की राजनीति से अशोक गहलोत का समय खत्म हो गया बल्कि समर्थक अभी भी यह मान रहे हैं कि पार्टी हाई कमान शीघ्र ही अशोक गहलोत को राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ी जिम्मेदारी देगा। मगर सवाल यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर तो सचिन पायलट ने राष्ट्रीय महामंत्री बनकर अपनी जड़ मजबूत कर ली, ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर अशोक गहलोत को कौन सा पद मिलेगा। क्या अशोक गहलोत और उनके समर्थकों की नजर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर है। क्या अशोक गहलोत मल्लिका अर्जुन खड़गे का स्थान लेंगे। क्या अशोक गहलोत खामोश रहकर इन दिनों यही राजनीतिक रणनीति बना रहे हैं। मगर सवाल यह है कि गांधी परिवार अशोक गहलोत को क्या अब स्वीकार करेगा क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले गांधी परिवार ने अशोक गहलोत से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए अपना नामांकन भरने को कहा था। मगर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी को नहीं छोड़ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने गांधी परिवार के फैसले को नकार दिया था। अब जब राजस्थान में कांग्रेस सत्ता से बाहर है तब अशोक गहलोत और उनके समर्थक नेताओं की नजर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर पड़ी है।
राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद भी सचिन पायलट प्रदेश की राजनीति में सक्रिय नजर आए और उनकी सक्रियता के कारण 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक दशक बाद आठ लोकसभा सीट जीती। अशोक गहलोत तो जालौर से अपने पुत्र वैभव गहलोत को भी लोकसभा का चुनाव नहीं जितवा सके। वैभव गहलोत की यह लगातार दूसरी हार थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वैभव गहलोत जोधपुर लोकसभा सीट से चुनाव हारे थे।
भाजपा की बात करें तो राजनीतिक पटल पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा खामोश और पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सक्रिय हैं। 2023 में भाजपा ने राजस्थान की सत्ता में वापसी की मगर पार्टी हाई कमान ने राज्य का मुख्यमंत्री वसुंधरा की जगह भजनलाल शर्मा को बनाया। भाजपा के भीतर कुर्सी को लेकर लड़ाई अभी भी जस की तस् बनी हुई है। राजस्थान भाजपा में कुर्सी की लड़ाई के कारण सरकार की योजनाएं धरातल पर होती हुई नहीं दिखाई दे रही हैं। राजस्थान के कई इलाकों में भारी बारिश ने तबाही मचा रखी है, और भाजपा के नेता मंच पर खड़े होकर एक दूसरे नेता पर राजनीति व्यंग्य बाण करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments